Struggler (उपन्यास) 1 : फिल्मी दुनिया की भयानक सच्चाई

STRUGGLER स्ट्रगलर फिल्मी दुनिया के अंधेरे कोनों को रौशन करनेवाली एक दर्दनाक दास्तान | यह उपन्यास फिल्मी दुनिया की कटु सच्चाई है जिसे घटित वास्तविक घटनाओं एवं पात्रों के सहारे बयाँ किया गया हैं जो फिल्मी इंडस्ट्री के सभी स्ट्रगलरों के जिंदगी के किसी न किसी पहलू को छूती हैं। स्ट्रगलरों के साथ होने वाले शोषण, खासकर लड़कियों के साथ कोम्प्रोमाईज़ का डील करनेवाले लोगों को इस उपन्यास से जरूर तकलीफ होगी क्योंकि हमाम में सभी नँगे होते है लेकिन ऐसे लोग खुले समाज मे भी कच्छी चड्ढी पहनकर घूमते रहते हैं। यदि मेरे इस रचना से ऐसे लोगों को कोई तकलीफ होती हैं तो मैं हृदय से आनंदित होऊंगा और उनके मानमर्दन के लिए किसी भी प्रकार की क्षमा नहीं मांगूंगा। मेरे इस उपन्यास का उद्देश्य भारत के दूर दराज गांव, मुंबई से दूर दराज शहर एवं कस्बों से हीरो-हिरोइन बनने के लिए मुम्बई आने वाली भीड़ को बॉलीवुड की कठिनाइयों से रु-ब-रु कराने का प्रयास हैं ।

यूपी, बिहार,झारखंड,छतीसगढ़,उत्तराखंड,पंजाब एवं बंगाल के अलावा कई राज्यों के उन गांवों में जहां आज़ादी के इतने सालों बाद भी बिजली नही पहुँची हैं, ऐसे गाँव के जवान लड़के लड़कियां अपनी आंखों में film , सीरियल हीरो हीरोइन बनने का सपना लेकर मुम्बई की सड़कों पर अपनी जूती, जूते कम बल्कि एड़ियां घिसनेवाले स्ट्रग्लेरों की संघर्ष गाथा हैं ये उपन्यास

 

गोल्डन लाइफ की चकाचौध से गुमराह हो अपनी सेक्सी बॉडी के रास्ते शार्ट कट सक्सेस रास्ते तलाशती लड़कियों की इमोशनल अत्याचार की कहानी है ये उपन्यास स्ट्रगलर

शून्य से उठकर शिखर पर सफलता का परचम लहरानेवालों, जीरो से हीरो बनने वालों, फर्श से अर्श तक उड़नेवाले उम्मीदों की तितलियां पकडनेवालों, पीछे न मुड़ने की टेक में जिल्लत की जिंदगी का एक एक दिन काटनेवालों के संघर्षमय जीवन की सनसनीखेज सच्चाई  पेश करती है ये उपन्यास

शिखर, स्वामी, विशाल, बिहारी, और अब्दुल ये तो सिर्फ कुछ नाम है पर इनके सपनों से मिलते-जुलते सपने लिए मुम्बई आनेवालों की संख्या काफी हैं क्योंकि मुंबई सपनों का शहर हैं। स्ट्रगल तो हर किसी को करना पड़ता हैं । कुछ लोग भरे पेट संघर्ष करते हैं तो कुछ लोग खाली पेट……..
लेकिन एक बात पक्की हैं कि स्ट्रगल के दिनों में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। भयंकर असहनीय पीड़ा भोगनी पड़ती हैं। सामाजिक उपहास को झेलना पड़ता हैं। फिल्मी दुनिया बॉलीवुड में असफलता का कड़वा घूंट पीकर लौटा स्ट्रगलर और सरहद से पीठ पर गोलियां खाकर भाग आया फौजी, इन दोनों की समाज गांव में कोई इज़्ज़त नहीं होती। ऐसे स्त्रगलर और फौजी ……दोनों जीते जी अपने आप अपने नाम पर गाली बन जाते हैं जो उनके आस पास रहने वाले लोग किसी और को उलाहना देने के लिए इनका नाम लेकर , इनकी असफलता पर बनी गालियों का खूब इस्तेमाल करते हैं।

मुम्बईयाँ फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल करनेवाला हर स्ट्रगलर चाहे वह लड़का हो या लड़की, सभी स्ट्रगलर हीरो या हीरोइन नहीं बन पाते हैं। फिर सपनों को जिंदा रखने के लिए जुगाड़ करना पड़ता हैं। सपनें कही आत्महत्या न कर ले इसलिए खुद को जिंदा रखने के लिए रोज ब रोज आत्महत्या करना पड़ता हैं ऐसे स्ट्रगलरों को । वाह ।। खुद को जिंदा रखने के लिए आत्महत्या करने पड़े ये जुमला तो बहुत ही भारी हैं। अगर ऐसे स्ट्रगलर लड़के हीरो नहीं बन पाते तो कोई लेखक बन जाता है, कोई कैमरा मैन, कोई किसी का सेक्रेटरी/ पी आर ओ बन जाता है तो कोई किसी का मेकअप मैन । कोई जूनियर आर्टिस्ट सप्लाई करने का धंधा करता हैं तो कोई करैक्टर आर्टिस्ट सप्लाई करने के नाम पर लड़कियां सप्लाई करने का गोरखधंधा । यदि वो स्ट्रगलर लड़की हैं तो उसके सामने भी पचासों रास्ते होते है लाइफ सर्वाइवल के। कुछ अच्छे कुछ बुरे। कुछ ठीक ठाक तो कुछ बिल्कुल ही टेढ़े मेढ़े ।

जीवन का दूसरा नाम संघर्ष STRUGGLE हैं। बॉलीवुड……….मुम्बई के फिल्मी दुनिया का संघर्ष केवल जीवट व्यक्ति ही झेल सकता हैं। फिल्मों में कुछ कर दिखाने के लिए जो संघर्ष करना पड़ता हैं उसमें ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे कुछ दिन, कुछ महीने या कुछ वर्ष में अपनी हैसियत,औकात समझकर इस सुलेमानी कीड़े की दंश से दूर हो जाते हैं या मुम्बई छोड़कर भाग जाते हैं। मैदान में रह जाते हैं कुछ स्ट्रगलर जो या तो अपना नाम कर जाते है या तो हमेशा हमेशा के लिए गुमनाम हो जाते हैं।

क्या आपने कभी यह सोचा कि अगर मुम्बई शहर से फिल्मी हलचल को अलग कर दिया जाए तो क्या होगा ????? सपनों की नगरी मुम्बई का चार्म ही खत्म हो जाएगा । देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई एक क्षण में बेजान बेरंग हो जाएगी। मुम्बई का लोक सागर, उस पर उतराता उम्मीदों का गागर, कोई पार लग गया तो कोई मंझधार में डूब गया। ये पार उतरने या मंझधार में डूबने के किस्मती खेल बहुत ही रोमांचक एवं आकर्षक होता हैं। खैर……..डूबना या पार लगना, यह तो किस्मत की बात है लेकिन आगे बढ़ने के लिए मरते दम तक अथक प्रयास करना ही ” स्ट्रगलर ” का धर्म होता हैं ।

न हो तू निराश
न कर मन को उदास ।

न हो तू निराश
निराशा तुझे कर देगी
शून्य जीवन से हताश ।

न कर मन को उदास
उदासी छीन लेगी
तड़पते मन की आस ।

न हो तू निराश
न कर मन को उदास ।

अपने विह्वल मन में जगा
विश्वास की एक आस………….

आज की शाम
तू क्यों रात भर और
जीने से डरता हैं ………….
क्या पता !!!
कहीँ ऐसा हो जाये,
कल सुबह…………..
तू इस सूरज को रौशन कर दें !!!!

न हो तू निराश
न कर मन को उदास ।
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Struggler (उपन्यास) 2 : जीवन एक संघर्ष

जीवन के सार्थकता की खोज में यदि कोई एक बार उलझा तो समझो कि उसके लिए……जीवन एक संघर्ष हैं। उद्देश्यपूर्ण सार्थक जिंदगी जीने के लिए मनुष्य के सामने एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए। एक स्वप्न होना चाहिए। ” कुछ विशेष ” कर दिखाने की हूक, भीड़ में ” अपनी एक अलग पहचान ” बनाने की ललक उसे दिन रात बेचैन किये रहती हैं। लेकिन….किसी भी महान लक्ष्य को प्राप्त करना बच्चों का खेल नहीं हैं। सफलता कोई चमत्कार नहीं जो पलक झपकते ही सिद्ध हो जाएगी। फिर भी, मनुष्य की जिंदगी में लक्ष्य का होना उतना ही आवश्यक है जितना आकर्षक, कर्णप्रिय सुगम संगीत में लय, ताल,आरोह और अवरोह की आवश्यकता होती हैं।

यदि हाथी बिना सूंड का हो, नागराज के पास जहर न हो, विशाल सागर में लहरों के उफान न हो, अग्नि में तपिश न हो, ………….तो क्या होगा ????

Target
लक्ष्य

इसी प्रकार यदि मनुष्य के जीवन मे लक्ष्य न हो……….तो क्या होगा ???? बिना लक्ष्य के किसी मनुष्य का जीवन बिल्कुल बेकार होता हैं। धिक्कार है ऐसे जिंदगी पर !!!!

शिखर के जीवन का भी एक ” लक्ष्य ” है…..नाम, पैसा, शोहरत और इसके लिए जरूरी है अभिनय के शिखर पर अपनी सफलता का परचम लहराना। मुंबई की फिल्म नगरी बॉलीवुड में अपने आपको एक बेहतर ” अभिनेता ” साबित करना। संघर्ष जारी हैं।

               STRUGGLE IS ON

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Struggler (उपन्यास) 3 : मायानगरी मुंबई

मुंबईकी माया को कोई आज तक समझ नहीं पाया हैं। माया नगरी हैं यह माया की नगरी……जो सबको अपने भ्रमजाल में उलझाए हुए हैं..…...फँसाये हुए हैं…….मुंबई नगरिया तो जैसे जादू की कोठरी भी हैं। इस कोठरी में कोई प्रवेश द्वार नहीं बना है इसलिए इस नगरी में प्रवेश के पहले काफी भटकना पड़ता हैं। बहुत भटकने के बाद कोई न कोई अदृश्य सुराख मिल ही जाता हैं जहां से बड़ी मशक्कत के बाद जादू की कोठरी वाली मुंबई की माया नगरी में घुसा जा सकता हैं। बाहर से कोठरी और अंदर से एक विशाल दुनिया।।।

Mumbai

इस दुनिया के सारे वाशिंदे आसमान को चूमने के लिए कूदते फांदते रहते हैं । किसी अपरा शक्ति के द्वारा यहां के लोगों की भावनाओं का संचालन होता रहता हैं। मृगतृष्णा वाली प्यास से व्याकुल हैं सब यहां । कस्तूरी की सुगंध से मस्त बावले रहते हैं यहां के लोग शबनम की बूंदों को चाटकर असीम तृप्ति का अनुभव करते हैं। अप्रतिम आनंद प्रदान करनेवाली अनुभूति। मायावी तिलस्मों की कोठरी है यह मुंबई की फिल्मी माया नगरी।।।।
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Struggler (उपन्यास) 4 : Compromise

ई हैं बम्बई नगरिया तू देख बबुआ,
सोने चांदी की डगरिया तू देख बबुआ……………..खैर, अब पहले की बम्बई आज की मुम्बई बन गई हैं।
भारतीय फिल्म के पितामह श्री दादा साहेब फाल्के की फिल्म ” राजा हरिश्चंद्र ” में तारामती का रोल सालुंके नाम के पुरुष ने किया था क्यों कि उस समय कोई लड़की, स्त्री फिल्म में काम करने के लिए तैयार नहीं थी। दादा साहेब फाल्के ने मजबूर होकर एक पुरुष को नारी वेशभूषा में सजाकर तारामती का अभिनय करवाया। यह हिंदुस्तान की पहली फिल्म जन्मोत्सव था जिसने आज शताब्दी से भी अधिक वर्ष का सफर तय करके अपना एक अविस्मरणीय इतिहास बना लिया जिसको पूरा विश्व सराहना की दृष्टि से देखता हैं। एक समय वह था जब लड़कियां फिल्म में काम करना अपमान समझती थी और एक समय आज है कि लाखों लड़कियां मुम्बई में बॉलीवुड की मल्लिका बनने के लिए दिन रात संघर्ष कर रही हैं। दिन का संघर्ष तो ऑडिशन, स्क्रीन टेस्ट, लुक टेस्ट, मीटिंग और शूटिंग में बीत जाता है लेकिन मुम्बई में अपने को टिकाए रखने के लिए, अपने महत्वकांक्षा ख्वाब वाली तितली को पकड़ने के लिए किसी के बिस्तर पर रात को संघर्ष करना पड़ता हैं जिसे बॉलीवुड जबान में कोम्प्रोमाईज़ कहते हैं। ये वक़्त वक़्त की बात है कि कभी लड़कियों ने हिंदुस्तान के पहले फिल्म में काम करने से मना कर दिया और आज ऐसी विडम्बना है कि प्रोड्यूसर्स डायरेक्टर्स के पास सैकड़ों हजारों लड़कियों की चॉइस है और जिसे सक्सेस चाहिए वो एक कदम आगे बढ़कर चॉइस की चॉइस बन जाये और बॉलीवुड में धमाल मचाये लेकिन ऐसा नहीं है कि कोम्प्रोमाईज़ करके ही सफलता मिलती है या ऐसा भी नही है कि जिसने कोम्प्रोमाईज़ नही किया वो लडकिया इंडस्ट्री में नहीं टिक पाई। ऐसा कोई हार्ड एंड फिल्म रूल नहीं है कोम्प्रोमाईज़ के डील को लेकर। यह काम बहुत विश्वसनीय, गोपनीय और आपसी समझदारी के साथ एक दूसरे का वादा पूरा किया जाता हैं लेकिन दुर्भाग्य से 99% लड़कियों को कोम्प्रोमाईज़ के बाद धोखा, वादा खिलाफी ही मिलती है क्योंकि आज के सपनों के सौदागर में वो दम नहीं कि किसी के सपनों का सौदा वो सामने वाली की औकात के हिसाब से कर सके और उनकी अपनी कोई औकात नहीं होती क्योंकि अगर उनकी अपनी औकात होती तो क्या काम की तलाश में आई संघर्षरत लड़की को बहला फुसलाकर झूठे सपने दिखाकर बिस्तर तक ले जाते ???? अपनी हवस की आग ही बुझानी हैं तो मुम्बई में कई अधिकृत कॉल गर्ल्स सेंटर्स है तो फिर अपने पेशे को क्यों बदनाम करना ???? बॉलीवुड को क्यों बदनाम करना ।।।। मर्द वहीं जो अगर कोम्प्रोमाईज़ करें तो अपनी डील को पूरा करें, अगर ऐसा नहीं कर सकता तो यह यौन शोषण है और लड़की के एक पुलिस कंप्लेंट पर वो सलाखों के पीछे जा सकता हैं। मुम्बई नगरी में ऐसी की घटनाएं सुनने देखने को मिलती रहती हैं।
बम्बई से मुंबई के नामकरण………..समय की गति को कोई नहीं जानता। समय सब का गुरु हैं। समय कभी किसी का इंतिजार नहीं करता बल्कि लोग समय का इंतिजार करते हैं। समय सदैव गतिमान रहता हैं। समझदार व्यक्ति वह हैं जो सही समय पर सही काम करें। जिसने समय का सम्मान किया , वह समाज के द्वारा सम्मानित होता हैं। लेकिन जो समय के मोल को नहीं पहचानता , धीरे धीरे उसका अस्तित्व मिट्टी में मिल जाता हैं। ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो आज सफलता के आसमान को चूम रही हैं लेकिन एक वो भी वक़्त था जब ये लड़कियां मजबूरी में किसी के बिस्तर पर इन्हें कोई और चूमता था कोम्प्रोमाईज़ डील के हिसाब से।।।।।।।। डील सक्सेस हो गई और जिंदगी बदल गयी  । लेकिन ऐसा सब लड़कियों के साथ नहीं होता क्योंकि किस्मत भी तो अपनी इम्पोर्टेंस दिखाती हैं।
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Struggler (उपन्यास) 5 : जीवन क्या है ?

आर्थिक असुरक्षा एवं कुछ न कर पाने का भय एक मुम्बईयाँ फिल्मी स्ट्रगलर को बार बार यह सोचने के लिए विवश करता हैं कि जीवन क्या हैं ???? अपने आप मे अधूरा और एक डरावना प्रश्न……यक्ष प्रश्न !!!!!

जीवन क्या हैं ? प्रत्येक आदमी अपनी जिंदगी को ढ़ोता है और अपने अनुभव के आधार पर सोचता हैं…………जीवन क्या है ? किसी ने जीवन जीने को जंग जीतना कहा हैं तो किसी ने जीवन को संगीत की उपमा दी हैं। किसी ने जीवन को महज पागलपन कहा है तो किसी ने जीवन को ईश्वर की अनमोल सौगात से तुलना की है। किसी ने जीवन को अभिशाप माना है तो किसी ने जीवन जीने की कला को एक महान वरदान कह कर जीवन को गौरान्वित किया हैं। अपनी अपनी सोच…..अपनी अपनी परिभाषा…..अपनी अपनी दृष्टि से जीवन को पहचानने का अनुभव…………आखिर ये जीवन है क्या ????????

मात्र जीवन यापन की जुगाड़ में छोटी मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने आपको होम कर देने वाले बहुतेरे मिल जाएंगे लेकिन उन लोगों की संख्या बहुत कम हैं जो जानते हैं कि येन केन प्रकारेण अपने रोजमर्रा आवश्यकताओं की पूर्ति के जुगाड़ ही जीवन नहीं है बल्कि जीवन का दायरा ऐसी सोच से बहुत ऊपर हैं। जीवन अमूल्य हैं। जीवन अनमोल हैं। दुनिया के किसी भी बाजार में इसका मोल भाव नहीं किया जा सकता हैं। जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे कैदी या अस्पताल में जीवन मौत से जूझ रहे कैंसर पीड़ित से पूछिए की उनके लिए जीवन का एक एक पल कितना अनमोल हैं ? कितना प्यारा हैं ?  और सबसे बड़ी विडंबना यह कि जीवन का अंतिम सत्य है……….मृत्यु। आम आदमी के लिए मृत्यु एक महान आश्चर्य का विषय हैं। यदि उत्पत्ति और विनाश की मध्यावस्था ही जीवन है तो जीवन की सार्थकता किसमें हैं ?????

एक स्ट्रगलर के लिए जीवन की सार्थकता उसके सपनों के पूर्ति होने में हैं जब वो बड़ी बड़ी फिल्मों में अभिनय कर रहा हो, बड़े बड़े निर्माता निर्देशक अभिनेताओं के साथ काम कर रहा हो,अखबार टी वि होर्डिंग सब जगह वह छाया हो, देश विदेश में उसके प्रशंशक हो जो उसके अभिनय का गुणगान करे, उसके व्यक्तित्व का यशोगान करे, आलीशान बंगला हो, महंगी कारें हो, करोड़ो रूपये बैंक बैलेंस हो, भोग विलास की सारी चीजें एक चुटकी पर उपलब्ध हो , दुनिया के बड़े बड़े अवार्ड रिवॉर्ड मिलता रहे…………….” लाइफ लाइव रहे ” इसी में एक स्ट्रगलर को अपनी जीवन की सार्थकता महसूस होती हैं। लेकिन ऐसे लाइफ की लाइवनेस क्या सभी स्ट्रगलरों की किस्मत में होती है क्या ???????????
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Struggler (उपन्यास) 6 : जरूरत , सहारा , मार्गदर्शन ।

अंगूर की बेल को सूखे बांस का सहारा चाहिए। अंगूर की लता बेल बांस को लपेटते हुए धरती से ऊपर चार पांच फीट पर छितरा जाती हैं और समय आने पर उसमे अंगूर के दाने लगने शुरू हो जाते है जो बाद में गुच्छे गुच्छे में लटक जाते हैं बशर्ते अंगूर की जड़ मिट्टी को बहुत गहराई से जकड़े रहे हैं।
पर्वतारोही को हिमालय पर चढ़ने के लिए मजबूत रस्सी की जरूरत होती हैं। मजबूत रस्सी के साथ यदि पर्वतारोही की कलाई भी मजबूत है तो ऊंचे से ऊंचा पर्वत भी पर्वतारोही के कदमों तले आ जाता हैं।
नए नए स्ट्रगलर जिन्हें मार्गदर्शन करने वाला कोई गॉडफादर नहीं होता उनके लिए सीनियर स्ट्रगलरों का सहयोग एवं मार्गदर्शन बहुत ही फायदेमंद साबित होता हैं। पुराने स्ट्रगलरों का भोगा हुआ कष्टकारी अनुभव नए स्ट्रगलरों के लिए एक ” लेशन ” बन जाता हैं। पुराने स्ट्रगलरों की बनाई हुई पहचान से नए स्ट्रगलरों के कई काम आसानी से बन जाते हैं। आवश्यकता ये हैं कि दोनों के मन मे एक दूसरे के प्रति सुखद सद्भावना हो जैसे अंगूर की लता बेल का बांस के साथ होता है, पर्वतारोही का मजबूत रस्सी से होता हैं। बिना सहयोग, मार्गदर्शन के मुम्बई का कोई भी स्ट्रगलर अपनी आन, बान, शान, नाम, पहचान का झंडा गाड़ ही नहीं सकता !!!!
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Struggler (उपन्यास) 7 : तकदीर

मुम्बईयाँ बॉलीवुड में कब किसके तकदीर का घोड़ा आगे निकल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। कौन सी फिल्म हो जाये, कौन सी फिल्म दर्शकों द्वारा नकार दी जाए, हिट फ्लॉप फिल्म का यहां कोई केमिस्ट्री फार्मूला नहीं हैं। कब कौन सा स्ट्रगलर किराए के वन रूम किचन से निकलकर मालाड से मीरा रोड के बीच 1BHK या 2BHK फ्लैट खरीद ले, कौन कब अपना फ्लैट गाड़ी बेचकर तंगहाली में आत्महत्या  कर ले, पता ही नहीं चलता !!! काश हर स्ट्रगलर के माथे पर उसका भविष्य लिखा होता तो क्या बात होती !!! बड़ी निराली दुनिया हैं यह मुम्बईयाँ बॉलीवुड की मायावी फिल्म नगरी……इसमे सात नहीं हजार रंग हैं। इसलिए शोहरत पाने के लिए अपना ” सब कुछ ” दांव पर लगा देते हैं ये महत्वाकांक्षी स्ट्रगलर

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फिल्मोनिया से पीड़ित नौजवान दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शाहरुख खान, अक्षय कुमार, गोविंदा और आज के स्टार नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सुनील ग्रोवर जैसे अन्य प्रसिद्ध कलाकारों की तरह अभिनेता बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आते हैं। शरुआत के दिनों में वह इसी नशे में मस्त रहता है कि बहुत जल्द मौका मिलते ही वह बच्चन,खन्ना,कुमार,खान जैसा महान एक्टर बन जायेगा…….वह आज के बड़े से बड़े सुपर स्टार्स की छुट्टी कर देगा…….लेकिन धीरे धीरे उसे आटे दाल का भाव पता चलने लगता हैं। इस चकाचौध की दुनिया मे धीरे धीरे उसे उसके औकात की पता चलने लगती हैं। अपने ख्वाबों के हैसियत से वह रु ब रु होने लगता हैं। विकट असहज परिस्थितियों से दो दो हाथ करते करते उसका मन अकुलाने लगता हैं। लेकिन विडम्बना ये की फिल्मी नगरी की चुम्बकीय आकर्षण उसे वापस लौटने नहीं देती। तब वह मजबूरी में हीरो न बनकर कुछ ” और ” बनने लगता हैं – चरित्र अभिनेता, राइटर, फाइटर, डायरेक्टर, मेकअप आर्टिस्ट, ड्रेस मैन, स्पॉटबॉय……………………………………………ख्वाब की तितलियां केवल खुशनशिबों की ही चुटकी में आती हैं बरखुरदार

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Struggler (उपन्यास) 8 : COMPROMISE DEAL

भारतीय सभ्यता एवं प्राचीन संस्कार के अनुसार स्त्री एवं पुरुष के शारीरिक सम्बन्ध के लिए कई मर्यादाएं निश्चित की गई हैं। सम्भोग से असीम एवं परम् आनंद की अनुभूति महसूस करने के अतिरिक्त सन्तान पैदा करने की प्राकृतिक व्यवस्था की गई हैं। सम्भोग का आनंद लोग शादी के पहले छिपकर या शादी के बाद सामाजिक स्वीकृति से आनंद लेते है परंतु विवाह के पहले सन्तान होना अनैतिक,असामाजिक एवं निंदनीय होता हैं। विवाहोपरांत सन्तानुतपत्ति को सामाजिक प्रशंशा मिलती हैं। विवाह के पश्चात सम्भोग एक उत्सव की तरह होता हैं लेकिन विवाह के पहले यही सम्भोग एक घृणित, कुत्सित अपराध की श्रेणी में आता हैं। समाज कितना ही आधुनिक हो जाये लेकिन वो खुलकर विवाह के पहले सेक्स की इजाज़त नहीं देता परन्तु वास्तविक स्थिति इस विचार के बिल्कुल विपरीत हैं। यौन शोषण के अपराध को रोकने के लिए सरकार ने भी कई कड़े नियम कानून बनाये हैं। जब कोई पुरुष किसी स्त्री के इच्छा के विरुद्ध उसके साथ जबरन शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता है तो यह यौन अपराध है। कच्ची उम्र के किशोर किशोरी विवाह के पहले हमबिस्तर होते है तो यह मानसिक, आत्मिक पाप हैं। लेकिन आज के आधुनिक 21वी शताब्दी में इस तरह के विचारों को दकियानूसी कहकर खारिज कर दिया जाता हैं। अब इसी सम्भोग या सेक्स के मुद्दे को बॉलीवुड के नज़रिए से देखने की कोशिश करते हैं।

यौन शोषण के सामाजिक अपराध और सामाजिक नियम को तोड़कर शारीरिक सुख के लिए किए जाने वाले पाप के अतिरिक्त एक बहुत ही मॉडर्न तरीका पिछले चालीस पैतालीस सालों से चलन में हैं। स्त्री की इच्छा नहीं है फिर भी वह उस पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के आमंत्रण को स्वीकार कर लेती है जो उसके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करता हैं। मतलब इच्छा भी नही है फिर भी अपनी मर्जी से खुशी खुशी उसके साथ हम बिस्तर होना है जो न तो उसका पति है न उसका बॉय फ्रेंड…….

उस पर सबसे मजेदार तुर्रा ये की न तो ये कोई क्राइम है और न ही कोई पाप ।।।।।।

ऐसे मामलों की सच्चाई ये हैं कि लड़की महत्वाकांक्षी है और लड़का इस लायक हैं कि वह उसे उसके महत्वाकांक्षा के सबसे ऊंचे पायदान पर चढ़ा सकता हैं।  जब ये महत्वाकांक्षा और उसके उसके साधन सहूलियत के बीच, किसी भी क्षेत्र में किसी भी सेक्टर में और खासकर दुनिया के सभी फिल्म इंडस्ट्री में, बॉलीवुड में भी………………दो युवा तन बदन के बीच इस तरह के सम्बंध पनपने लगते है जो ” Give & Take ” के फार्मूले पर आधारित होते हैं। ” Fuck & Forget “ जैसा आदर्श वाक्य तो फिल्म इंडस्ट्री का बहुत पुराना दस्तूर हैं कि Barter System जैसे तुम मुझे “काम”(एक्टिंग ) दो और काम के बदले मुझसे ” काम” (सेक्स) लो।
आजकल तो कई लड़कियां इस जुमले को बड़े शान से कहती हैं कि हमारी मुम्बईयाँ फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ दो ही चीजें चलती हैं,………..

या तो FUCK या तो LUCK……..
हाँ, एक बात और,

ऐसे COMPROMISE DEAL सिर्फ दो अपोजिट जेंडर के बीच ही नहीं होते, अब तो एक ही जेंडर के बीच ऐसे डील बहुत धड़ल्ले से खुलेआम हो रहे हैं। क्यों न हो भाई, फ़िल्म इंडस्ट्री ही तो फैशन के ट्रेंड सेट करती हैं तो क्यों न चलो कुछ थोड़ा तूफानी ही कर लिया जाए।

COME to fulfill ur PROMISE is COMPROMISE

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struggler (उपन्यास) 9 : वो दिन

जब हिंदुस्तान में मोबाइल नहीं आया था तब के समय दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय का प्रशिक्षण लेकर मुम्बई आने वाले अभिनेताओं को स्टूडियो में घुसने के लिए दरबानों से मिन्नते नहीं करनी पड़ती थी। निर्माता, निर्देशकों को फोन करके अपने आपको इंट्रोड्यूस करने की जहमत नहीं उठानी पड़ती थी। दिल्ली से मुम्बई रवाना होने के पहले उनकी टेलीफोन डायरेक्टरी में कुछ ऐसे लोगों के टेलीफोन नम्बर होते थे जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के मंच से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करके मुम्बई स्टारडम में अपनी किस्मत के साथ दो दो हाथ करने में मशगूल हैं। ठीक इसी तरह पुणे के फ़िल्म एवं टेलीविज़न संस्थान से अभिनय, निर्देशन, लेखन, कला, ध्वनि, छायांकन जैसी अन्य विधाओं में तकनीकी या पारंपरिक प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों को वर्ष में कई बार कई विशेष अवसरों पर मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई के नामी गिरामी फ़िल्मकारों, अभिनेताओं और अन्य प्रसिद्ध उस्तादों से  मिलने का मौका मिलता रहता था । ऐसे कुछ और नाट्य संस्थानों के विद्यार्थियों को अपने संस्थान के माध्यम से मुम्बई के किसी सफल व्यक्तित्व या संघर्षशील व्यक्ति से एक सम्पर्क स्थापित होता था जो उनके स्ट्रगल के दिनों में उनकी कठिनाइयों को कम करने के काम आती थी। एक वो समय था जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, श्री राम सेंटर, भारतेंदु नाट्य अकादमी, भारत भवन या इप्टा के विद्यार्थियों को एक आम स्ट्रगलर के मुकाबले बहुत कम तकलीफ होती थी क्योंकि उन्हें बहुत आसानी से कोई न कोई गॉडफादर या गाइड मिल जाता था लेकिन एक आम स्ट्रगलर………………..जिनका दूर दूर तक किसी नाट्य संस्थान से कोई नाता न हो, जिन्होंने सपने में भी कभी रंगमंच न देखा हो, जिनका फिल्मी दुनिया के आम आदमी से जान पहचान न हो………ऐसे लोग कई वर्षो तक मुंबई की सड़को पर सिर्फ एक चांस………..एक सही गाइड करने वाला मार्गदर्शक………. या एक गॉडफादर की तलाश में जूते घिसते घिसते उनकी जिंदगी निकल जाती थी लेकिन परिणाम निकलता था वही ढांक के तीन पात। बेचारा स्ट्रगल करते करते चूँ चूँ का मुरब्बा बन जाता था।
भारत मे मोबाइल आने से पहले फिल्मी दुनिया मे स्ट्रगल बहुत तकलीफदेह था क्योंकि बड़े निर्माता और निर्देशकों से सपंर्क करना भूसे में सुई ढूंढने जैसा था लेकिन मोबाइल आने के बाद कम से कम ये दूरियां बहुत कम हो गई और सोशल साइट्स की क्रांति ने तो डिमांड और सप्लाई के फलसफे को एक दूसरे के आमने  सामने खड़ा कर दिया। अब संवादहीनता की वो समस्या नहीं रही जो 1998 के पहले होती थी। संचार क्रांति ने स्ट्रगलरों  की जिंदगी में थोड़ी बहुत शांति तो जरूर दी हैं।

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Struggler (उपन्यास) 10 : Value- of Talent in film Industry

Struggler novel

यदि आप अच्छे लेखक हैं और आपके पास सुनाने दिखाने के लिए मजेदार कहानियां हैं, यदि आप गायक हैं और आप अपने मधुर आवाज से सुनने वाले को दिवाना बना लेने की काबिलियत हैं, यदि आप अच्छे नृतक हैं और अपने डांस स्टेप से दूसरों को चकित कर सकते हैं, यदि आप मिमिक्री आर्टिस्ट या स्टैंड अप कॉमेडियन है और आपको देखने सुनने वाला हंस हंस के लोटपोट हो जाये, आप कोई वाद्य बजाने में निपुण हो, कहने का मतलब ये हैं कि आपके पास ऐसी कोई भी क्षमता या योग्यता हो जिसे आप बड़ी कुशलता के साथ लोगों के सामने बेझिझक प्रदर्शित कर सके, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल है तो ऐसे कलाकारों को अधिक संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती हैं।मुम्बई फिल्मी दुनिया मे ऐसे कई पारखी हैं जो विशेष गुण सम्पन्न नव कलाकारों को खुले मन से ब्रेक देते हैं। समस्या उनके साथ होती हैं जो कहते हैं कि मैं एक्टर हूँ। अपने आपको एक्टर कहने वाले स्ट्रगलरों की संख्या बहुत ज्यादा हैं। अपने आपको एक्टर कहनेवाले स्ट्रगलरों के पास दिखाने के लिए कुछ फोटोग्राफ्स या उनके अभिनय की वीडियो लिंक्स होती है जो सामने वाले को खास आकर्षित नहीं कर पाती हैं। अब ऐसे स्ट्रगलर न जल्दी किसी के दिल मे उतर पाते हैं न किसी को अपने दिल मे उतार पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में उनका स्ट्रगल बड़ा बड़ा सूखा सूखा सा हो जाता हैं। कभी कभी तो बड़ी कोफ्त सी होने लगती हैं अपने आपको एक्टर कहने में……..लेकिन अब कर ही क्या सकते है……..जब तक कि एक बढ़िया मौका न मिल जाये अपनी एक्टिंग दिखाने का……….तब तक तो यूं ही करना पड़ेगा……….स्ट्रगल ।।।

जीवन लक्ष्य की बने फिल्मी एक्टर,
शुरू हुआ जमीं से आसमाँ का सफर,
दांव लगाया सपनों को खा रहे ठोकर,
नाम अपना करके रहेंगे एक दिन,
सीना ठोक कर कहता हैं स्ट्रगलर ।।।

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Struggler (उपन्यास) 11 – Dream city

एक फिल्म स्टार झोपड़ी में नहीं रहता, वह जुहू बांद्रा के समुद्र तट पर बने आलीशान वातानुकूलित बंगले में रहता हैं। एक टेलीविज़न स्टार लोखंडवाला से मालाड के अपने करोड़ो रूपये के 2 या 3 bhk फ्लैट में रहता हैं। एक सफल एक्टर सरकारी बस, ट्रेन, टैक्सी रिकसे में धक्के नही खाता, उसके पास उसकी अपनी ऐसी डीलक्स कार होती हैं। फिल्म या टेलीविज़न स्टार महीने की तनख्वाह नहीं उठाता बल्कि वह पूरे प्रोजेक्ट का या अपने एक दिन के शूट का मेहनताना लाखों करोड़ों रुपये लेता हैं। जिंदगी भर मुम्बई की सड़कों पर अनजान अजनबियों की तरह संघर्ष करने वाला स्ट्रगलर जब अपनी फेस वैल्यू बना लेता है तब उसे हर कोई जानता पहचानता है, उसके बारे में कहता सुनता हैं। एक सफल व्यावसायिक अभिनेता की इसी जिंदगी को जीने का ख्वाब लेकर हिंदुस्तान के दूर दराज इलाकों से लोग मुम्बई हीरो हेरोइन बनने आते हैं। अपनी किस्मत को आजमाने आते हैं। अपने सपने को इस ड्रीम सिटी की एटीएम में कैश कराने आते हैं………..और ये आने का सिलसिला एक रेला बन गया हैं। लोग आ रहे है आ रहे है आ रहे हैं।।।

Struggler novel

स्ट्रगलर मतलब कलाकार भावुक एवं संवेदनशील होता हैं। वह रंग बिरंगे इंद्रधनुषी सपनों का चितेरा होता हैं। संघर्ष और समझौते के बीच अपने मंजिल की राह पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता हैं। फिल्मों सीरियलों में मिलनेवाली सफलता, कलाकार के भाग्य पर निर्भर करती हैं। भाग्य का भोग ही कलाकार को आबाद या बर्बाद करती हैं। इसी मुम्बई की सड़कों पर कई स्ट्रगलेरों ने हताश होकर अपने जीवन का अंत कर लिया हैं। कई स्ट्रगलर अपने गांव से लाखों रुपये लाकर यहां की रंगीनियों में इन्वेस्ट करके कंगाल हो गए हैं। लेकिन यह बात भी जगजाहिर है कि इसी सड़क पर एड़ियां घिसनेवाले कई स्ट्रगलर भी हुए है जो रातों रात एक फिल्म या सीरियल में अभिनय करने के बाद लाखों करोड़ों दिलों की धड़कन बन गए हैं। जीरो से हीरो और अर्श से फर्श पर धराशाई होने की कहानियों की पृष्ठभूमि मुम्बई ही हो सकती हैं। समय अनमोल हैं। कौन है जो समय के मोल को समझ पाया है ?………कोई नही !!!

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Struggler (उपन्यास) 12 : इंसान

Struggler novel

दुनिया मे सबसे बदजात प्राणी की नस्ल इंसान की है जिसे सामाजिक प्राणी कहा जाता हैं। इंसान से ज्यादा कमीना, हरामखोर, खुदगर्ज और कोई जीव हो ही नहीं सकता । ईश्वर का शुक्र मनाए की इंसान आदमखोर नहीं हैं लेकिन उसकी मनोवृत्ति इस आदमखोर प्रवृत्ति से ज्यादा खतरनाक हैं। मनुष्य मनुष्य का मांस भक्षण नहीं करता इसलिये वह मन, वचन और कर्म द्वारा अपनी निकृष्टता का प्रदर्शन करके असीम तृप्ति का अनुभव करता हैं। मुट्ठी भर सुख पाते ही महा अभिमानी और क्षण भर का दुख भोगने पर ईश्वर के समक्ष भीरू बनकर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहनेवाला जीव एड्स के वायरस से भी ज्यादा खतरनाक होता हैं। मैं यहां साफ करता चलूं की ऐसी मनोवृत्तियों से बहुत दूर होता है स्ट्रगलर।।। जो अपनी किस्मत की नाकामियों के वायरस का ही शिकार हो चुका हो वो भला आदमखोर कैसे बन सकता हैं। मेरे कहने का मतलब एक स्ट्रगलर के अंदर कमीनापन, हरामीपन और खुदगर्जी पास नहीं फटकती क्योंकि वो कला के करीब होता हैं।

लेकिन बेबस, लाचार स्ट्रगलर कभी कभी अपने आप से यह सवाल पूछता है कि, ” क्या सभी की उम्मीदें पूरी होती हैं ? क्या सपनें सच भी होते हैं ?”

जीवन की बिसात पर खड़े कर्म और भाग्य की मोहरें न जाने कब किसका पासा पलटकर उसे ताज़ और तख़्त का रुतबा प्रदान करें, और न जाने कब चारों खाने चित्त करके मैदान छोड़ने के लिए मजबूर कर दे।।। भविष्य के गर्भ में पलनेवाली होनी-अनहोनी को आज तक कोई भांप नहीं पाया हैं, जानना तो बिल्कुल असम्भव हैं। यह कैसी विडंबना है कि बदी के बदा को कोई बदल नहीं सकता । लेकिन एक स्ट्रगलर चाहे तो वो विधि के इस विधान को उलट पुलट कर रख सकता है क्यों कि दुनिया का सबसे कठिन काम एक सफल एक्टर बनना है और दुनिया का सबसे कठिन काम करने वाले को स्त्रगलर को इतनी छूट तो ईश्वर देता है कि यदि वो चाहे तो अपनी पहाड़तोड़ मेहनत से वो अपनी किस्मत में सुर्खाब के  पर लगा सकता है, वो अपनी जिंदगी के दिन में दो सूरज और रात को चार चांद भी लगा सकता हैं बशर्ते वो किसी लालच या शॉर्टकट के भंवर में न फसे तो…………..

*************************एक एक्टर बनना भाग्य की बात है और एक सफल एक्टर बनना परम सौभाग्य की बात है ।
अपने करैक्टर को परिपूर्णता के साथ जीना ही एक्टिंग होती हैं।
जो एक्टर अपने सपनो में कुछ और मिलावट करता है वो खोटा होता है ।
खोटा एक्टर ज्यादा दिन तक अपने को धोखे में रखकर  टिक नहीं सकता हैं।
हम छोटी छोटी ईट जोड़कर ही लम्बी ऊंची दीवार खड़ी कर सकते हैं……
जिसने इस बात को समझा वो सफल,
जिसने जानबूझकर भी नही समझा वो असफल,
क्योंकि दुनिया का सबसे कठिन काम है एक सफल एक्टर बनना,
वो भी बॉलीवुड में।।।

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Struggler (उपन्यास) 13 : सुख / दुःख

सुख की आयु बहुत कम होती है और दुख की आयु बहुत लंबी………..ऐसा हमे प्रतीत होता है लेकिन यथार्थ में ऐसा होता नहीं हैं। केवल हमारी अनुभूति उस सुख दुख के प्रति लम्बी छोटी बड़ी होती हैं। सुख दुःख की अनुभूति ही आंखों में चमक लाती है या आंसू बहाती हैं। दुःख का एक पल सुख के सौ वर्षों के बराबर होता हैं। समय परिवर्तनशील हैं। दुःख के दिन भी धीरे धीरे एक न एक एक करके गुजर जाते हैं।सांझ होने पर जब सूरज की इतनी बिसात नहीं होती कि वह अपने आपको अस्त होने से बचा सके तो सुख के उजाले का अनुकूल समय आने पर दुःख दर्द का अंधियारा अपने आप छट जाएगा। सुख दुःख दोनों एक सिक्के के दो पहलू है ।

Struggler novel

ऐसे ही मुम्बई में फिल्मी स्ट्रगल करनेवाले स्ट्रगलेरों की जिंदगी में भी दुःख का अंधियारा छटने लगता हैं जब धीरे धीरे उन्हें थोड़ा बहुत काम मिलने लगता है, थोड़ी बहुत उनकी पहचान बनने लगती है और एक ऐसा भी वक़्त आता है कि धीरे धीरे उनके प्रशंषकों की संख्या बढ़ने लगती हैं ।

दुःख केवल पीड़ा ही नहीं देता बल्कि जीवन के मूल्यों को समझाता भी हैं। सिद्धांत एवं आदर्शों को दुनिया के मन मस्तिष्क में मथता रहता हैं। कुछ नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और यही प्रेरणा एक स्ट्रगलर के खाली शून्य मन मे हौसलों का पहाड़ खड़े करने का काम करती हैं। इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि …………ग्लैमर के क्षेत्र में किस्मत ही सब कुछ होती हैं। जो जीत गया…….वही सिकन्दर……बाकी बंदर।।।

मनुष्य के अंतर्मन में किसी भी प्रकार की इच्छा जागृत हो, चाहे वह राजसी हो, तामसी हो या सात्विक। उस इच्छा की प्राप्ति के लिए वह तन मन धन से प्रयत्नशील हो जाता हैं। प्रयत्न करने पर साधारणतः सफल नहीं हो पाता तो वह कई तरह के हथकंडे अपनाना शुरू कर देता हैं………साम,दाम,दंड,भेद।।।

नीतिगत प्रयासों के बावजूद निराश होने पर वह अपने मन को समझाता है कि यह मंजिल मेरे भाग्य में नहीं है तो व्यर्थ में और  प्रयास क्यों करूँ, और समय क्यों गवाऊँ !!! खट्टे अंगूर वाली लोमड़ी की तरह सोचने पर वह परम संतोषी हो जाता हैं………सन्तोषम परम् सुखम।।।सच से समझौता करके सीधा सादा सुखमय जीवन व्यतीत करने में ही वह अपनी भलाई समझता है…………..ऐसी समझ हर स्ट्रगलर के जीवन मे कभी न कभी आती ही हैं। परन्तु यदि वह दुर्भाग्यवश अपने आपको समझाने बुझाने या फुसलाने में असफल रहा या उसने महसूस किया कि अगर थोड़ी और मेहनत कर ली जाए……थोड़ी और प्रतीक्षा कर ली जाए……तो बात जरूर बनेगी ……..तो समझो कि वह धुरंधर स्ट्रगलर या तो ताज ओ तख्त का शहेंशाह बनेगा या तो शहीद हो जाएगा। लेकिन अफसोस कि लोग उसकी ऐसी शहादत को ” कुत्ते से भी बदतर मौत ” का खिताब देकर खिल्ली उड़ाएंगे।

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Struggler (उपन्यास) 14 : समय और भाग्य

समय और भाग्य की लड़ाई में अक्सर आदमी की हालत चूँ चूँ के मुरब्बे की तरह हो जाती है। विकास के दौर में असहनीय पीड़ा सहनी पड़ती है और विकसित होने के बाद असीम आनंद की प्राप्ति भी भोगने को मिलती हैं । पतझड़ के बाद वसंत आता है, जेठ के बाद आषाढ़…………रात के बाद दिन आता है और दुख के बाद सुख……….जड़ के बाद तना, बौर के बाद फल, दूध से दही और दर्द से आंसू……….. प्रसव के बाद ममता वात्सल्य…………………. धूप-छाव के कई पड़ाव से गुजरने के बाद साँझ की गोधूलि में
” क्या खोया क्या पाया ”
का विचार करे तो कुछ लोगो को लगता है कि बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया और कुछ लोग महसूस करते है कि न कुछ खोया न कुछ पाया। कुछ ऐसा भी है जिनका मानना है कि जब कुछ खोकर कुछ पाया तो वह प्राप्ति भी किस अर्थ की ? शाश्वत सत्य का कथन है कि पाने और खोने के अनुपात में माथापच्ची न करते हुए संतोष करने में ही समझदारी है। दुर्भाग्यवश,ऐसे समझदारों की संख्या बहुत कम है। खास कर हमारी बॉलीवुड में मृगतृष्णा इतनी अधिक हैं कि कोई इस तरह का समझदार बनना ही नही चाहता भले ही वह पैदाइशी समझदार हो या किसी समझदार खानदान से ताल्लुक रखता हो !!!
सन्तोषम परम सुखम…………


Struggler (उपन्यास) 15 : मन के हारे हार है , मन के जीते जीत है ।

वृद्ध व्यक्ति जो अपने जिंदगी की लंबी पारी खेल चुका है,
वृद्धावस्था में शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर कमजोर होने के बाद,
वह अपने शेष बचे जीवन के बारे में कम लेकिन बीते हुये कल के बारे में अधिक विचारमंथन करता है। बाल अवस्था मे उसके आंखों में कितने सुनहरे स्वप्न थे, तरुणाई के दिनों में वह किन-किन समस्यायों से उलझा था, धर्मसंकट के क्षणों में उसके सहनशीलता की क्या भूमिका रही, बीते हुए दिनों की खोह में कितना कुछ खोया- कितना कुछ पाया, क्या क्या उपलब्धियां रही, स्वयं पर गर्व और जीवन पर गौरव करने योग्य है अथवा नही,- ऐसे न जाने कितने आत्मिक और बौद्धिक प्रश्न होंगे जो वृध्द वयक्ति के सुने मन मे गूँजते रहते है। यह कैसी विचित्र विडंबना है कि एक समय वह था जब एक नवजवान अपने भावी दिनों के बारे में सोचता है और एक समय यह है कि जब वही नवजवान,कल का नवजवान,आज तन और मन से बूढा होकर अपने अतीत की यादों में डूबता उतराता है।

स्ट्रगलर

ऐसे ही समय का बहाव भी मुम्बई के अधिकांशतः स्ट्रुगलरों को स्वप्न के साहिल से अलग थलग कर देता हैं या बहुत दूर कही और बहा ले जाता हैं। एक बड़ी अच्छी सुंदर पंक्ति है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। जब तक कोई स्ट्रगलर मन से कमजोर नहीं हो जाता तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता !!! लेकिन यदि वह स्ट्रगलर मन से हार जाए तो दुनिया की कोई ताकत उसे जीता नहीं सकती !!! अक्सर मन से वही हार मानते है जिनकी आंखों में दूसरे स्वप्न उगने लगते हैं। सावधान !!!!

यदि एक बार मन स्ट्रगल करने से डर गया या ऊब गया और बॉलीवुड के अलावा कही और सेट होने की बात दिमाग मे आई तो समझो… ‘अलविदा मुम्बई’ कहने के दिन आ गए । सीने में जलन,
आंखों में तूफान सा क्यों है, इस शहर का हर शख्स परेशान सा क्यो है ?

मुम्बई शहर हादसों का शहर है जहां रोज किसी न किसी के सपनों के साथ कोई न कोई हादसा होता ही रहता हैं।।।


Struggler ( उपन्यास ) 16 : सफल एवं श्रेष्ठ जीवन

भला ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसके मन मे सफल और श्रेष्ठ जीवन जीने की चाहत नही होती है ? ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसके मन में ऐसी अभिलाषा नही जन्म लेती है कि वह अपने जीवन मे कुछ ऐसा करे जिसके करण समाज मे उसकी अलग पहचान बने,
आदर सम्मान मिले एवं उसकी उपलब्धियों पर लोगों को गर्व और गौरव हो।

सफल एवं श्रेष्ठ जीवन
मुक्ता पत्रिका : 1993

किसी भी कर्म को करनेवाले कर्मयोगी या लक्ष्यप्राप्ति के लिए संघर्षरत महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के हौसले, उनकी राह-ए-मंजिल में आनेवाले सभी संकटो से टकराने के लिए बुलंद होते है और उनके मन मे एक ऐसी आस होती है कि किसी न किसी तरह किसी भी कीमत पर सफलता उनके कदम चूमेगी… आज नहीं तो कल ।लेकिन क्या सभी की आस पूरी होती है ? क्या सभी के सपने सच होते है ? क्या प्रत्येक महत्वाकांक्षी योद्धा अपने अंदर छिपी संभावना को संभव बनाने में सफल हो पाता है ? नही…नहीं बिल्कुल ऐसा नहीं हो पाता !!! किसी भी क्षेत्र के किसी भी कार्य को करने वाला व्यक्ति शत-प्रतिशत सफल नही होता है ?

जीवन के चाहत की बिसात पर बिछी कर्म और भाग्य की मोहरें कब कैसे कहाँ किसी का पासा पलटकर उसे सफल बना देती है तो किसी को चारों खाने चित करके असफल बना देती है। अपने लक्ष्यसिद्धि के लिए संघर्ष करनेवाला प्रत्येक वयक्ति चाहे वह विद्यार्थी हो, युवा हो, व्यपारी हो, बुद्धिजीवी हो, आध्यात्मिक हो, राजनैतिक हो, सामाजिक एवं सांस्कृतिक किसी भी क्षेत्र से संबंधित या कार्यरत हो,कभी न कभी वह ऐसे दुराहे पर आ खड़ा होता है जब वह “क्या करे ?” ” क्या न करे ?” के पंच परपंच में उलझकर दिग्भ्रमित हो जाता है। किसी ठोस विषय पर उसकी तुरंत निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। अपने स्वप्न को सच करने के लिए पल प्रति पल साधना करने वाला साधक कभी कभी दुर्भाग्यवश अपने लक्ष्य से इतना दूर हो जाता है कि उसके बुलंद हौसले पस्त हो जाते है। भविष्य अंधकारमय एवं शून्य प्रतीत होने लगता है। निराश मन मे अकूत विचारो का तूफान आता है, ‘क्या करे’-‘क्या न करे’ उहापोह में अनिर्णय अवस्था मे बोझिल तन मन से इसी तरह निर्थक संघर्ष करता रहे या अपनी वास्तविक परिस्थिति और भाग्य से समझौता कर ले ???

एक तथ्य स्पष्ट है कि किसी भी कार्य मे सफलता आसानी से नही मिलती है। सफलता कोई चमत्कार नही जो किसी तंत्र -मंत्र या टोने-टोटके के द्वारा प्राप्त की जा सके। दान या खैरात के द्वारा भी सफलता नही प्राप्त की जा सकती है। किसी भी कार्य मे पूरी तरह से समर्पित होने के बाद आपकी मनोकुल इच्छा पूरी हो ही जाएगी – ऐसा कोई सनातन ब्रम्ह नियम भी नही है। केवल जीतने की इच्छा लिए खेल खेलनेवाले खिलाड़ी अपनी हार को बर्दाश्त नही कर पाता है। खेल को खेल की भावना के साथ खेलना चाहिए।

मनुष्य परिस्थितयो का दास होता है। अपनी परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको परिवर्तित करनेवाले वयक्ति ही समझदारी के साथ, समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता Bहै। अपनी वास्तविक दयनीय स्थिति को छिपाकर झूठे छल-प्रपंच और दिखावटी जिंदगी जीनेवालो की स्थिति सुबह दोपहर और साँझ की परछाई की तरह घटती और बढ़ती रहती है।


Struggler (उपन्यास) 17 : Game of Name & Fame

ग्लैमर….ग्लैमर की चमचमाती, आंखों को चुंधियाने वाली माया की दुनिया…इस मायावी दुनिया मे नाम और पैसे के लिए struggle चलता रहता है। 100 में कोई एक ये name fame का game जीत जाता है लेकिन 100 में से 99 लगे रहते है पूरे जीवन भर सिर्फ एक आस के भरोसे की किस्मत अपनी भी चमकेगी, आज नही तो कल ।

एक स्ट्रगलर का संघर्ष तब अत्यधिक कष्टदायक हो जाता है, जब वह अपने पेट के लिए रोटी और सिर पर छत के जुगाड़ में दिन रात काम पाने के लिए मारा-मारा मुम्बई की सड़कों पर फिरता है। बड़ी मुश्किल से यदि कोई अच्छा ब्रेक मिल गया तो नंबर वन का ताज़ और प्रसिद्धि का तख्त पाने के लिए स्ट्रगल करना पड़ता है।
स्ट्रगल……..STRUGGLE ताज़ और तख्त पर कब्जा होने के बाद यदि कोई स्ट्रगल करता है तो, इतिहास गवाह है कि वह और पाने के चक्कर मे बहुत कुछ खोता चला जाता है क्योंकि ये शोहरत भी बड़ी कमीनी चीज है जो रात भर रुकने के बाद जैसे वेश्या चली जाती है वैसे ही ये शोहरत भी एक दिन चली जाती हैं।

आज तक किसी भी विजेता को अक्षय विजय का वरदान नही मिला है। दूसरा पहलू यह है कि सब कुछ पाने के बाद खोना ही खोना है।मुम्बइया फिल्म इंडस्ट्री में एक कहावत है कि ” दिल मिले या न मिले, सबसे हाथ मिलाते रहिये क्योंकि यह कोई नही जानता कि कब, कहाँ और कैसे, किसके नाम की लॉटरी खुल जाए ।”

स्ट्रगल के दिनों में बहुत से निर्माता निर्देशको ने, यहाँ तक कि कुछ अभिनेता और अभिनेत्रियों ने, कई निर्माता निर्देशकों ने एक दुबले पतले लंबे स्ट्रगलर अमिताभ बच्चन की खूब हँसी उड़ाई थी। लेकिन समय का चक्र बदला और वही अमिताभ बच्चन जिसकी आवाज को आकाशवाणी मुम्बई के अधिकारियों ने भोंडी और कर्कश कह कर उन्हें उद्घोषक के पद पर नियुक्त नही किया था,उसी भोंडी कर्कश लेकिन भारी आवाज के मालिक अमिताभ बच्चन ने एक दो नही….पूरे पैतालीस साल तक, एक दो नही….लगभग सौ से अधिक फिल्मो में अपने बेमिसाल अभिनय के दम पर एंग्री यंग मैन सुपरस्टार बनकर इस स्टारडम में एक छत्र राज्य किया…..और अमिताभ बच्चन उसके बाद आज तक इतिहास बनाते जा रहे है। और एक ऐसा इतिहास जो अगले सौ सालो तक कोई नही तोड़ सकता। इसीलिए अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कहा जाता हैं। अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व और उनके संघर्ष के दिनों से प्रेरणा लेकर,एक दो नही बल्कि पच्चास हजार से अधिक स्ट्रगलर मुम्बई की सड़कों की खाक छान रहे है। प्रत्येक स्ट्रगलर को विश्वास है कि किस्मत अपनी भी चमकेगी, आज नही तो कल।

आज के निर्माता – निर्देशक परोक्ष रूप से किसी स्ट्रगलर को अपमानित नही करते, क्योंकि वो भी जानते है कि इन्ही स्ट्रगलरो में से कल कोई अमिताभ बच्चन बनेगा।।।।।।


Struggler (उपन्यास) 18 : हिट और फ्लॉप

मुम्बई शहर तो फिल्म निर्माण की फैक्ट्री है। तमिलनाडु के चेन्नई में भी फिल्मे बनती है….मुम्बई से उन्नीस या बीस का मुकाबला चेन्नई का चलता रहता हैं। मुम्बई में हर भाषा की फिल्में बनती है लेकिन चेन्नई में केवल तमिल भाषा मे फिल्मे बनती हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, गुजरात, राजस्थान, असम , बिहार , नार्थ ईस्ट , पंजाब और पश्चिम बंगाल में पूरे वर्ष भर में औसतन चालीस पचास क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में बनती है जिसमे से कई फिल्में तो करोड़ों का व्यापार करती है और कई फिल्में बड़ी मुश्किल से अपना लागत वसूल पाती हैं या औंधे मुंह गिर जाती हैं। बड़े किस्मत वाले वो प्रोड्यूसर होते हैं जिनकी फिल्में लागत के साथ मुनाफा भी कमा लेती है। अन्य राज्यों की अपेक्षा तमिलनाडु में वर्ष भर में अत्यधिक फिल्मे बनती है। तमिलभाषा, मलयालम एवं तेलगु भाषा की फिल्मों के सुपरहिट नायक-नायिका को वहाँ की जनता देवी देवता का दर्जा देकर पूजती है। भगवान के मंदिरों की तरह अपने सुपर स्टार्स के मंदिर बनवाती है। सिनेमाघरों में स्टाल और बालकनी के अलावा पूरे तीन घंटे तक खड़े होकर स्टैंडिंग टिकट लेने का रिवाज तमिलनाडु,आंध्रप्रदेश और केरल में प्रचलित है। फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने का क्रेज तो देखते ही बनता हैं।

हॉलीवुड के बाद बॉलीवुड पूरी दुनिया मे अपना नाम की चमक रखता है। हॉलीवुड फिल्मों के मुकाबले में बल्कि उनके टक्कर में एक कदम आगे बढ़कर मुम्बई बॉलीवुड ने एक से बढ़कर एक ऐसी हज़ारो फिल्मे बनाई है जो कनाडा, टोरंटो, शिकागो,लंदन और फ्रांस के अलावा रूस तथा दुबई, पाकिस्तान के साथ साथ श्रीलंका और नेपाल में लाखों करोड़ों सिने दर्शको के दिल पर राज कर चुकी है। अस्सी और नब्बे के दशक में तो कई भाषाओं की कई फिल्में दो-तीन महीनों तक वहां के सिनेमाघरों में भीड़ खींचने में कामयाब रही है।

प्रत्येक सप्ताह यहाँ कम से कम एक और ज्यादा से ज्यादा कई फिल्मों का मुहूर्त संपन्न होता है। एक वर्ष में लगभग आठ सौ से हजार छोटी बड़ी, A ग्रेड B ग्रेड C ग्रेड की हिंदी फिल्में बनती है जिसमे से आधी से अधिक फिल्में किसी न किसी कारण से आधी अधूरी बनकर डिब्बे में बंद हो जाती है। वर्ष में लगभग चार सौ से छः सौ हिंदी फिल्मे पूरे देश में प्रदर्शित होती है जिसमे से पंद्रह बीस फिल्मे सुपर हिट, सौ फिल्मे सो-सो हिट और बाकी फिल्में सुपर डुपर फ्लॉप हो जाती है।

यह मुम्बई है……
यहा रातोंरात रोडपति से करोड़पति और लखपति से दरिद्रपति बनने का खेल चलता रहता है। धन्य है बॉलीवुड और धन्य है बॉलीवुड के महान धुरंधर ! !


Struggler (उपन्यास) 19 : struggle of strugglers

स्ट्रगलर और उसका स्ट्रगल…मन में एक आस है कि कभी न कभी अपनी बात भी कही न कही तो बनेगी जैसे दिलीप कुमार, देवानंद, सुनील दत्त, मनोज कुमार, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन ,मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा, शाहरुख खान, राजपाल यादव, विजय राज, इरफान खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ऐसे कई लोग हैं…….जिन्होंने बड़े कड़े स्ट्रगल के बाद अपनी मंजिल पाने में आखिर सफल हो ही गए। मनोज वाजपेयी ने नौ साल बाद तो नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को बॉलीवुड स्टारडम में अपनी पहचान बनाने में बारह साल लग गये।

जो बॉलीवुड में सफल हो गए वो मुक्कदर के सिकन्दर हो गए लेकिन सबके मुकद्दर में सिकंदर बनना नही लिखा होता। स्पॉट बॉय से निर्देशक बने प्रकाश मेहरा,लॉरेंस डिसूजा जैसे नामी निर्देशक ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि एक दिन वे इस फिल्मी दुनिया मे अपना इतिहास लिखेंगे। स्ट्रगल तो हर किसी को करना पड़ता है। कुछ लोग भरे पेट संघर्ष करते है तो कुछ लोग खाली पेट । लेकिन एक बात तो पक्की है कि स्ट्रगल के दिनों में बहुत पापड़ बेलने पड़ते है।

भयंकर पीड़ा भोगनी पड़ती है। सामाजिक उपहास को झेलना पड़ता है। एक बार जो यहाँ आ गया वह वापस नही लौट पाता। यदि वापस लौटा भी तो वह किसी काम का आदमी नही रह जाता। फिल्मी दुनिया मे असफलता का कड़वा घूंट पीकर लौटा स्ट्रगलर और सीमा पर पीठ पर गोलियां खाकर भाग आया सैनिक ,इन दोनों की समाज मे कोई इज्जत नही होती। स्ट्रगलर हो या सैनिक ,अगर अपना लक्ष्य तय कर लिया तो आपकी जयजयकार …असफल हो गए तो आपके जीवन को धिक्कार…इसलिए स्ट्रगलर और सोल्जर को विजय प्राप्ति के लिए घनघोर लड़ाई लड़नी ही पड़ती हैं। बीच लड़ाई में मैदान छोड़कर भागने वाले भगोडे सैनिक और फ्रुस्टेड स्ट्रगलर का जीवन पेड़ के उस ठूठे लकड़ी की तरह होता है जिस पर न तो कपोले अंकुरित होते है और न ही जलाने के काम आता है। इसलिए बहुत सोच समझकर फौज और फिल्म में भर्ती होने का निर्णय लेना चाहिए।

 

जो लोग बिना सोचे समझे, बिना किसी रणनीति के, सिर्फ ख्याली पुलाव बनाकर हवा हवाई में एक कदम आगे बढाते है तो समझ लीजिए कि उनका दूसरा कदम दलदल में ही पड़ने वाला है।
दलदल में पड़े कदम तो जिंदगी झंड हो जाती हैं और झंड जिंदगी की बड़ी दुख भरी कहानी होती हैं जिसके दर्द को कोई और न समझता है, न समझने की कोशिश ही करता हैं!!! दुख कॉमन है!
दुख के कारण हजार!! सबका अपना अपना दुख है। क्यों है ?
कब है ? क्या उपचार है ? नाना प्रकार के उत्तर आपको दुखियो के मुख से सुनने को मिलेंगे। किसी की शादी नही हो रही है तो वह दुखी है। किसी कि शादी हो गई और चरित्रहीन दुष्टा स्त्री मिल गयी तो वह दुखी है। सब कुछ बराबर है तो दहेज में हुई फरेबी के कारण वह दुखी है। कही सास बहू से तो कही बहु अपने सास से दुखी है। कोई पुत्रहीन हो तो दुखी है। किसी को मानसिक विकलांग पुत्र की प्राप्ति हुई है तो दुखी है। किसी को पुत्र देकर काल ने उससे छीन लिया तो वह दुखी है।

 

कमाई धमाई ठीक नही है तो दुखी है। जिनके पास अकूत धन है तो सरकार की निगाह से बचाये रखने में परेशान है, और यही परेशानी उसके दुख का कारण है। कोई दिल के बीमारी से दुखी है तो कोई भरी जवानी में सिर के काले बालो के अंधाधुंध झड़ने से दुखी है।
चना है लेकिन दाँत न होने के कारण दुखी है, तो कोई दाँत है लेकिन सड़ने और पायरिया के दर्द से दुखी है। मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ है और उनकी प्रार्थना याचना सुन-सुन कर भगवान दुखी है तो सत्यनारायण की महापूजा सुनाने के बाद यजमान से पर्याप्त दान -दक्षिणा न मिलने पर पंडित जी दुःखी है।  कोई शराब के लिए मोहताज है तो कोई शराब में सब कुछ डुबाकर दुखी है।
दुख का अस्तित्व वायु की तरह है जो सर्वत्र व्याप्त है।
हवा को न किसी ने देखा ,न स्पर्श किया हम केवल महसूस करते है। ठीक उसी तरह दुख को हम केवल महसूस करते है ।
स्ट्रगलर भी केवल दुख को महसूस करता हैं। वो अपना दुख किसी को कह नहीं पाता क्यों कि कोई उसका दुख या उसके दुख के कारण को समझ नहीं सकता। एक स्ट्रगलर के दुख का कारण समाज के लिए बेमानी हैं क्यों कि स्ट्रगलर्स को अक्सर उड़ता हुआ तीर लेने की उलाहना मिलती रहती हैं। ” मेरा दरद न जाने कोय ” गाता गाता बिचारा स्ट्रगलर घाट घाट घूमता रहता है क्योंकि उसे पता है कि उसके दुख दर्द की सही दवा क्या है ? सही इलाज क्या हैं ?


Struggler (उपन्यास) 20 : Don’t Give up

नाई की गलती या उसकी भूल से बंदर के हाथ अगर दाढ़ी बनाने का उस्तरा लग जाये तो…। बंदर के हाथ उस्तरा!! यह संयोग बंदर के लिए बड़ी हास्यास्पद होगी और मुहल्ले वालो के लिए बहुत ही दुखद। दाढ़ी बनाये जानेवाले उस्तरा को बंदर अपनी बुध्दि के हिसाब से उपयोग दुरुपयोग करेगा। इसके चलतेें उसकी उंगली भी कट सकती है, और नाक भी कट सकती है। यदि किसी व्यक्ति ने उसे चिढ़ाया-खिजाया तो बंदर उस्तरा फेक कर मारेगा और उस व्यक्ति का सिर भी फुट सकता है या उसकी चमड़ी छिल सकती हैं।

बंदर के हाथ मे यदि उस्तरा है तो कुछ भी हो सकता है। नाई एक बार भूल या लापरवाही कर सकता है लेकिन इस दुनिया को बनाने वाले परमात्मा ,कभी किसी भी व्यक्ति को उसकी योग्यता  , प्रतिभा और शिक्षा से अधिक अधिकार नही देते। ….अन्यथा यह अधिकार उस व्यक्ति के लिए बंदर के हाथ मे उस्तरा की तरह ही घातक होगी। इंजीनियरिंग कॉलेज में हजारों लाखों विद्यार्थी पढ़ते है लेकिन सभी तो इंजीनियर नही बन जाते। डॉक्टरी पास करने वाले सभी छात्र एम.डी और एम.बी.बी.एस. ही नही होते बल्कि कुछ नेत्र विशेषज्ञ होते है, कुछ भगंदर बवासीर के इलाज में माहिर होते है। इसी तरह मुम्बइया फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल करने वाला हर स्ट्रगलर हीरो ही नही बनता। कुछ सुपरस्टार बनते है तो कुछ केवल कलाकार। कोई लेखक बन जाता है तो कोई कैमरामैन। कोई किसी सुपर स्टार का सेक्रेटरी बन जाता  है तो कोई किसी सुपर स्टारनी का का मेकअप मैन, ड्रेसमैन या स्पॉट बॉय। कोई जूनियर आर्टिस्ट सप्लाई करने का धंधा करता है तो कोई लडकिया सप्लाई करने का गोरखधंधा। अपनी किस्मत और योग्यता के बल पर प्रत्येक स्ट्रगलर किसी न किसी खांचे में अपने आपको फिट कर लेता है। वो स्ट्रगलर कायर होते है जो निराश होकर मुम्बई छोड़ देते है और तो कुछ स्ट्रगलर अभागे होते है जो जहर खाकर या लोकल ट्रेन के नीचे कटकर अपनी लाइफ की स्ट्रगल का THE END कर देते है। हालांकि ऐसे कायर और अभागे स्ट्रगलरो की संख्या बहुत कम है या न के बराबर ।

एक कहावत है कि “जो मुम्बई में कुछ नही कर पाया, समझो कि वह दुनिया के किसी भी कोने में सफल नही हो सकता।”
जो मुम्बई में कुछ करने लगा तो वह मुम्बई की परिधि के बाहर नही निकल सकता क्योंकि यह मुम्बई….चमत्कारी नगरी….माया की नगरी ….मुम्बई में जो कुछ भी चकाचौंध है तो केवल फिल्म इंडस्ट्री की वजह से हैं। अगर इस फिल्मी चक्कर को इस शहर से निकाल कर अलग कर दे तो क्या बचेगा आमची मुम्बई में….? कुछ भी नहीं बचेगा सिवाय बाबा जी के ठुल्लू के !!!


Struggler (उपन्यास) 21 : 99% failure 1% success

मुम्बईया बॉलीवुड फिल्म नगरी में एक दो नहीं, लाखों स्ट्रगलर सड़क की खाक छान रहे है। कुछ मुम्बई के मूल निवासी है तो अधिकतर स्ट्रगलर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार,पंजाब,हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और नेपाल से भी आते है। मुम्बई में सबसे बड़ी तकलीफ रहने की हैं। झुग्गी-झोपड़ी,खोली-चाल, वन रूम किचन-वन बी एच के में लोग बहुत बड़ी रकम किराए के रूप में देने कर लिए मजबूर हैं अलबत्ता अगर रहने का जुगाड़ हो गुण तो…वैसे रहने की व्यवस्था लोग अब मुम्बई के बाहर करने लगे है जहां किराए के मकान मुम्बई की तुलना में थोड़ा बहुत सस्ते में है लेकिन आने जाने में कम से कम तीन से छह घण्टे यात्रा में ही लग जाते हैं।

खैर…रहने,खाने-पीने की तकलीफ के साथ आर्थिक संकट झेलते हुए एक अच्छे मौके की तलाश में एक कलाकार जी जान से अपने को कामयाब बनाने के लिए संघर्षरत रहता है। प्रत्येक स्ट्रगलर सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को अपना भगवान समझता है। उनके स्ट्रगल के दिनों की कहानी से प्रेरणा लेकर एक न एक दिन कुछ बनकर दिखाने की तमन्ना के साथ दिन रात अपने आपको कड़े संघर्ष से लड़ने के लिए मुस्तैद करता रहता है। यहाँ ऐसा कोई नियम नही है कि फलां फलां समय तक संघर्ष करने के पश्चात आप सफल हो ही जायेंगे। कहने का मतलब साफ साफ यह भी है कि इस इंडस्ट्री में निन्यानबे प्रतिशत (९९%) संभावना असफलता की है और एक प्रतिशत (१%) संभावना सफलता की। यहां मेरा मन्तव्य किसी को नकारात्मक सोच की दिशा में प्रेरित करना नहीं है बल्कि सच्चाई की धरातल पर दौड़ने के पहले मानसिक रूप से मजबूत करना हैं। सफलता असफलता कि तराजू में भाग्य के महत्व को बिल्कुल नकारा नही जा सकता हैं। यहाँ जो जीता वही सिकंदर। जो फिट वो हिट बाकी सब फ्लॉप।मुम्बई महानगरी की फिल्मी जादुई नगरी की अपनी एक अलग चमक है, अपना अनोखा इतिहास है जिसकी चकाचौंध से आकर्षिक होकर हजारों लाखों फिल्मी दीवाने परवाने इस ओर खींचे चले आते है। यहां सफलता मिलना इतना आसान नहैं है लेकिन एक बार सफल हो गए तो आपको इतना मान-सम्मान ,यश और धन की प्राप्ति होगी जिसकी आपने कभी सपने में भी कल्पना नही की होगी।

जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है और फिल्मी दुनिया का संघर्ष सभी के बस की बात नही है। केवल जीवट व्यक्ति ही इस संघर्ष में टिक सकता है , बाकी ऐरे गैरे नत्थू खैरे कुछ ही महीना,
कुछ वर्ष में अपनी हैसियत से हारकर अपनी क्षमता को समझकर इस लाइन से दूर हो जाने में ही समझदारी का काम करते हैं लेकिन जो एक बार इस समझदारी को समझने से चूक जाता हैं फिर तो समझो ईश्वर ही उसका माई बाप हैं।  स्ट्रगलरों के बारे में अगर विस्तार से कहानी लिखी जाये तो एक क्या, अनगिनत स्ट्रगलर महापुराण तैयार हो सकता है। लाखों स्ट्रगलरो की राम कहानी एक जैसी नहैं है…. सभी के जीवन में हजारों रंग है… अनेको मोड़ है… भिन्न भिन्न सिद्धान्त और आदर्श है….लेकिन सबके सपने एक है….मंजिल एक हैं…जीवन का उद्देश्य एक है….. लक्ष्य एक है…..

ठहरा हुआ पल,
आज नहीं तो कल……

फिर चल पड़ेगा.
सपनों के उफान पर……


आवाज़ ही पहचान हैं।

Quality of Sound

 

जी हां !! आज हम ध्वनि के विषय में बात करेंगे कि कलाकारों के लिए उनकी आवाज़ क्या मायने रखती है ?

उनके लिए आवाज़ के उतार चढ़ाव का क्या महत्व है ?

अपने संवाद और उसकी अदायगी को लेकर कितना गंभीर रहते हैं ?

आवाज़ कलाकारों के लिए उसका सबसे बड़ा धन होता है।

आवाज़ ही कलाकार की पहचान होती है ।

आवाज़ एक ऐसा एहसास है, जिसे दूर से सुनने से ही पता चल जाता है कि कौन आदमी बोल रहा है, कौन गा रहा है, कौन गुनगुना रहा है, कौन हंस रहा है।

किसी की आवाज बहुत ही मधुर होती है, किसी की आवाज कर्कश होती है , किसी की आवाज पतली होती है अर्थात अलग – अलग आवाजें होती हैं। किसी की आवाज बहुत ही खास होती हैं । किसी की आवाज इतनी कर्कश होती है कि लगता है कि नहीं नहीं, इसकी आवाज नहीं सुन सकते !!! बहुत ही परेशानी होती है किसी की आवाज़ सुनने पर। अर्थात हम उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं।

कुछ आर्टिस्ट ऐसे हैं जो अपनी आवाज को लेकर बहुत दुखी रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी आवाज अच्छी नहीं है । अपनी आवाज की तुलना बड़े-बड़े आर्टिस्टो की आवाज से करते हैं और सोचते हैं कि मेरी आवाज उनके जैसी क्यों नहीं है ?

आवाज के चलते ही लोग फेमस होते हैं। कोई कोई आर्टिस्ट सोचता है कि मेरी आवाज में बेस नहीं है, या मेरी आवाज बहुत पतली है ,बहुत मोटी है, एक तरह से हीन भावना वाली फीलिंग आती है। उन्हें लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपनी आवाज से ही कहीं-कहीं सिलेक्ट होने में मात खा जाते हैं। हमारी आवाज के चलते कोई कोई काम हमारे हाथ में आते आते रह जाते हैं।

तो ऐसा क्या करें, कौन सी तरकीब लगाए कि हमारी आवाज खूबसूरत हो, बेस वाली हो ,बोल्ड हो अर्थात आवाज को कैसे मधुर, खनकदार, यादगार बनाना है ?

कैसे मजबूत बनाना है ?

कैसे उसको खास बनाना है ?

यदि आप इस तरह की भ्रांतियों से परेशान है तो घबराने की कोई जरूरत नहीं और न ही हीन भावना से ग्रसित होने की जरूरत है क्योंकि यह ईश्वर का दिया हुआ उपहार है। हम अपनी आवाज़ को ज्यादा चेंज तो नहीं कर सकते पर इसको पॉलिश जरूर कर सकते हैं। अब अमिताभ बच्चन जी को ही ले लो कि पहले इन्हीं की आवाज को रिजेक्ट कर दिया गया था रेडियो में ……..और आज देखो अमिताभ बच्चन जी की आवाज हमें बढ़िया-बढ़िया ऐड में सुनने को मिलती है । अनेकों सरकारी ऐड में सुनने को मिलती है ।

फिल्मों में तो उनकी आवाज़ की बादशाहत आज भी कायम हैं।

यहां तक कि कई कोई गाने ऐसे हैं जिसमें अमिताभ बच्चन जी ने अपनी आवाज दी है जिसे बहुत सराहा गया हैं, पसंद किया गया है।

अमिताभ बच्चन की तरह एक और फ़िल्म अभिनेता रज़ा मुराद साहब है उनकी आवाज को ले लो, अमरीश पुरी साहब थे उनकी आवाज, कुलभूषण खरबंदा जी की आवाज, जिन्हें हम दूर से सुनने पर पता लगा लेते हैं कि यह कौन से कलाकार की आवाज़ है, जिन्होंने अपनी आवाज के दम पर बहुत नाम कमाया है ,

तो हम भी अपनी आवाज “जैसा कि हमको फील होता है कि मेरी आवाज थोड़ी अच्छी नहीं है, थोड़ी सी पतली है या कर्कश है, भोंदी है” इसके लिए क्या करें ?

एक दो टिप्स है जिसे हम अपना कर अपने आवाज को पॉलिश कर सकते हैं । ऐसे आर्टिस्ट जो अपनी आवाज को लेकर हीन भावना में है । उन्हें यह वीडियो जरूर देखना चाहिए । उन्हें अपनी आवाज के चलते हीन भावना फिल करने की कोई जरूरत नहीं है। वह यह वीडियो देखें और कुछ टिप्स जाने कैसे अपने आवाज को अच्छा से अच्छा बना सकते हैं और अपनी आवाज की जादू से अपने दर्शकों को अपने सुनने वालों का मन मोह सकते हैं ।

बहुत सारे कैरेक्टर हमें ऐसे मिल जाते हैं, जिसमें हमें बहुत चिल्लाना पड़ता है, बहुत गुस्सा करना पड़ता है, तो उस चिल्लाहट में जो हमारी आवाज की जो शक्ति होती है कभी-कभी आगे जाकर कमजोर पड़ जाती है। थकी हुई सी लगने लगती है। फस जाती है, दब जाती है। हमारी आवाज कमजोर न हो, थके न, और अपना कार्य करती रहे…. इसलिए हमें अपनी आवाज के लिए कुछ एक्सरसाइज करनी चाहिए। कलाकारों को अपनी आवाज पर खासतौर पर ध्यान देना चाहिए । जिसके कारण उन्हें अपने डायलॉग बोलने में दिक्कत न हो। किसी भी तरह की आवाज में परेशानी न हो, चाहे रोना पड़े, चिल्लाना पड़े, तो भी उनकी आवाज में कोई खराश न आए। इसके लिए उन्हें अपनी आवाज पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ऐसे बहुत सारे आर्टिस्ट है जिन्हें पता नहीं होता कि अपनी आवाज़ को सुधारने के लिए क्या करें ?

अपनी आवाज को निखारने के लिए क्या उपाय करें ताकि उनकी आवाज भी एक अपनी पहचान छोड़ जाए । हालांकि यह ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया उपहार है, भगवान ने सबको अपनी अपनी आवाज के साथ अपने अपने चेहरे मोहरे के साथ इस दुनिया में भेजा है जो उनके लिए खास होती है क्योंकि भगवान की रचना अकारण नहीं होती !!!

अतः अपने आवाज पर हीन भावना से ग्रसित होने की कोई जरूरत नहीं है। उसे सुधारने की जरूरत है । उसे पॉलिश करने की जरूरत है।

आपके सुझाव और विचारों का स्वागत है । कृपया वीडियो को देखकर उसे सब्सक्राइब करना न भूलिएगा।
धन्यवाद।।।

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