” आओ विशाल आओ।” विशाल के साथ एक अपरिचित को देखकर राज ने दोनों को अंदर आने की इशारा किया । विशाल ने गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया और उस नवयुवक न हाथ जोड़कर नमस्ते किया ।
“क्या ढूंढ रहे हैं सर ? राज के चेहरे को देखकर विशाल ने अनुमान लगा लिया कि वह कुछ ढूंढ रहे हैं ।
“तो कहाँ कंघी की मां मर गई है। विशाल ने अपने जेब से कंघी निकालकर राज के आगे बढ़ा दी राज अपने लंबे काले केश को पीछे की तरफ धकेलते हुए उस नवयुवक की तरफ आँखें मटकाई।
“सर ……यह मेरे दोस्त हैं …..संदीप सुर्वे विशाल ने कुछ रुक रुक कर अपने वाक्य पूरे किए क्योंकि उसके कहने का अंदाज ऐसा था कि दोनों में वर्षो पुरानी दोस्ती हो जबकि वे दोनों इसके पहले केवल दो बार मिल चुके हैं ।
“सर। संदीप कोल्हापुर के रहने वाले हैं।” विशाल ने आगे बताना शुरू किया, पिछले चार महीने से बंबई में है। फिल्मों में काम करने के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं ।”
“तो आपको भी फिल्मोनिया हो गया है ।” राज की व्यंग भरी मुस्कान देकर संदीप झेप गया ।
“अब इनकी प्रॉब्लम यह है कि अब तक यह किसी स्टूडियो में घुस नहीं पाए हैं । किसी भी डायरेक्टर से बात करना तो दूर की बात है ।” इतना कह कर विशाल राज का मुँह ताकने लगा ।
राज समझ गया कि अब उसे क्या कहना है , “अरे भई, इतना आसान थोड़े ही है कि आप खड़कपुर से बंबई आए और सुभाष घई को फोन किया कि लो मैं आ गया….., कहाँ के रहने वाले हो ? “
अचानक पूछे गए प्रश्न से संदीप चकचा गया लेकिन पल भर में संभलकर जवाब दिया, मइ कोल्हापुर का चालीस किलो मीटर आगे भागोली तालुका का रहने वाला हूँ।” संदीप की हिंदी में कोल्हापुरी मराठी बोलचाल का पुट था ।
“मुंबई में कौन रहता है आपका?”
” इदर मुंबई में मावशी रहती है मेरी।”
” कुछ पढ़ाई लिखाई किया है कि नहीं?”
” कॉलेज शिका है मइने ।”
“क्या करना चाहते हो तुम ये लाइन में?”
“मइ उदर मराठी नाटक में बहुतेक काम किया है । मेरे को हऊश है कि हिंदी फिल्म में काम करने का ।”
“लेकिन तुम्हारी हिंदी तो सदाशिव अमरापुरकर हमसे भी ज्यादा टिपिकल है।”
” हिंदी मेरा सुधर जाएगा ।”
“तो क्या करें इनका ?” मुँह बिचकाकर राज ने विशाल की तरफ देखा।
” मैंने इनको सब समझा दिया है सर।” विशाल ने संदीप को कुत्नी से स्पर्श किया संदीप इशारा समझ गया और जेब से कुछ नोट के बंडल निकालकर राज के सामने बढ़ा दिए, “सर मइ पिछला चार महिना से धक्का खा रहा हूँ। मेरे को आप जैसा बोलेगा मइ वैसा करेगा ।”
” तुम और कुछ करो या न करो, लेकिन हिंदी फिल्म में काम करना है तो मइ न बोलकर “मैं” बोलो “मैं” ।”
संदीप के मइ , मइ सुनते -सुनते राज बोर हो गया था। संदीप अपनी भाषा अशुद्धि उच्चारण के कारण शर्मिंदा हो गया । वातावरण में कड़वाहट को भांपकर विशाल ने इसे हल्का करने की कोशिश की , हर महीने हजारों “सर। ये हर महिने हजार रुपये देने को तैयार है I बदले में आपको इसे ट्रेन्ड करना है कि स्ट्रगल कैसे करते हैं , क किसी डायरेक्टर से काम कैसे मांगते हैं और आपके सर्कल में जो सीरियल या फिल्म बन रही है उसमें काम दिलाना है । फिफ्टी परसेंट अमाउंट भी देने को राजी है।”
” वो तो सब ठीक है, लेकिन इसमें टाईम लगेगा!”
“चलेगा सर…..म् म् म् मई ….मेरे को,” संदीप ने मई को मैं कहने की कोशिश की , मैं आपका मदद चाहता हूँ।”
संदीप के हाथ से नोट लेकर राज ने पूछा, “घर से पैसा मंगाते हो?”
” मेरा चिल्लर पैसे का धंधा है। मैं सो रूपये लेता हूँ और सत्तानवे रूपये का चाराना , आठना, एक रुपए का चिल्लर दुकान , होटल ,और पान वाले को देता हूँ ।”
अरे वाह….. चिल्लर का धंधा ….. वह भी तीन परसेंट कमीशन पर ……तुसी तोप हो तोप।” राज अभी बखान ही रहे थे कि संदीप ने अपने दूसरे धंधे के बारे में भी बता दिया , सर । मैं सुबह – सुबह चार बजे उठकर बीस रिक्शा भी धोता हूँ।”
” तो तू नाम करेगा …..वेरी गुड ……अच्छा, फिल्मालय स्टूडियो मालूम है ?”
” वो जोगेश्वरी वाला न?”
“हाँ। जोगेश्वरी के अंबोली एरिया में है लेकिन अंधेरी से नजदीक है। आज वहाँ तीन बजे मुझे गेट पर मिलना।” संदीप समझ गया कि अब उसे चलना चाहिए । उसने विशाल की तरफ देखा।
” ठीक है संदीप । अभी बारह बज रहे हैं। तीन बजे वहाँ आ जाना।” विशाल ने प्यार जताते हुए कहा।
” आप नहीं ….। संदीप का प्रश्न अधूरा रहा।
” नहीं ,नहीं….. अभी मुझे थोड़ा काम है । तीन बजे मैं भी आता हूँ।” विशाल ने अभी साथ में न आ पाने की असमर्थता जताई । बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाकर संदीप चला गया ।
“ना जाने कैसे-कैसे लोग बंबई में चले आते हैं हीरों बनने।” राज ने नोटों को गिनना शुरू किया ।
“जब अमिताभ बच्चन हिट हुए तो उत्तर प्रदेश से लोगों का आना शुरू हो गया। शाहरुख खान हिट हुआ तो दिल्ली का हर बंदा शाहरूख बनने के लिए बंबई की तरफ दौड़ लगाता है। मेरे को लगता है कि नाना पाटेकर के हिट होने के बाद ये संदीप सुर्वे कोल्हापुर से सीधे मुंबई पहुँच गया।” विशाल को हंसी छूट गई।
“अबे तू किसके हिट होने के बाद मुंबई आया ?” सौ-सौ के दो नोट निकालकर राज ने विशाल के हाथ में रख दिए।
“सौ रूपये और दे दीजिए I”
राज ने सौ रूपये और दे दिए ।
दस मिनट बाद विशाल अकेले ही खार – दंडा के सड़क पर खड़ा सोच रहा है कि जाएं तो जाएं कहाँ??
होटल चट्टान के पीछे की झोपड़पट्टी में रहने वाली सांवली सलोनी कुसुम का चेहरा उसकी आँखों में तैर गया। पहली मुलाकात के समय कुसुम ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और बालों में गजरा लगाया था। विशाल के मन में आया कि क्यों न आज दूसरी मुलाकात भी कर ली जाए?
* * *
भारतीय सभ्यता एवं प्राचीन संस्कार के अनुसार स्त्री और पुरुष में शारीरिक संबंध के लिये कई मार्यादाएँ निश्चित की गई है। संभोग से परम आनंद एवं संतान की प्राप्ति होती है परंतु शर्त यह है कि विवाह के पश्चात ही यह उत्सव होना चाहिए। समाज कितना ही आधुनिक हो गया है लेकिन विवाह के पहले सेक्स की इजाजत नहीं है। सामाजिक अपराध को रोकने के लिए कानून ने भी कई कड़े नियम बनाए हैं। जब कोई पुरूष स्त्री के इच्छा के विरुद्ध उसके साथ संभोग करता है तो यह अपराध है। कच्ची उम्र के लड़के – लड़की विवाह के पहले हमबिस्तर होते हैं तो यह पाप है । इस अपराध और पाप के अतिरिक्त एक मार्डन तरीका आजकल प्रचलन में है। स्त्री की इच्छा नहीं है फिर भी वह उस पुरुष के साथ शारीरिक संबंध के आमंत्रण को स्वीकार कर लेती है जो उसके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करता। लड़की महतत्वकांक्षी है और लड़का इस लायक है कि वह उसे सफलता की सीढ़ी पर चढ़ा सकता है तो किसी भी क्षेत्र में दो बदन के मध्य इस तरह के संबंध पनपने लगते हैं जो “गीव एंड टेक” के फार्मूले पर आधारित होता है । “फक एंड फॉरगेट” जैसा आदर्श वाक्य फिल्म इंडस्ट्री में बहुत पहले से प्रचलन में है ।
रश्मि के पास मदहोश कर देने वाला सेक्सी फिगर है तो हैरी प्राश के पास है विज्ञापन निर्देशन का सफलतम कौशल l रश्मि का सपना है कि वह टॉप की हीरोइन बनें और हैरी प्राश उसे अपने दो विज्ञापन के लिए मॉडल साइन कर चुका है । चालीस हजार का चेक देते हुए बिना किसी शर्म-संकोच के रश्मि की आँखों में झांकते हुए कहा था, “अब तो मॉडल बन जाओगी, कल को हीरोइन भी बन जाओगी….. और मेहनताना के तुम्हें चालीस हजार भी मिल गये….. लेकिन मुझे क्या मिला ? मैंने तुम्हें टी.वी . पर आने का चांस दिया तो तुम मुझे क्या दोगी?
इतनी बड़ी रकम का चेक थामते हुये रश्मि का कलेजा धुकधुकाने लगा । दो मिनट विज्ञापन के चालीस हजार तो एक फिल्म की मेन हीरोइन बनूंगी तो कितना मिलेगा ? लाख…… दस लाख…… एक फिल्म हिट हुई तो दूसरी फिल्म साइन करूंगी ….. अपना घर खरीदूंगी ….. टाटा सफारी गाड़ी में अपने मम्मी-डैडी को लेकर घुमूंगी….. अखबारों में फोटो छ्पेंगे….. सभी चैनलों पर मेरे इंटरव्यू टेलीकास्ट होंगे ….. जिस स्कूल कॉलेज में मैं पढ़ी उसके चहारदिवारी पर मेरे रंगीन पोस्टर चिपकाये जायेंगे…… मिस इंडिया तो नहीं बनी लेकिन हो सकता है मुझे फिल्मफेयर फेमिना का ” बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड” मिले… .. इतना सब कुछ…. मैं तो पागल हो जाउंगी …..
भविष्य के रंगीले सपनों की दुनिया में रश्मि इस तरह को खो गई कि वर्तमान में उसके साथ क्या हो रहा है , उसे पता ही नहीं चला । उसे हल्का सा आभास हुआ कि हैरी प्राश ने उसके जांघ पर अपना सिर रख दिया है।रश्मि पशोपेश में थी अब क्या करना चाहिए? वह कोई निर्णय नहीं ले पाई कि हैरी प्राश ने उसके होठों को मुँह में ले लिया । इस समय उसके कानों में बिहारी के कहे वाक्य गूंजने लगे कि रश्मि …..इस लाइन में देखने-दिखाने के लिए हर आदमी शरीफ नजर आता है लेकिन मौका पाते ही वह जानवर की तरह नंगा हो जाता है। रश्मि ने पाया कि हैरी प्राश ने उसके टॉप की झीप एक ही झटके में खोल कर उसके बदन से अलग कर दी I रश्मि के मन में आया कि वह इस जानवर के चंगुल से मुक्त हो जाए क्योंकि किसी पुरुष के इतने नजदीकी का उसका पहला अनुभव था। हैरी प्राश अचानक आक्रामक हो गया और उसने रश्मि को जबरन जमीन पर लिटा दिया । रश्मि का दिमाग सुन्न हो गया । उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया । उसने सोचा कि जोर से चीखू लेकिन उसके हलक से आवाज ही नहीं निकल रही थी। टटोल कर देखा तो अपने को और हैरी प्राश को निर्वस्त्र पाया।
आनेवाले दिनों की टॉप हीरोइन आज जोरदार स्ट्रगल कर रही है।
***
बहुत दिनों के बाद आज रविवार को चारों स्टूगलर एक साथ मिलकर खाना खा रहे हैं ।स्वामी रोज सुबह आठ बजे घर से निकलता है तो रात को ग्यारह के बाद टुन्न होकर आता |यदि शुटिंग न हुई तो उसे गोडाउन में जाकर ट्रैक, ट्रॉली, लाइट इक्किपमेंट की साफ सफाई करनी पड़ती। शिखर और बिहारी भी अपनी शुटिंग शिफ्ट के हिसाब से घर छोड़ते और शुटिंग न हुई तो दोपहर बारह बजे से रात के बारह एक तक बाहर भटकते रहते । विशाल इन सब से अलग था। कभी-कभार वह कई रातों घर से गायब रहता तो कभी-कभी दो-दो, तीन-तीन दिन वह बीयर पीकर कब्र भर की जगह घेरे पड़ा रहता । विशाल लक्ष्यहीन जीव था ।उसके दिमाग में ऐसा कोई फितूर नहीं था कि वह क्या बनना चाहता है ?वह क्या करना चाहता है ? विशाल को कई लोग भटकती आत्मा भी कहकर चिढ़ाते हैं क्योंकि वह किसी न किसी शुटिंग में, एडिटिंग या डबिंग थिएटर में अक्सर दिखाई दे जाता था। विशाल दिखने में स्मार्ट और कुशल व्यक्तित्व का धनी था लेकिन अंदर ही अंदर वह कुढ़ता रहता था। उसके हृदय में एक ऐसा शूल बिंधा था जिसकी वेदना से वह मन ही मन तड़पता था। कोई दस साल पहले वह किसी के बहकावे में आकर घर से पाँच लाख नगद लेकर इसी बंबई में हीरो बनने आया था। कई फिल्मी दोस्तों की सलाह पर उसने एक फिल्म बनाने की घोषणा कर दी। फिल्म का नाम था, अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो। फिल्म के निर्देशन के लिए उसने उस समय के एक बी ग्रेड के निर्देशक को साइन किया ।उसके अपने पाँच लाख उड़ गए । फाइनेंसरों और शुभचिंतकों के वादानुसार और फाइनेंस का जुगाड़ हो नहीं पाया। फिल्म तीन रील से आगे बढ़ न सकी और विशाल हीरो बनते – बनते रह गया । बिजनौर के करोड़पति बाप का बेटा विशाल बंबई में कंगाल फटे हालात में जीवन जीने को मजबूर था क्योंकि उसने अपने पिता की तिजोरी से चार लाख चुराये और अपनी बहन के ससूर जी को पट्टी पढ़ाकर एक लाख रूपये मांग कर लाया था। समय की ऐसी महिमा कि इस हादसे के बाद न वह कभी बिजनौर गया और न ही कोई वहाँ से यहाँ बंबई की भीड़ में उसे खोजने आया।
बिहारी ने सभी को सूचित किया कि एक सप्ताह के भीतर हम सबको रेलवे कॉलोनी का यह सर्वेन्ट रूम छोड़ना पड़ेगा क्योंकि फिरोज सैफी के फुफाजान दो महीने पहले लाइनमैन की नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए । फिरोज सैफी जब हीरो बनने बंबई आया था तो उसके फुफा ने इसी क्वार्टर में शरण दी थी। उन्हीं दिनों स्ट्रगल के दौरान फिरोज शैफी और बिहारी की एक दूसरे से मुलाकात हुई थी I दोनों के बीच दोस्ती बढ़ती गई क्योंकि बिहारी पटना का रहने वाला था और फिरोज छपरा जिले का। सात साल के संघर्ष के बाद फिरोज अपना मकाम पाने में कामयाब हो गया क्योंकि उसे कई फिल्मों में चरित्र अभिनेता का छोटे-मोटे रोल मिलने लगे। एक समय ऐसा भी आया कि अपने स्टैंडर्ड के मुताबिक उसने मीरा रोड में टू रूम किचेन का फ्लैट ले लिया। उसके फुफाजान का भायखला में निजी मकान था इसलिए फिरोज ने बांद्रा रेलवे कॉलोनी का सर्वेन्ट रूम बिहारी को दे दिया । बिहारी को हजार रूपये किराए का उसके फुफा को चुकाना पड़ता था इसलिए उसने धीरे-धीरे अपना कुनबा बसा लिया । स्वामी, विशाल ,शेखर और वह…. चारों पिछले चार साल से एक ही छत के नीचे रहकर फिल्म इंडस्ट्री में अपने अपने हिस्से की छत के लिए स्ट्रगल कर रहे थे….. और आज फिरोज सैफी का अल्टीमेटम आ गया कि एक सप्ताह के अंदर रूम खाली करो ।
“करना ही पड़ेगा भाई I” शिखर के चेहरे पर चिकनाहट और आवाज में भारीपन आ गया था जब से वह “तुम सब एक हो ” और “हिंद के बाशिंदे” में एक्टिंग करने लगा था।
” मैं तो सोचता हूँ कि यहाँ से छोड़कर होटल चट्टान के पीछे वाली झोपड़पट्टी में कोई कमरा भाड़े पर ले ले” विशाल का शरीर भले सर्वेंट रूम में था लेकिन उसका मन गुलाबी साड़ी में लिपटी बालों में मोगरे का गजरा सजाए सांवली सलोनी कुसुम के होंठ, आँख, सीना और नितंब की फोटोग्राफी में मगन है ।
“अरे छोड़ो यार !! यह भी कोई बात हुई कि सर्वेंट रूम में निकले तो झोपड़पट्टी में जाए? शिखर ने मुँह बिचकाया।
” देखो बाबा,” स्वामी ने मुँह खोला मैं अपना फैमिली लाने वाला है इसलिए मैं साकीनाका में एक रूम दस हजार का डिपोजिट भाड़ा में ले रहा हूँ।”
“ठीक है, तो हम लोग भी आकर वहाँ रहते हैं ।” बिहारी ने अपना प्रस्ताव रखा।
स्वामी अपनी बत्तिसी दिखाकर खीं खीं करने लगा।
” स्वामी अपनी बीवी को लेकर सोएगा। हम लोग कवाब में हड्डी क्यों बनें ?”
बिहारी नये ठौर ठिकाने को लेकर गंभीर था।
” इसमें इतनी चिंता की क्या बात है?” आज से हम रूम के लिए स्ट्रगल शुरू करते हैं….. और क्या? शिखर की बातों में दम था।
” बिहारीजी, आप फिरोज भाई से डिपॉजिट के पंद्रह हजार रूपये मांग लो , कहीं ना कहीं व्यवस्था हो जाएगी।” विशाल की हाँ में हाँ मिलाकर बिहारी ने शिखर से पूछा, “शाम को फ्री हो क्या ? फिरोज भाई के पास चलना है।”
“आज शाम को डी. डी. राव ने मुझे और निरंजन पागल को सिटिंग के लिए बुलाया है। आज स्टोरी पर डिस्कशन होना है।” शिखर ने बिहारी से कहा।
शिखर निरंजन पागल का इंतजार कर रहा था कि तीन बजने को आये है और वह अभी तक आया नहीं। शाम पाँच बजे डी. डी. राव के बंगले पर पहुँचना है।
***
निरंजन पागल की सुनाई कहानी डी. डी. राव को बहुत पसंद आयी। जब वह कहानी सुना रहा था तब राव साहब की आँखों के सामने फिल्म के काल्पनिक दृथ्य रील की तरह दौड़ रहे थे। कहानी एक नये विषय को लेकर लिखी गई थी और आज के फिल्मों की कहानी से कुछ हटकर अपना एक अलग टेस्ट रखती थी । डी.डी .राव का मन उनसे बार-बार यही कहता था कि इस फिल्म को बनाने में कोई घाटे का सौदा नहीं था ।अपने परिवार के सदस्य एवं कुछ विश्वसनीय मित्रों को जब उन्होंने कहानी की थीम सुनाई तो सभी ने उन्हें इस फिल्म को बनाने की सलाह दी।
डी. डी .राव के पाली हिल वाले बंगले पर इस फिल्म के सिलसिले में पहली सिटिंग हो रही थी। सबसे पहले पहुँचनेवालों में शिखर और निरंजन पागल थे। बंगले के नेपाली नौकर ने दोनों को ठंडा पानी पिलाया । डेढ़ घंटे के बाद डी. डी .राव एक छब्बीस वर्षीय युवक के साथ आए। वह नवयुवक डी.डी .राव का इकलौता पुत्र सुमंत राव था जो उनकी फिल्मों के वितरण व्यापार को संभालता था। सुमंत राव के साथ शिखर एवं निरंजन पागल के बीच परिचय होने के बाद यहाँ – वहाँ की बातें हो रही थी कि दो और व्यक्तियों ने उस हाल में प्रवेश किया। एक व्यक्ति की उम्र पचपन साल के करीब थी । सिर पर थोड़े बहुत बचे – खुचे बाल खोपड़ी से चिपके हुए थे । शरीर थुलथुल और पेट कुछ ज्यादा ही बाहर निकला था। आँखों की हल्की लालिमा और नीचे गड्ढों की कालिमा से कोई भी आसानी से भाप सकता है कि ये साहब नंबर के पियक्कड़ है। उनके साथ आया व्यक्ति करीब चालीस वर्ष के आसपास का स्मार्ट युवक है। कमजोर बदन के इस व्यक्ति की मुस्कान में गज़ब का आकर्षण था। डी.डी. राव ने उन दोनों को अपने पास बिठाया और शिखर, निरंजन पागल का परिचय कराने के बाद उन दोनों का परिचय दिया। कमजोर बदन के व्यक्ति का नाम निलोत्पल मुखर्जी था जिसने डी.डी. राव की पिछली चार फिल्मों की पटकथा लिखी थी । दूसरे व्यक्ति का नाम करीम मुस्तफा था जिन्होंने पिछले पच्चीस वर्षों में सौ से अधिक फिल्मों के संवाद लिखे थे।
नेपाली नौकर ट्रे में मिठाई, बिस्किट और चाय की केतली सजाकर ले आया I मुस्तफा ने एक बर्फी का टुकड़ा मुँह में भरकर बोलना शुरू किया , “राव साहब ,कहानी इसी लड़के ने सुनाई थी आपको?” उन्होंने शिखर की तरफ उंगली उठाई । शिखर ने अपनी उंगली निरंजन पागल की ओर दर्शा दी l
” भई, तुम्हारी कहानी तो मेरी समझ में आ गई लेकिन तुम्हारा नाम…..क्या कहते हैं निरंजन पागल , इसका कोई मतलब समझ में नहीं आया I”
“बस ऐसे ही …..शौक था कि इस इंडस्ट्री के लिए कोई पेटनेम रखूं तो मुझे निरंजन पागल अच्छा लगा सो रख लिया ।” निरंजन पागल कोई सार्थक जवाब नहीं दे सका।
” कहाँ के रहने वाले हो ?” निलोत्पल ने पूछा।
” मैं जबलपुर का रहने वाला हूँ । यहाँ थाने के म्युनिसिपल स्कूल में टीचर हूँ।”. निरंजन पागल ने अपने आप को टीचर बताना जरूरी समझा क्योंकि कहीं वे दोनों यह न समझ ले कि वह स्ट्रगलर है । इस्टैबलिश्ड लोगों के नजरिए से वह अच्छी तरह वाकिफ था ।
“देखो भाई, मैं जो नई फिल्म बनाने जा रहा हूँ उसके बारे में मैं थोड़ी बहुत जानकारी देना चाहता हूँ” डी. डी. राव काम की बात करने लगे। “कहानी तो निरंजन पागल ने लिखी है । इसका स्क्रीन प्ले निलोत्पल करेंगे और निरंजन पागल उनकी मदद करते रहेंगे। फिल्म के डायलॉग करीम मुस्तफा साहब लिखेंगे क्योंकि इस फिल्म का हीरो छक्का है और करीम साहब को छक्कों का अच्छा खासा एक्सपीरियंस है।” वातावरण में जोर की हंसी गूंजी।मुस्तफा होंठ चबा कर मुस्कुरा दिए I
“अच्छा, एक बात मैं आप लोगों को और बताऊं” इतना कह कर भी कुछ क्षण के लिए चुप हो गए। सभी उनके मुँह की ओर ताकने लगे।
” इस फिल्म को मैं प्रोड्युश करूंगा और इस फिल्म को डायरेक्ट करेगा…. मेरा…. लड़का ….. सुमंत राव।”
सुमंत राव का नाम सुनते ही सबने ऐसी मुद्रा बनाई कि वे सब समझ नहीं पा रहे थे कि हंसे या रोये। दस सेकेन्ड के बाद करीम मुस्तफा ने अपने बगल में बैठे सुमंत राव को खींचकर अपनी छाती से लगा लिया और जोर-जोर से उसकी पीठ थपथपाने लगे। सुमंत राव उनके बाहुपाश से मुक्त हुआ तो नीलोत्पल, शिखर , और निरंजन पागल ने बड़े उत्साह के साथ हाथ मिलाकर बधाई दी । नई नवेली दुल्हन की तरह शरमाकर सुमंत राव सबका अभिवादन स्वीकार करता रहा । प्लेट से बर्फी का एक टुकड़ा उठाकर नीलोत्पल ने सुमंत राव के मुँह में ठूस दिया। सबको बराबर का सम्मान देने के लिये सुमंत ने एक-एक बर्फी का टुकड़ा उठाकर करीम मुस्तफा ,नीलोत्पल , शिखर और निरंजन पागल के मुँह में डाल दिया। पानी का जग लेकर नेपाली नौकर आया तो सुमंत ने बर्फी का एक टुकड़ा उसके मुँह में भी डाल दिया। मालिक की इस हरकत से नौकर झेप गया। सबको खुश देखकर वह भी बनावटी खुशी दिखाने के लिए अपनी बत्तिसी दिखाने लगा। माहौल थोड़ा हल्का हुआ तो डी.डी. राव ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला लेकिन कुछ सोचकर मंद – मंद मुस्कुरा पडे़। सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई।
“मेरी फिल्म का मेन हीरो छक्का है जो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ता है इसलिए मैंने अपनी फिल्म का नाम रखा है…..”
कोई कुछ बोलने के लिए मुँह खोलता कि डी.डी. राव ने अपने फिल्म का नामकरण कर दिया।
” मेरी फिल्म का नाम है – छक्का नंबर वन।”
गुड, गुड, वेरी गुड, वेरी गुड, क्या बात है , डी. डी. राव साहब का जवाब नहीं, छक्का नंबर वन, फिल्म समझो सुपरहिट, नाम ऐसा कि जो सुनेगा तो फिल्म देखे बिना नहीं रहेगा, अरे कोई देखे या ना देखे पूरे देश के छक्के इस फिल्म को जरूर देखेंगे, फिल्म की कहानी नयी है, फिल्म का प्रेजेंटेशन हट के होना चाहिए , ऑल दी बेस्ट डी .डी. राव ऑल दी बेस्ट सुमंत राव।
जिसके मन में जो कुछ भी आ रहा था, वह बके जा रहा था । डी. डी. राव और सुमंत राव अपनी वाहवाही सुनकर फुले नहीं समा रहे थे । वे चारों खुश थे कि चलो एक नई फिल्म बन रही है ….. काम और पैसे का कुछ महीनों के लिए जुगाड़ तो हुआ । डी. डी. राव ने बुरी तरह से स्ट्रगल करके अपना मकाम बनाया था । बाप की लगाई फसल को बेटा काट रहा था। सुमंत राव बिना स्ट्रगल किये ही घर बैठे – बैठे डायरेक्टर बन गया। शिखर को याद आया कि बिहारी असिस्ट करते – करते बोर हो चुका है, लेकिन कोई जुगाड़ नहीं बैठ रहा है ।
इस तरह से एक नई फिल्म “छक्का नंबर वन” की पहली सिटिंग में निर्माता,निर्देशक, लेखक, संवाद लेखक सभी मिलकर कहानी को आगे बढ़ाने में जुट गये।
दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण लेकर बंबई आने वाले स्टूडियों में घुसने के लिए दरवानों से मिन्नते नहीं करनी पड़ती । निर्माता, निर्देशकों को फोन करके अपने आप को इंट्रोङ्युस करने की जहमत नहीं उठानी पड़ती । दिल्ली से बंबई रवाना होने से पहले उनकी टेलीफोन डायरेक्टरी में कुछ ऐसे लोगों के टेलीफोन नंबर होते हैं जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के मंच से अपनी यात्रा शुरू कर के बंबईया स्टारडम में अपनी किस्मत के साथ दो-दो हाथ करने में मशगूल रहते हैं । पुणे फिल्म संस्थान में अभिनय , निर्देशन, लेखन या अन्य तकनीकी प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों को वर्ष में एक -दो बार विशेष अवसरों पर बंबई , कोलकाता और चेन्नई के नामी गिरामी फिल्मकारों से उनके सम्मेलनों में मिलने का मौका मिलता है । ऐसे स्नेह सम्मेलनों में प्रशिक्षणार्थी बंबई जादूई नगरी में घुसने का रास्ता ढूंढने लगते हैं।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, पुणे फिल्म संस्थान ,श्री राम सेंटर से जो लोग बंबई में हीरो बनने आते हैं उनके पास अभिनय का अनुभव होता है जो पिछले कई वर्षों से थिएटर कर रहे हैं। अमुक अमुक प्रतिष्ठित निर्देशक के साथ फलां फलां रंगमंच पर कितने शो किये ? कौन से नाटक में किस भूमिका के लिए गोल्ड मेडल का अवॉर्ड मिला?
लेकिन वे लोग, जिनका दूर-दूर तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय , पुणे फिल्म संस्थान से कोई नाता नहीं होता, वे लोग जिन्होंने सपने में भी कभी रंगमंच न देखा हो , वे लोग जिनकी फिल्मी दुनियां के किसी भी व्यक्ति से कोई जान – पहचान नहीं होती ……और बिना कुछ सोचे समझे….. अति उल्लास उत्साह में पूरे आत्मविश्वास के साथ….. हीरो नंबर-१ बनने का सपना लेकर…. सुलेमानी कीड़ा के देश से होकर बंबई की ओर जानेवाली किसी भी गाड़ी में अपने आप को बुक कर देते हैं। ….. आसान नहीं डगर पनघट की ।
सपनों की नगरी ….. बंबई । बंबई…. एक ऐसा शहर जो सबको पनाह देती है । आगे बढ़ने के लिए सबको समान रूप से अवसर प्रदान करती है । अब यह तो किस्मत की बात है कि वक्त और जिंदगी की रफ्तार में कौन किससे आगे निकल जाता है और कौन कहाँ पीछे छूट जाता है।
इसी महानगरी की जादु कोठरी….. फिल्मसिटी, फिल्मालय, नटराज, एस्सेल स्टूडियों, आर. के. स्टूडियों गाँव खड़कपुर हो या शहर पटना …. बस मूड में आ गया कि हम भी बनेंगे अमिताभ बच्चन ….. शाहरुख खान ….. कुछ नहीं तो ….. ओमपुरी या असरानी बन ही जाएंगे …. दौड़ पड़े आँख मूदकर बंबई की ओर…. सड़क पर चलते – चलते, स्टूडियों में घुसने की जुगाड़ में बार-बार दुत्कार खाते-खाते, पच्चीस फोन करने के बाद एक बार किसी निर्माता निर्देशक के साथ है बतियाकर ……अपने वजूद को सपनों की भट्टी में झोंक देता है। अपने कल के लिए आज को भुला देता है । थोड़ा बहुत हटकर पाने की चाहत में अपना बहुत कुछ खो देता…. स्ट्रगलर….. स्ट्रगल करनेवाला…. फिल्मों में कुछ कर दिखाने की जद्दोजहद में अपने आप को गला देने वाला स्ट्रगलर ……शहर जलालाबाद से फिल्मों में गीत , गज़ल लिखने के लिए बंबई आए जनाब उमर शेख फारूख साहब ने इतने पापड़ बेले, इतना स्ट्रगल किया, जवानी के कई वर्षो को सड़कों पर सैंडल घिसते-घिसते गवां दिए ,इतने जलील किए गए और जलालत की जिंदगी जीते जीते सात वर्ष बाद जब उन्हें एक बी ग्रेड की फिल्म में पाँच गीत लिखने का मौका मिला तो तकदीर बदलने के पहले उन्होंने अपना नाम बदल लिया । जनाब उमर शेख फारूक साहब से गीतकार जलील जलालावादी हो गए । अपने स्ट्रगल के दिनों में अक्सर अपने दोस्तों को अपनी कविता से उनका हौसला बढ़ाते थे कि…. अर्ज किया है ……
“जीवन लक्ष्य कि फिल्मी एक्टर
शुरू हुआ जमीं से आसमां का सफर दाँव लगाया सपनों को खा रहे ठोकर नाम अपना करके रहेंगे कहता है स्ट्रगलर I”
सभी स्ट्रगलर दोस्त वाह – वाह करते करते उनकी गाल चूम लेते थे। हर शह वक्त की गुलाम होती है । वक्त सबसे बड़ा बादशाह है। वक्त के हाथों में लोगों की तकदीर है….. लेकिन तकदीर के सहारे बैठकर वक्त काटने वाले लोगों की जमात नामर्दों जमात होती है । मर्द तो वह है जो सीना तान कर ताल ठोककर सामने आनेवाली एक – एक चुनौती से बराबर की टक्कर ले। मेहनत का फल कभी बेकार नहीं जाता । सात वर्षों की कठिन परिश्रम के बाद पहली बार उन्हें एक बी ग्रेड की फिल्म में गाना लिखने का मौका मिला…..और ऐसे ही चार – पाँच फिल्मों में गीत लिखने के बाद इंडस्ट्रि के टॉप के प्रोड्यूसर डायरेक्टर डी . डी .राव की फिल्म जो उनका बेटा सुमंत डायरेक्ट कर रहा है ……महत्वाकांक्षी फिल्म छक्का नं. १ के सभी गीत लिखने के लिए जनाब जलील जलालाबाद को साइन किया गया । ए ग्रेड की फिल्म , ए ग्रेड के प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और उनके बैनर के साथ जुड़कर बीग बी ग्रेड का गीतकार अब ए ग्रेड की कैटेगरी में आ गया ।
“खामोशियां भी कितनी उदास होतीहै,
अश्क जो बहे दर्द की सौगात होती है।”
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