हॉस्पीटल के लिए रवाना कर दिया गया । “सुन गजानन अगर केस कुछ सीरियस हुआ तो इसको सुसाइड का केस बना देना….. एक डम्मी केस पेपर अभी तैयार करके रखो कि उसने अपनी बेल्ट से गला दबाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। उसके दोस्त अच्युतानंद और पंग्या भाई को गवाह बनाओ ।” सिर पर कैप रखकर गायकवाड ने सायन सरकारी हॉस्पिटल की ओर जीप दौड़ा दी।
चांदीवली स्टूडियो , साकीनाका , अंधेरी, बंबई सुबह के दस बजे हैं। शुटिंग की पहली शिफ्ट, . स्टूडियो के खुले मैदान में झोपड़पट्टी का सेट लगा हुआ है। बीच में एक लम्बी गली के अगल बगल टीन के पतरें और नारियल पत्ते की चट्टाई की झोपड़ी बनी हुई है। एक झोपड़ी के दरवाजे पर पर्दा टंगा हुआ है, जिसे बाहर से देखने पर मटके जुए का अड्डा दिखायी पड़ता है । एक कोने में दो चार बड़े- बड़े ड्रम और छोटे-छोटे पाँच लीटर के काले डिब्बे पड़े हुए हैं।जहाँ पर दो-तीन जूनियर आर्टिस्ट गुंडानुमा टी शर्ट, पैंट पहनकर बीड़ी फूंक रहे है । यह कच्ची शराब का अड्डा है। एक नकली दुकान के शटर पर तीन चार नंगी लड़कियों की पोस्टरनुमा तस्वीर चिपकायी हुई है। पोस्टर पर टिकट दर पाँच रूपये और समय बारह बजे लिखा हुआ है। जिसके आगे खड़े पाँच छः जूनियर आर्टिस्ट वीडियो थिएटर में घुसने और निकलने के रिहर्सल कर रहे हैं । आर्ट डायरेक्टर हर्षवर्धन मोहिले अपने तीन प्लंबर मजदूरों से गली के मोड़ पर एक नगर निगम की नल लगवा रहा है, जिसके सामने प्रोडक्शन कंट्रोल बाल्टी ,घड़ा ,डिब्बा और लोटा रखवा कर बंबई के किसी झोपड़पट्टी की सजीवता से इस सेट को जीवित करना चाहता है । कैमरा क्रेन पर लगाया जा रहा है । क्रेन को ट्रॉली पर रखकर ट्रैक पर चॉक के निशान लगाए जा रहे हैं । झोपड़पट्टी की गतिविधि का फूल वायड लेंस टॉप लॉन्ग शॉट लेने की तैयारी में पूरी यूनिट अपने अपने कार्य को सही अंजाम तक पहुँचाने में लगे हुए हैं ।
“तो आपका नाम माइकल पैकअप है ।” फिल्म निर्देशक चैतन्यश्री ने अपने सामने खड़े दुबले पतले और कमजोर लंबे स्ट्रगलर का चेहरा एलबम की तस्वीरों से मेल कर रहे हैं, “माइकल पैकअप किसका पैकअप करने का इरादा है ?”
“सर , मैं माइकल जैक्सन का पैकअप कर चुका हूँ । मैं बहुत ही खतरनाक डांस करता हूँ। वेस्टर्न और इंडियन, दोनों डांस स्टाइल को मिलाकर मैंने फास्ट रिद्म पर एक डांस कंपोज किया हुआ है । मेरे डांस सिक्वेंस को आप अपनी फिल्म में रखे , बड़े-बड़े डांसरों का पैकअप कर दूंगा मैं l” एक ही सांस में बिना रुके जॉली बंसल ने अपने नाम का अर्थ और उसकी उपयोगिता का प्रवचन सुना दिया ।
जौली बंसल के उत्साह और अति आत्मविश्वास को देकर चैतन्यश्री जान गये कि यह पूरा पागल तो नहीं लेकिन आधे से आधा पागल जरूर है ।
“सर , ‘छोटे सरकार’ फिल्म में मैंने गोविंदा के साथ दो सीन किये हैं। सिर्फ दो सीन I” जॉली बंसल को गोविंदा के साथ काम करने का गौरव नहीं था, “मेरी कॉमेडी देखकर गोविंदा ने दूसरी फिल्म ‘छोटे मियां बड़े मियां’ में रोल ही कटवा दिया।”
“अच्छा,… यानि तुमने ऐसी एक्टिंग की कि गोविंदा को डर लगने लगा ।” चैतन्यश्री ने जॉली को चने की झाड़ पर चढ़ाना शुरू कर दिया।
“सर, मेरे अंदर एक और खासियत है” जॉली बंसल अपनी एक और खासियत दिखाने के लिए उतावला होने लगा I
“वो क्या खासियत है भई? जरा हम भी देखें!” चैतन्यश्री जाँली की खासियत के दर्शन करने के लिए उससे भी ज्यादा उतावले हो गये।
“सर, मैं खड़े-खड़े आँखों से रेप करता हूँ।” जौली बंसल ने होठों को गोल सीकोड़कर दायी आँख मारी, इस फिल्म इंडस्ट्रि में ऐसी कोई हीरोइन नहीं बची है, जिसका मैंने आई रेप न किया हो । जॉली बड़े गर्व के साथ कमर को थोड़ा लचकाकर दायी टांग हिलाने लगा मानो वह कामदेव का अवतार हो।”
जौली बंसल की ‘आई रेपिस्ट’ वाली बात सुनकर चैतन्यश्री को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके सामने खड़ा शख्स पौवा नहीं बल्कि पूरा पागल है। चैतन्यश्री ठहाका मारकर हँसने लगे । उन्हें हँसते देकर जॉली बंसल ने फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन के संवाद का जोर जोर से जाप करना शुरू कर दिया, “भाई हम दोनों इस मिट्टी से उठे हुए है। मुझे देखो…. मेरे पास आज क्या नहीं है ? गाड़ी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है, रेपुटेशन है और तुम्हारे पास? ये सरकारी वर्दी , महीने के बारह सौ रूपये तनख्वाह और खटारा जीप….. इन सड़े सिद्धांतों और आदर्शों के अलावा क्या है तुम्हारे पास ….रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं नाम है शहंशाह ….” जॉली के सिर पर अमिताभ बच्चन का भूत सवार हो गया , जो एक के बाद, नॉनस्टॉप डायलॉग बकने लगा। उसके चारों तरफ युनिट के कई लोग जमा होने लगे । फिरोज सैफी भी मेकअप करके वहाँ आ गए । जॉली बंसल की नौटंकी देखकर सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे ।
“बस बस । बस करो मेरे भाई । मैं वादा करता हूँ कि इस फिल्म में तुम्हारे लायक कोई रोल निकालता हूँ। ” जोली से पीछा छुड़ाने का यही एक रास्ता चैतन्यश्री को सही लगा । “अरे भाई कोई है , जरा अपने माइकल पैकअप को ले जाकर नाश्ता वास्ता तो करवाओ ।” दो चार लोग जॉली को स्टुडियों के एक कोने में ले जाकर अपना मनोरंजन करने लगे ।
“हाँ, फिरोज भाई ,” चैतन्यश्री ने पाँच पेज का डायलॉग पेपर फिरोज सैफी को थमा दिया , “आज शिखर को मैंने दो बजे बुलाया है उसके पहले हम यह सीन शूट करेंगे।
फिरोज सैफी ने डायलॉग पढ़ना शुरू कर दिया, ” ये मुन्नू कौन है ? “
“मुन्नू एक ऐसा कैरेक्टर है जो इस झोपड़पट्टी में रहता है और आप के खिलाफ मोर्चा लेकर आप का घेराव करता है ।” निर्देशक ने कैरेक्टर के नेचर का खांका खींचकर सीन को जस्टिफाई कर दिया।
“मुन्नू का किरदार कौन कर रहा है?” डायलॉग पेपर को पढ़ते हुए फिरोज सैफी ने पूछा ।
“शशांक है एन.एस.डी. रिटर्न चैतन्यश्री को जैसे अचानक कुछ याद आया, ” अरे भाई सुनो, शशांक मेकअप रूम में है, उसे उसके डायलॉग पेपर दे दो।” सहायक निर्देशक डायलॉग पेपर की जेरोक्स कॉपी लेकर मेकअप रूम की ओर दौड़ पड़ा l
” एक बात बताना चैतन्य, फिरोज सैफी ने डायलॉग के पाँचों पेज पढ़कर अपना मुँह बिचका लिया, “ये तुम्हारे डायलॉग राइटर को डायलॉग लिखने का सेंस है या नहीं ?”
“क्यों ? क्या हुआ ? कोई गड़बड़ी हो गई क्या ? ” चैतन्यश्री ने फिल्म के संवाद लिखने में राइटर की मदद की थी।
” झोपड़पट्टी में रहने वाला एक मामूली छोकरा ….. विधायक को खरी-खोटी सुनायेगा, वह भी उसके मुँह पर।” “शशांक” झोपड़पट्टी के छोकरे की भूमिका निभा रहा था और फिरोज सैफी फिल्म में एक दुष्ट विधायक का रोल कर रहे थे।
” सीन ही कुछ ऐसा है कि….” चैतन्य अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाए कि फिरोज सैफी जोर से बोल पड़े….
” सीन को मारो गोली यार, एज ए एक्टर मेरी रेपुटेशन इस इंडस्ट्रि में है कि नहीं , बोलो ।”
फिरोज सैफी के रेपुटेशन और इस सीन के बीच के संबंध को चैतन्यश्री समझ नहीं पाये।
“यार….. एक स्ट्रगलर को तुमने अमिताभ बच्चन की तरह भारी भारी डायलॉग दे दिया, जिसके सामने तो मेरा रोल ही दबकर रह जाएगा।”
फिरोज सैफी ने ‘स्ट्रगलर’ शब्द को कुछ ज्यादा ही जोर देकर उच्चारित किया था। “सुनो चैतन्य …. इसके डायलॉग हल्के कर दो और ये… ये… ये साथ में चार डायलॉग जो शशांक के हैं…. वो मैं बोलूंगा ।”
फिरोज सैफी ने अपनी मंशा जाहिर की ।
“सर, इससे तो कहानी ही बदल जाएगी।” चैतन्यश्री को डायलॉग के साथ फिरोज सैफी की छेड़छाड़ अच्छी नहीं लगी ।
“कोई कहानी वहानि नहीं बदलेगी। इसको ठीक कर दो मैं एक फोन करके आता हूँ।” फिरोज सैफी हुकुम देकर चलाकर चल दिए ।
“साला , भूल गया कि कभी यह भी स्ट्रगलर था। ” चैतन्यश्री मन ही मन बुदबुदाये।
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भला ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसके मन में एक सफल और श्रेष्ठ जीवन जीने की चाहत नहीं होती है? किस के मन में ऐसी अभिलाषा नहीं जन्म लेती है कि वह अपने जीवन में कुछ ऐसा करें जिसके कारण समाज में उसकी अलग पहचान बने, आदर सम्मान मिले एवं उसे अपनी योग्यता एवं उपलब्धि पर गर्व और गौरव हो। किसी भी कर्म को करने वाला कर्ता या लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्षरत महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के हौसले, उनकी राह – ए -मंजिल में आने वाले सभी संकटों से टकराने के लिए बुलंद होते हैं और उनके मन में एक आस होती है कि किसी न किसी तरह किसी भी कीमत पर सफलता उनके कदम चूमेगी ।
लेकिन क्या सभी की आस पूरी होती है ? क्या सभी के सपने सच होते हैं? क्या प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर छिपी संभावना को संभव बनाने में सफल होता है ? नहीं…. किसी भी क्षेत्र के किसी भी कार्य को करने वाला व्यक्ति शत-प्रतिशत सफल नहीं होता है। । जीवन की बिसात पर बिछी कर्म और भाग्य की मोहरे किसी का पासा पलट कर उसे सफल बना देती है तो किसी को चारों खाने चित कर के असफल बना देती है।
अपने लक्ष्यसिद्धी के लिए संघर्ष करने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह विद्यार्थियों हो, युवा हो, व्यापारी, बुद्धिजीवी हो, अध्यात्मिक , राजनैतिक ,सामाजिक एवं सांस्कृतिक किसी भी क्षेत्र से संबंधित या कार्यरत हो , कभी न कभी वह ऐसे दोराहे पर आ खड़ा होता है जब वह क्या करें ?” के प्रपंच में उलझ कर दी भ्रमित हो जाता है । किसी ठोस विषय पर उसकी तुरंत निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। अपने स्वप्न को सच करने के लिए पल प्रतिपल साधना करने वाला साधक कभी-कभी दुर्भाग्यवश अपने लक्ष्य से इतना दूर हो जाता है कि उसके बुलंद हौसले पस्त हो जाते हैं । भविष्य अंधकारमय एवं शून्य प्रतीत होने लगता है। निराश मन में अकूत विचारों का तूफान आता है , ‘क्या करें’- इसी तरह निरर्थक संघर्ष या अपनी वास्तविक परिस्थिति और भाग्य से समझौता ।
एक तथ्य स्पष्ट है कि किसी भी कार्य में सफलता आसानी से नहीं मिलती है। सफलता कोई चमत्कार नहीं है जो किसी तंत्र- मंत्र, टोने-टोटके द्वारा प्राप्त की जा सके । दान या खैरात के द्वारा भी सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती है । किसी भी कार्य में पूरी तरह से समर्पित होने के बाद आपकी मनोकुल इच्छा पूरी हो जाएगी – ऐसा कोई सनातन ब्रह्म नियम भी नहीं है । केवल जीतने की इच्छा लिए खेल खेलने वाला खिलाड़ी अपनी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है ।खेल को खेल की भावना के साथ खेलना चाहिए ।
मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है। अपनी परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको परिवर्तित करने वाला व्यक्ति ही समझदारी के साथ, समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता है । अपनी वास्तविक दयनीय स्थिति को छिपाकर झूठे और दिखावटी जिंदगी जीनेवालों की स्थिति सुबह दोपहर और सांझ की परछाई की तरह घटती और बढ़ती रहती है।
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सायन म्यूनिसिपल अस्पताल के जनरल वार्ड में बेड नंबर दस पर विशाल लेटा हुआ है ।अब उसकी तबीयत ठीक है। शाम को उसे वापस जेल भेज दिया जाएगा क्योंकि कल सुबह चौदह दिन की पुलिस हिरासत के बाद उन दोनों को बांद्रा के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा । एक हवलदार कुछ कागजों पर विशाल के हस्ताक्षर लेकर चला गया। उन कागजों को पढ़े बिना अनपढ़ो की तरह तरह विशाल का हस्ताक्षर करना जलील जलालबादी को कुछ अटपटा सा लगा।
“अब हम लोगों की जिंदगी गायकवाड के हाथ में है । हम लोगों ने सारी बातें साफ-साफ उन्हें बता दी।” विशाल ने गायकवाड के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कहा, “गायकवाड साहब हमलोगों की मजबूरी और रशीद साले की चीटिंग का किस्सा अच्छी तरह से जान गए। उन्होंने वादा किया है कि वह हमारा केस हल्का करके हम दोनों को बचा लेंगे ।”
लेकिन इन पुलिस वालों का कोई भरोसा नहीं जलील जलालाबादी ने पुलिस सहयोग पर अपना अविश्वास प्रकट किया ।
“तो किस पर विश्वास करें ?” विशाल के मन में रशीद के प्रति घृणा का भाव भर आया , “उस हरामजादे पर विश्वास किया तो यह सिला मिला।” जलील जलालाबादी के चेहरे पर मजहबी कट्टरता की रेखाएं खींच आयी क्योंकि एक मुसलमान के सामने एक हिंदू दूसरे मुसलमान को “हरामजादा” कहे। विशाल जलील की आँखों में झांककर मानो यह आभास दिलाना चाहता है कि एक मुसलमान के हाथों धोखा खाने से अच्छा है कि एक हिंदू के हाथों धोखा मिले। जलील जलालाबादी विशाल के चेहरे से अपनी निगाहें हटाकर जनरल वार्ड में अन्य रोगियों की तरफ देखने लगा। वार्ड में करीब चालीस बिस्तर के पास रोगियों के साथ साथ उनके रिश्तेदारों से अस्पताल में मेले जैसा माहौल लगने लगा । जलील जलालाबादी ने महौल को हल्का करने के लिए अपनी एक गज़ल का आलाप शुरू किया , ” भीड़ ही भीड़ में लगा हुआ है मेला, संग मेरे आँसू और मैं अकेला ।” विशाल से वाहवाही की आशा में जलील जलालाबादी उसका मुँह ताकने लगा लेकिन विशाल निस्प्रह पड़ा हुआ दरवाजे की तरफ देखने लगा। जलील जलालाबादी ने अपनी एक और गजल पेश की, – ” एक हद तक चाहो तो मुद्दतों के बाद फिर जहमत बनेंगे, ज्यादती की तो नासुर बनेंगे, प्यार किया तो खरोच लेंगे।” विशाल के पल्ले कुछ नहीं आया । उसने तिरछी निगाहों से जलील को इस तरह से देखा कि वह समझ गया कि विशाल उसके गजलों से बोर हो रहा है। पॉलिथीन की झोली में नारियल पानी, मुसंबी केला और ब्रेड लेकर कुसुम आ गई । आगंतुकों को बैठने के लिए एक ही टेबल होने के कारण वह विशाल के पैर के पास खडी़ हो गई । विशाल और पास खड़ी स्त्री को असहज देखकर जलील जलालाबादी ने वहाँ से खिसकना जरूरी समझा । उसके जाने के बाद कुसुम पास ही टेबल पर आकर बैठ गई । आज उसने हल्की नीली रंग की साड़ी और मैचिंग कलर की ब्लाउज में उसका शरीर निखर आया है। कंधे पर ब्लाउज के बाहर निकल आयी काली रंग की ब्रा की पट्टी को विशाल ने अंदर की ओर खिसका दिया । कुसुम ने नारियल पानी को गिलास में उड़ेलकर विशाल के हाथ में थमा दिया।
‘ कल मत आना कुसुम । आज शाम को मुझे वापस जेल में ले जा रहे हैं ।’ यह कहते हुए विशाल की पलके झुकी रही ।
‘वो पुलिस इंस्पेक्टर कह रहा था कि वह तुम्हें जेल से छुड़वा देगा। ‘ कुसुम ने विशाल को पिछली रात की घटना बतायी कि किस तरह से उसने गायकवाड को पाँच हजार रूपये की रिश्वत देकर केस को सुलझाने की प्रार्थना की थी।
‘मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भुलूंगा तुमने अपने पैसे देकर मुझे बचा लिया।’ विशाल में इतनी कृतज्ञता थी कि वह कुसुम से निगाहें नहीं मिला पा रहा था।
“तुम्हारी जिंदगी से बढ़कर मेरे पैसे मुझे ज्यादा प्यारे नहीं है। तुम सही सलामत रहो बस यही मैं चाहती हूँ…. आखिर यह पैसे कब काम आते? ” विशाल के हाथ से गिलास लेकर उसे नीचे रखने के लिए कुसुम ने अपनी कमर को धनुषाकार मोड़ा तो विशाल ने देखा कि कुसुम के जुड़े में आज मोगरे का गजरा नहीं है I
‘मोगरे का गजरा ……?
‘अब दिल नहीं करता ‘
‘ क्यों भला? ऐसी क्या बात हुई ?’
‘अब मोगरे का गजरा मैं उसी दिन अपने जुड़े में सजाऊंगी जिस दिन हम और तुम विवाह बंधन में बधेंगे ।’
‘यह तो भीष्म प्रतिज्ञा है। इसकी क्या जरूरत ?’
‘नहीं…. यह प्रतिज्ञा नहीं …. यह मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि अब हम दोनों के बुरे दिन की छाया समाप्त हो और एक नए जीवन में हम प्रवेश करें।’ बिना एक शब्द कहे विशाल और कुसुम ने एक दूसरे की आँखों में झांककर मन की गहराई में उतरकर प्यार के अंकुरित बीज की सजीवता को महसूस किया । दिल की भावनाएं शब्द बनकर मुँह से झरने ही वाले थे कि राजजी के साथ ताई और उनकी बेटी सुरेखा विशाल की मातमपूर्सी करने आ गए। पिछले पंद्रह बीस दिन से घटित दुर्घटनाओं की चिंता ने उन तीनों को भयंकर मानसिक यंत्रणा के भंवर में फंसा दिया था। वे तीनों जेल में अच्युतानंद से मिलकर अस्पताल में विशाल को देखने आए हैं ।
‘जहाँ जाओ वही भीड़ है।’ माथे पर चुहचुहा आये पसीने की बूंदों को पोछते हुए राजजी ने प्रवचन देना शुरू किया, ” जेल में गए तो कैदियों की भीड़, सड़क पर गाड़ियों की भीड़, अस्पताल में मरीजों की भीड़ ……अगर श्मशान घाट जाओ तो वहाँ मुर्दों की भीड़…… इस दुनिया में भीड़ भाड़ एक झमेला है , हम कहीं गुम न हो जाए कि अजनबियों का मेला है।” बड़े ही दार्शनिक ढंग से भीड़ के प्रति अपनी एलर्जी को राज ने कहकर बातचीत का सिलसिला शुरू किया । कुसुम टेबल पर से खड़ी हो गई और ताई को बैठने का आग्रह किया । ताई कुसुम को एक टक देखते हुए टेबल पर बैठ गई I
‘ताई, ये कुसुम है ।’ विशाल के संक्षिप्त परिचय पर कुसुम ने विनम्रता के साथ दोनों हाथ जोड़ लिए क्योंकि वह ताई के बारे में विशाल के मुँह से बहुत कुछ सुन चुकी थी । ताई ने हल्के से अपना सिर हिला दिया । विशाल के पैर के पास बेड के एक तरफ सुरेखा और दूसरी तरफ कुसुम खड़ी हो गई। राजजी कहीं और चले गए Iताई ने अपना पहलू इस तरह से बदला कि वह बहुत ही गंभीर बात कहने वाली हो । ताई ने जो कुछ भी कहा, कुसुम ने जो कुछ भी सुना , विशाल ने महसूस किया कि मामला वाकई गंभीर हो गया है । ताई ने आदेश के स्वर में बड़ी विनम्रता से समझाने के लहजे में अपने दिल की बात कह डाली , “विशाल , यह फिल्म लाइन का चक्कर वक्कर तुम छोड़ो । जो होना था सो हुआ …..अब आगे की जिंदगी तुम संभालो । मैं तुम्हें जितना पैसा चाहिए उतना दूंगी तुम कोई छोटा-मोटा धंधा शुरु करो क्योंकि मैं, मिश्राजी और राजजी तुम्हारा और सुरेखा का लगीन करना चाहते हैं । तुम दोनों लगीन करके सुखाचा संसार करो।” ताई का निर्णय उसके हलक से बाहर फिसल आया । सुरेखा के होंठ लरजने लगे । कुसुम पर मानो कई घड़ो पानी की धार पड़ रही हो । विशाल ताई के इस निर्णय के असमंजस में पड़ गया । कुसुम ने अपने जुड़े पर हाथ फेरा , विशाल ने कुसुम और सुरेखा को तुलनात्मक दृष्टि से देखा । इस वर्तमान की परिस्थितियों के कारण तीनों असमंजस में डूबने उतराने लगे ।