Struggler (Hindi Novel) [3]

(3)
Continue from page 2
***
स्ट्रगलर शिखर के दिन अब धीरे-धीरे बदलने लगे । ” हिन्द के बाशिंदे”  के दौरान ही उसे एक कॉमेडी सीरियल “हम सब लंपट है”  में घर के नौकर का महत्वपूर्ण रोल मिल गया । दो तीन बड़े  धारावाहिकों के निर्देशक भविष्य में रोल देने का वादा भी किया था। यह वादे ठोस  और भरोसेमंद थे क्योंकि शिखर अब जुहू  बांद्रा और आदर्श नगर की सड़कों पर घिसने वालों में नहीं था। अब उसकी पहचान “हिंद के बाशिंदे” हिंद के मुस्लिम युवक अली हसन और “हम सब लंपट है ” के लंपट नौकर नौटंकी लाल के रूप में होने लगी थी। महीने में दस दिन शुटिंग में व्यस्त रहने लगा । प्रतिदिन के मेहनताना के उसे हजार रूपये मिलने लगे । मंजिल अभी दूर थी लेकिन  उसका कंगूरा शिखर  को नजर आने लगा था। जब कभी वह एकांत में होता । शुटिंग के दौरान कोई सांवला सलोना गोल मुखड़ा दिख जाता तो उसे अपनी धर्मपत्नी पूनम की याद आ जाती । पर्स में पूनम की तस्वीर को चूमने से उसे बहुत संतुष्टि मिलती । वह अनुभव करता की पूनम को बहुत बुरी तरह से “मिस” कर रहा है । गवन के एक साल हो गया और कुछ महीनों के लिए ही वह पूनम के साथ रह पाया।  कभी – कभी उसके मन में विचार आता है कि पूनम को मुंबई  ले आए लेकिन उसकी आमदनी अभी इतनी नहीं कि वह अपना स्टैंडर्ड मेंटेन कर सके। मन में अपने आप पर इतना भरोसा था कि एक दिन वह अपने नाम के अनुरूप स्टारडम के शिखर पर होगा और पूनम उसके साथ होगी । बांद्रा रेलवे कॉलोनी-  सर्वेंट रूम – दस बाई आठ की कोठरी पिछले तीन-चार वर्षों तक साथ रहने वाले चार स्ट्रगलर दोस्त – वक्त ने उन्हें मिलाकर एक छत के नीचे रखा…. और आज,  वक्त  उन्हें जुदा कर रहा है । लाइटमैन स्वामी ने साकीनाका में एक रूम किराए पर ले लिया था । और कल सुबह वह अपने परिवार को लाने के लिए गाँव जा रहा है । रश्मि के साथ संबंध में दरार पड़ने के बाद बिहारी कुछ उखड़ा – उखड़ा सा रहने लगा था।  न उसके पास अब पैसे थे और न  ही किसी बैनर में काम । ऐसे में फिरोज सैफी ने बिहारी को अपने साथ फ्लैट में रहने के लिए दबाव डाला क्योंकि वह बिहारी को रश्मि के बारे में डिप्रेस्ड नहीं होने देना चाहता था । फिरोज सैफी का नौकर  रूम की चाबी के साथ बिहारी को भी अपने साथ ले जाने आया था I शिखर ने अंधेरी के डी .एन .नगर में वन रूम किचन का एक छोटा सा फ्लैट दो हजार रुपए मासिक किराए पर ले लिया था। दोस्ती खाते में उसे डिपॉजिट के एक भी पैसे नहीं देने थे। वह चाहता था कि बिहारी और विशाल भी उसके साथ रहे बिहारी तो फिरोज सैफी के यहाँ मीरा रोड शिफ्ट हो रहा था और विशाल…..
” नहीं शिखर …..राजजी चाहते हैं कि मैं उनके साथ रहूं । मेरे और उनके रिलेशन ऐसे हैं कि मैं उन्हें मना नहीं कर पा रहा हूँ ।”
“लेकिन राजजी का कमरा इतना छोटा है कि…..”
” आपके लिए छोटा होगा क्योंकि अब आप बड़े हो गए हैं ।”
विशाल के मुँह से आज  ऐसी बातें निकल गई जो पिछले कई महीनों से शूल बनकर  उसके हृदय को बेंध रही थी । विशाल को यह सुनकर आंतरिक सदमा लगा था कि शिखर “हिंद के बाशिंदे”  में अली हसन का लीड कैरेक्टर कर रहा है । शिखर  की इस सफलता का उसे मलाल था जो लाख रोकने के बाद भी उसका  ज़हरीला झाड़ उसकी जुबान पर फिसल आया था ।
“यह क्या कह रहे हो विशाल ?” विशाल के मुंह से अपने लिए “बड़ा” शब्द सुनकर शिखर को अच्छा नहीं लगा।
विशाल ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन बिना कुछ कहे उसका चेहरा लाल सुर्ख हो गया । शिखर की तरक्की से विशाल को इतनी जलन थी कि आगे एक पल के लिए भी उसे देखना है उसके सामने खड़ा होना उसे असहनीय लग रहा था । फिरोज सैफी के नौकर ने बिहारी का सूटकेस कार में रखा।  स्टोव ,कुछ बर्तन ,एक प्लास्टिक की टाकी , अमिताभ और ममता कुलकर्णी के पोस्टर स्वामी को दे दिया गया था जबकि इन सामानों की खरीद सबका  में सबका थोड़ा बहुत पैसा लगा था । शिखर से रहा नहीं गया और उसने झल्लाए विशाल को अपने सीने से लगा लिया।
 विदाई की इस बेला में विशाल निर्जीव सा कुछ सेकंड के लिए उसने उसके सीने से लगा रहा । स्वामी, विशाल शेखर और बिहारी सभी ने परस्पर एक-दूसरे से हाथ मिलाए। विशाल का व्यवहार  स्वामी और बिहारी को बुरा लगा था लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे मामले को हल्का कर दिया । स्वामी सब सामान लेकर बस में चढ़ गया । विशाल को खार – दांडा करके छोड़ने के लिए बिहारी ने उसे मारुति कार में  बिठा लिया फिरोज  सैफी के नौकर ने रूम में ताला लगा दिया और कार में जा बैठा।
 सब के चले जाने के बाद शिखर वहाँ अकेला खड़ा था । शिखर के मस्तिष्क में वो दिन कौंध गये  जब  बिहारी उसे इस रूम में ले आया था । उन दिनों शिखर पेट की रोटी की जुगाड़ में चर्चगेट से विरार तक , “एड्स – उपचार और बचाव” नामक किताब प्रत्येक स्टेशन के बुक स्टॉल पर दस प्रतिशत कमीशन में बेचा करता था। किताबों का गठ्ठर ढ़ोते समय उसका मन  इस विचार से बोझिल हो जाता था कि पिछले पाँच महीनों की तरह अगले कुछ और महीने अगर स्टूडियों के अंदर नहीं  घुस  पाया,  किसी निर्देशक से उसकी बात न हुई , किसी फिल्म  सिरियल में रोल न मिला…. तो….. क्या ….. उसे इसी तरह हर स्टेशन पर उतर किताब सप्लाई करनी पड़ेगी। आखिर क्या सोचकर उसने अपने माता-पिता द्वारा रखे नाम बदलकर अपना नाम
“शिखर” रखा है । पेजर की  वीप टीऽऽटीऽऽटीऽऽ करने लगी । बटन दबाने के बाद स्क्रीन पर संदेश मिला,  “कांटेक्ट सुरेश पिल्ले अर्जेंटली”  प्रोडक्शन  कंट्रोलर सुरेश पिल्ले अब प्रोड्यूसर बनने के मूड में थे । एन .एफ .डी .सी से बतीस लाख. रुपए का जुगाड़ करके  एक आर्ट मूवी फिल्म की योजना पर इन दिनों दिन – रात सिर खपा रहे थे । फिल्म का नाम रखा गया “गरीब जिंदगी की  अजीब दास्तान ।”  “पिल्ले  साहब ने भला इस गरीब को क्यों याद किया ? ”  शिखर सुरेश पिल्ले को फोन  करने के लिए पी .सी . ओ ढूंढने लगा।
                                 ***

 अगले शुक्रवार निर्माता जी .डी. शॉ  की धमाकेदार फिल्म  “धुरंधर”  रिलीज होने की तैयारी जोर शोर से चल रही है । जितना पैसा  फिल्म निर्माण के  खर्च में लगा,  उतना ही पैसा फिल्म रिलीज के पहले पानी की तरह बहाया जा रहा है ।  एक के बाद एक लगातार चार हिट फिल्म निर्देशित करने वाले निर्देशक श्रीधर को पूरा विश्वास का था कि  रोहित कुमार की दूसरी फिल्म   “धुरंधर” सुपर डुपर हिट होगी ।  रोहित कुमार की पहली फिल्म   ” और गूंगा बोल उठा”  के जबरदस्त हिट होने के बाद उन्होंने फिल्मी आकाश पर उभरते सितारे रोहित कुमार को  “धुरंधर”  के लिए साइन किया था I  ग्लैमर की दुनिया के कुछ बड़ी हस्तियों एवं फिल्म पत्रकारों को  “प्रिमीयर शो”  पर आमंत्रित किया गया था । होटल हॉलिडे इन् के आलीशान बंकेट हॉल में  जी . डी .  शॉ,  श्रीधर एवं युनिट के लोग सभी मेहमानों की आवभगत  में लगे हुए हैं । फिल्मी पत्रकारों के गुट  एक कोना पकड़कर पेप्सी , कोक  और चाय की चुस्कियों  के साथ अपनी गपशप  में व्यस्त हैं l फिल्म की हीरोइन  मुस्कान के आगमन पर थोड़ी सी चहल पहल  हुई  लेकिन कुछ देर के बाद सभी को रोहित कुमार का बेसब्री से इंतजार है । “धुरंधर ”  फिल्म में केवल जांघ और उघड़े  सीने को दिखाने के लिए मुस्कान को फिलर की तरह उपयोग  किया गया था…. इसके अलावा चार – पाँच साल पुरानी हीरोइन को वैसे भी भाव नहीं दिया जाता है। हैरी प्राश और रश्मि इस पार्टी में एक साधारण मेहमान की हैसियत से एक कोने में खड़े अपने – अपने भविष्य की योजनाएं सोच  – सोच कर मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं । पृथ्वी थियेटर में रोहित कुमार जब ड्रामों में अभिनय किया करते थे तब उन्हीं दिनों हैरी प्राश  रंगमंच की सजावट , लाइट  संयोजन एवं साउंड सिस्टम चेक किया करते थे। रोहित कुमार के सुपरहिट होने के बाद हैरी प्राश  उनसे कई बार मिल चुका है लेकिन आज वह रोहित कुमार से किसी खास “मकसद” के लिए मिलने  आया था ।

                               ***
       बंबई में रोजी-रोटी के जुगाड़ करना कठिन नहीं है जितना कि सिर पर एक अदद छत। हाथ में काम, पेट में रोटी और सिर पर छत; जिनके पास यह तीनों हैं वह बंबई का बहुत ही खुशनसीब बंदा होता है।  लेकिन विशाल की नसीब में यह सब कहाँ? काम का कोई ठिकाना नहीं क्योंकि फिल्मी दुनिया में अपना मुकाम बनाने के लिए पिछले कई वर्षों से स्ट्रगल कर रहा था । भूख आसमान की तरह फैला हुआ था और  रोटी का आकार अंधियारे उजियारे रात के चांद की तरह घटता बढ़ता हुआ। कई छतों के नीचे से गुजरते हुए आज वह अपने दोस्त फिल्म राज के खार – दांडा वाले किराए की छत के नीचे बिस्तर पर उँघ रहा था । देखते ही देखते  इतने साल बीत गए और अब आगे क्या होगा ?   क्या – क्या सोचा था और क्या – क्या हो गया विशाल की जिंदगी में । सपने धरे के धरे रह गए और ‘….
धड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा खुल गया। बल्ब की  मद्धिम रोशनी में ताई का  चेहरा नजर आया I वह अंदर आई  तो उसके पीछे हाथ में दो ढ़ंकी थाली लिए हुए सुरेखा भी अंदर आ गई ।
 “राज  का कोई भरोसा नहीं की वो रात में  कभी आएगा । तुम जेवण  कर लो।”  ताई के इशारे पर  सुरेखा ने दोनों थाली बिस्तर के पास रख दी l  लंबी , पतली छरहरे बदनवाली सुरेखा जब थाली रखने के लिए झुकी तो उसकी लटें चेहरे पर आ गई । दाहिने हाथ से उसने अपनी लट पीछे फेर कर कमरे से बाहर हो गई  । चितकबरें  सलवार कमीज के बाहर का अंग हल्की चंदन मिश्रित रंग की तरह दमदमा रहा था । ताई  पास में ही  अखबार का  एक टुकड़ा लेकर बैठ गई ।
“खाओ ….. खाओ …..नहीं तो जेवण ठंडा हो जाएगा ।” ताई के आग्रह में अपनापन का भाव  था ।  विशाल के मस्तिष्क में उसकी माँ का चेहरा कौंध गया  जिसे देखे उसे  करीब पाँच वर्ष हो गए थे ।  अखबार के टुकड़े से ढकी थाली को खोला तो उसका मुँह पानी से भर गया । दाल , चावल,  बाजरे की मोटी रोटी, आम का मसालेदार आचार और लंबी हरी मिर्ची।
 “खाओ ….खाओ…. ”  ताई के पुनः आग्रह करने पर विशाल  ने बाजरे की मोटी रोटी का एक टुकड़ा दाल में डुबाकर आचार के मसाले को उस पर लगाकर जैसे ही एक कौर  मुँह में डाला ….. मानों  छप्पन भोग का स्वाद भी उसके सामने फीका था।
“क्या करते हो तुम फिल्मों में? ” ताई के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए वह तैयार नहीं था । मुँह के  कौर कूचकर निगलने के  बाद उसने ताई को देखा  जो उसके उत्तर के इंतजार में उसका मुँह ताक रही थी । ताई की आँखों में ममतामई चमक थी जो अपने बेटे के सब सुख – दुख जानने के लिए उत्सुक थी ।
 विशाल ताई का नमक खा रहा था और उनके सामने उसे झूठ बोलना उचित नहीं लगा । जब वह एक – एक कौर मुँह में डालता तो ताई एक-एक प्रश्न पूछती और कौर निगलने के बाद विशाल अपने अतीत की यादों  का एक – एक पन्ना उलटता गया । शिखर की सफलता और अपनी असफलता से वह भीतर ही भीतर कुढ़ता  जा रहा था । अंतर्मन में वेदना की लहरें आकर लौट जाती थी फिर से आने के लिए | ताई के साथ अपना दु:ख – दर्द बांटकर वह अपने आप को हल्का महसूस  करने लगा था । अपने भाग्य से लड़ते-लड़ते हताश तो हो उठे विशाल के मुँह से यह भी निकल गया इस निराशा के दौर में वह बुरी तरह कुंठित हो चुका है और उसे यह भी नहीं पता कि वह आगे जिंदगी में क्या करेगा । ऐसा कहते समय उसे सीने में खंजर के घुसने की पीड़ा का अनुभव हुआ ।
” ये फिल्म लाइन है ही कुत्ता लाइन।”।  ताई ने अपना दुखड़ा सुनाना शुरू किया , अब सुरेखा के वडिल को ही देखो, येईच फिल्म लाइन में कितना झखमारी कर रहे हैं । वो तो अच्छा है कि बाजू में पूजा-पाठ पंडित का काम करते हैं , इसीलिए तकलीफ मालूम नहीं होता । पिछला पच्चीस  तीस साल से लाइन में हाथ पैर मार रहे हैं लेकिन उनको अब तक मिला क्या ? कुछ नहीं …. मेरे साथ लगीन बनाया तो मेरा सब गहना बेच कर इधर खार- डांडा में एक झोपड़ी का जगा लिया। उसके बाद भी उनका दिमाग का ढक्कन नहीं खुला । मेरे को बोलते थे कि एक बार अच्छा किधर चांस मिल गया तो अपना छान घर होएगा,  गाड़ी होएगा ….लेकिन कुछ हुआ आज तक ? कुछ नहीं हुआ । यह तो पहले से ही पंडित थे ।  मैंने इनको बोला की फिल्म लाइन के साथ -साथ बाजू में भी कुछ काम करो तो एक सेठ का मंदिर में जाकर पाँच सौ रूपया महीना में पूजा -पाठ करने लगे….. लेकिन फिर भी मौका मिलते ही…. वह क्या… बोलते हैं तुम लोग …..स्ट्रगल, हाँ,  स्ट्रगल करने लगे । यह तुम्हारा दोस्त राज है न ,कितना पिक्चर का मुहूर्त में इनसे ही पूजा करवाया । अभी एकदम चांगला पिक्चर का पंडित हो गया है । ”  इतना कहते-कहते ताई हंस पड़ी । अपने आगे के काले दांतो को छुपाने के लिए उसने आंचल  के  कोर को मुँह में ठूंस लिया ।
” अच्युतानंदजी कब से इस लाइन में है ?”  विशाल ने उत्सुकता बस पूछा।
” टाइम देखेगा तो बहुत साल से है।”  कुछ याद करते हुए हां बोलते हैं कि जब अमिताभ बच्चन का जंजीर पिक्चर आया था न,  तब से फिल्म लाइन में हाथ पैर मार रहे हैं।”
” अमिताभ बच्चन का जंजीर पिक्चर तो कम से कम पच्चीस साल पहले आया था।”  विशाल को आश्चर्यचकित देखकर आई ने बुझे मन से कहा, “इलाहाबाद से आकर अमिताभ बच्चन क्या से क्या बन गया । मेरे को मालूम है कि यह भी इलाहाबाद से यहाँ अमिताभ बच्चन ही बनने आए थे। लेकिन सबका तकदीर एक जैसा थोड़े ही होता है ।”
“सही बात बोला आपने, अब आपुन को  ही देखो ना अपना भी तकदीर एकदम गांडू है ।”   विशाल अपने आप को कोसने लगा।
” तुम लोग काम ही उल्टा करता है फिर डोका  पर हाथ मारकर बैठ जाता है। “।  ताई ने समझाने के लहजे में कहा,  ” एक दो बार ट्राई मार कर देखने का,  कुछ हुआ तो ठीक,  नहीं तो फाटक  दूसरा काम पकड़ने का,  काईको खाली फुकट अपना घर बार छोड़कर इस लाइन में मगजमारी करने का?
 बाहर से सुरेखा के बुलाने की आवाज आई।  “अच्छा मैं जाती हूँ”  कहकर ताई तुरत – फुरत  में उठ कर चली गई।
विशाल यह भी नहीं बता पाया कि एक बार जो गुड़ की डली में हाथ  लगाता है तो उसकी लसलसाहट  से अपने आप को मुक्त नहीं कर पाता। हाथ – मुँह धोकर थाली एक और सरका दी ।  गोल्ड फ्लैक सिगरेट को होठों में दबाकर  सुलगाई ही  थी कि टेलीफोन की घंटी बजने लगी । रिसीवर को  कान में लगाकर  “हैलो” कहा । उस तरफ से सुनने के बाद विशाल के चेहरे पर तरावट आ गई, “ठीक है  बलजीत जी,  जब आपका फाइनेंस आ गया तो आपुन शुटिंग की प्लानिंग करते हैं । मैं अभी रशीद को फोन करता हूँ l  हम लोग कल मिलकर सारी की सारी सेटिंग करते हैं।”   विशाल निहाल हो गया मानो उसने अमृत पी लिया हो ।
” ये हुई ना बात ”  विशाल ने एक जोरदार कश खींचा। शत्रुघ्न सिन्हा की स्टाइल में धुएँ का एक-एक गोल छल्ला मुँह से बाहर फेंकने लगा।  सात लाख पंजाब से मंगा लिए हैं अब बहुत जल्द  “सबको दिखा दूंगी ”  फिल्म का काम शुरू होगा ।  रशीद ने वादा किया है अगर मैं उसके लिए कोई पार्टी पटा दूंगा तो वह मुझे पचास हजार देगा ।  चूंकि  पार्टी अच्युतानंद के पहचान की है इसलिए उसे भी कुछ हिस्सा देना  होगा । विशाल पर नशे की खुमारी चढ़ने लगी बहुत दिनों तक वह कड़क- कड़क नोट के दर्शन नहीं कर पाया था । उसके  दायी हथेली में खुजली होने लगी । अब तो पचास हजार के बारे न्यारे  होंगे । विशाल मन ही मन फुदक रहा था ।  ब्लू फिल्म की शुटिंग में हीरोइन शुटिंग के समय युनिट के सामने अपने बदन पर से कपड़े कैसे उतारेगी,  यह देखने के लिए उसका मन बेचैन होने लगा । अगर रशीद भाई  ने  यह फिल्म सही सलामत बना दी और उसे कमीशन के तक पचास हजार  रूपए मिल गए तो बहुत ही जल्द दूसरी पार्टी पटाएगा फिर एक दूसरी फिल्म बनेगी । उसे फिर पार्टी पटाने के लिए कमीशन के पचास हजार रूपए तो मिल ही जाएंगे। इसी तरह वह और रसीद भाई अगर साल में कम से कम दो पिक्चर बनाये तो लाख रुपए कहीं नहीं गए हैं। यदि संभव हुआ तो तीसरी पार्टी भी पटा लेंगे “सबको दिखा दूंगी”  शुरू हो जाए बस;  अब तो आने वाले दिन में ऐश ही ऐश होंगे  ।भविष्य के ख्याली पुलाव पकाते – पकाते विशाल बिस्तर पर लुढ़क गया। एक स्ट्गलर की जिंदगी में  बहुत दिनों के बाद खुशी के दिन आए थे । एक तो भरपेट भोजन दूसरा बलजीत सिंह का पिक्चर शुरू करने में देर ना करो। करवट बदलने के साथ-साथ विशाल न जाने क्या बुदबुदा रहा था ।
                                        ***
यदि आप अच्छे लेखक हैं ,आपके पास रोमांस, मर्डर मिस्ट्री और इमोशन से लबालब  कहानी हो,   परमात्मा का दिया हुआ सुंदर गला हो और सुंदर गा सकते हो , किसी नृत्य में पारंगत हो, किसी साज को बजाने की कला आप में हो,  अर्थात आपके पास ऐसी कोई भी  क्षमता या योग्यता है,  जिसे आप बड़ी कुशलता के प्रदर्शित कर सके, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल है तो ऐसे कलाकारों को अधिक संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती । बंबई फिल्मी दुनिया में ऐसे कई पारखी हैं जो गुण सम्पन्न नए कलाकारों को खुले मन से ब्रेक देते हैं । यह कसौटी केवल लड़कों के  लिए लागू होनी है। फिल्मी दुनिया के घाघ  धुरंधरों के सामने काम मांगने के लिए , ब्रेक पाने की चाहत में कोई नई लड़की , बिल्कुल नई लड़की …..चाहे वह लेखिका, गायिका ,नृत्यांगना बनना चाहती हो तब उसकी योग्यता क्षमता नहीं देखी जाती । घाघ निर्माता – निर्देशकों की नजर उसके “फिगर ” पर होती है । सामने खूबसूरत लड़की को देखकर उनके मुँह से लार टपकने लगती है। बूढ़े से बूढ़े धुरंधरों की नस चटकने लगती है । आँखों में उतरी वासना की तरलता में उनकी पुतलियाँ सामने बैठी सुंदरी के ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर उनके अंग  – प्रत्यंग पर चढ़ने-फिसलने लगती है । ऊंचे घराने की लड़कियाँ  ए  ग्रेड  , मध्यम घरानों की लड़कियाँ बी ग्रेड और दूसरों शहरों से भागकर बंबई में किस्मत आजमाने आयी लड़कियाँ सी  ग्रेड के लोगों के साथ अक्सर हमबिस्तर हो जाती हैं। ए, बी , और सी, ग्रेड के बिस्तरों पर करवट बदलने का सिलसिला अगर ऐसे ही चलता रहता है  तो एक दिन ऐसा भी आता है जब यही लड़कियाँ ए ,बी, और सी ग्रेड  की पेशेवर कॉलगर्ल बन जाती है। होटल चट्टान  के पीछे धंधा करने वाली कुसुम भी कभी  बंबई में हीरोइन बनने की तमन्ना में अपने प्रेमी के साथ भाग आई थी । और आज सी ग्रेड की वेश्या  बन गई  जिसके पास हर सप्ताह विशाल भी अपनी प्यास बुझाने पहुँच जाता है । हैरी प्राश की कई विज्ञापन में काम कर चुकी शालु ने मॉडल की दुनिया में ही कई वर्ष बिता दिये अब उसकी उम्र पच्चीस  पार कर चुकी है और गर्भ निरोधक गोलियों के  लगातार सेवन करने से कमर मोटी और नितंबों में मांस भर आया था । हैरी प्राश की खूंटे में बंधी शालू और कहीं  हाथ पैर नहीं मार पाई थी l यह कैसी विडंनना है  कि अब न तो वह मॉडल है और नहीं हीरोइन बन सकेगी l ग्लैमर  की चकाचौध से आँखों में  रतौंधी हो जाती है जिसे सामान्य जीवन की हल्की रोशनी में कुछ भी नहीं दिखाई देता।  इस  रतौंधी का इलाज सिर्फ इतना है कि चकाचौंध रोशनी में ही प्रत्येक चीज को  देखें I  शालू की सारी तमन्नायें सूख चूंकी थी। स्टारडम में अपना जलवा दिखाने  की ललक अब उसके तन बदन में  सुरूर नहीं पैदा करती थी । शालू ने ग्लैमर की दुनिया में एक नया धंधा अपना लिया था …..लखपति करोड़पति कामदेवों की रति बनकर काम क्रीड़ा का आनंद प्रदान करना और बदले में अपना मेहनतताना l हैरी प्राश की एक पुरानी मॉडल बी ग्रेड की कॉल गर्ल बन गई जो बंबई के होटलों में धनपशुओं के बदन पर तेल मलने के बाद अपने किस्मत पर होती थी ।
                                  ***
दिन में  दस  बार अपने तीन अलग-अलग विज्ञापनों में अपने आप को जब रश्मि टीवी पर देखती तो उसके कदम धरती पर नहीं पड़ते । टीवी पर रश्मि की अदाकारी को देख कर उसके साथ – साथ उसकी माँ, पिता और भाई के साथ – साथ उनके घर काम करने वाली नौकरानी भी फूले नहीं समाते थे । रश्मि अब एक साधारण लड़की नहीं , मॉडल बन गई थी जो बहुत जल्द रोहित कुमार …..सुपर स्टार रोहित कुमार के साथ हीरोइन बनकर एक फिल्म साइन करने वाली है । बिल्डिंग के सभी परिवार बड़ी इज्ज़त और अनुरोध के साथ रश्मि को अपने यहाँ भोजन के लिए आमंत्रित करते लेकिन रश्मि बड़ी विनम्रता के साथ उनके आमंत्रण को नकार देती  क्योंकि वह जानती थी कि आसानी से कहीं भी उपलब्ध हो  जाने पर उसके इज्जत में उसकी शान में कमी आ जाएगी । तीन  विज्ञापनों से उसे डेढ़ लाख रूपए की आय हुई थी । उसके फोटोजनिक चेहरे को देख कर दो और  ऍड  निर्देशकों ने  रश्मि को अनुबंधित किया था ।  एक सेकंड हैंड मारुति ८00 हो गई थी । रश्मि पहले वाली एक साधारण लड़की नहीं , चतुर दिमाग की चुस्त व्यवसायी बन गई थी जो अपना निर्णय काफी सोच-समझ कर लेती थी  ।
 बिहारी के सहयोग से शुरू हुआ यह सफर  हैरी प्राश के पास आकर तीखा मोड़ ले चुका  था ।  कुछ और दूर तक  चलने  के बाद मंजिल आनेवाली है क्योंकि अबकी बार  इस सफर का हमसफ़र बिहारी जैसा स्ट्रगलर, और हैरी प्राश जैसा नॉन फेमस  ऍड मेकर  नहीं बल्कि सुपर स्टार रोहित कुमार है।  ” धुरंधर”  के प्रेस शो में हैरी प्राश ने रोहित से मिलवाया था । दोनों स्ट्रगल के दिनों में पृथ्वी थियेटर में साथ साथ काम कर चुके थे इसलिए हैरी प्राश चाहता था कि  रोहित कुमार उसे किसी निर्माता  से एक फिल्म दिलवाए जिसका वह स्वतंत्र रूप से निर्देशन कर सके । इसके पहले भी वह अपने मन की बात रोहित कुमार से जता चुका था लेकिन कोई खास अहमियत नहीं मिली । हैरी प्राश भी आसानी से हार मानने वाला नहीं था । वह रोहित कुमार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रश्मि को अपने साथ ले गया था । रश्मि और रोहित कुमार की नजरें मिली , जुबां से दो बोल फूटे , आगे फिर मिलने के वादे हुए और बहुत जल्द दोनों होटल सी प्रिसेंस  के थर्ड फ्लोर के आलीशान सूट में एक बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़े थे ।
रश्मि का ड्राइवर जो कभी स्पॉट बॉय हुआ करता था अब वह एक उभरती हुई सिनेतारिका का कार ड्राइवर था । प्रोडक्शन मैनेजर देशपांडे के कहने पर कई दिनों से शुटिंग की तलाश में चटकता  स्पॉट बॉय  लल्ली रश्मि मैडम का ड्राइवर बन गया I अब उसे घोड़े के अस्तबल वाली कोठरी से मुक्ति मिल गई थी I मैडम ने  उसके रहने खाने का इंतजाम  बिल्डिंग के वॉचमेन के साथ कर  दिया था । होटल सी  प्रीसेंस के बाहर खड़ा लल्ली अपनी रश्मि  मैडम का इंतजार कर रहा है और वहाँ सूट में रोहित कुमार का दिल अभी तक नहीं भरा था। रश्मि ने वे दिन  देखे थे जब वह इस बाॅलीवुड का ‘क ख ग ‘ नहीं जानती थी । रश्मि ने हैरी प्राश के साथ उसने  वह दिन भी देखे थे जब किसी महफ़िल में उसने अपनी उपस्थिति के महत्व को एहसास किया था । रश्मि अब वे  दिन देखना चाहती है जब उसके पास दस  बीस फिल्में हो ।  दो चार टॉप के  निर्देशक उसके घर के बाहर खड़े हो ।उसकी फिल्म हिट होते ही शेयर मार्केट में उछाल  आ जाए। कोई भी ऐसा दिन न बीते जब  उसकी तस्वीर हिंदुस्तान के किसी पत्रिका में न छ्पे। ठंढी़ के मौसम में स्वीट्जरलैंड और गर्मी के मौसम में  लंडन जाने का सपना  रश्मि के आँखों में सजा रहता था।सफलता की वासना  के नशे में  रश्मि चूर थी । फिल्मी दुनियाँ के दौड़ते घोड़े सुपर स्टार रोहित कुमार के साथ कुछ घंटे गुजारकर वह एक खूबसूरत अंजाम चाहती है। कुछ ऐसे ही अंजाम की चाहत में ललित कुमार उर्फ लल्लू भी अपने बुरे से बुरे दिन गुजार रहा था । एक फिल्म स्टार झोपड़ी में नहीं रहता वह जुहू ,बांद्रा के समुद्र तट पर बने आलीशान वातानुकूलित बंगले में रहता है । फिल्म स्टार गाड़ी ,मोटर, बसों में धक्के नहीं खाता उसके पास अपनी कार होती है । फिल्म स्टार महीने की तनख्वाह नहीं उठाता बल्कि वह एक फिल्म का मेहनताना  लाखों करोड़ों रुपए लेता है । लल्ली को कोई नहीं जानता लेकिन एक छोटे से छोटे कलाकार को स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे तक पहचानते हैं । लल्ली फिल्म स्टार क्यों बनना चाहता है ? ऐसे ही विचारों ने उसके मन में इतनी उर्जा भर दी थी कि वह किसी भी कीमत पर फिल्मी हीरो बनना चाहता था  ।उसने अपनी माँ  की कसम खाई थी कि वह हीरो नहीं तो एक छोटा-मोटा कलाकार बनकर ही अपने गाँव वापस जाएगा ।
फिल्मी  स्ट्रगलर भावुक और संवेदनशील होता है ।  रंग-बिरंगे सपनों का चितेरा होता है। संघर्ष और समझौते के बीच अपने मंजिल की राह पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है । फिल्मों में मिलने वाली  सफलता ,  कलाकार के भाग्य पर निर्भर करती है । भाग्य का भोग ही कलाकार को आबाद या बरबाद करता है ।इसी बंबई की सड़कों पर कई फिल्मी स्ट्रगलरों ने  अपने जीवन का अंत कर दिया है । कई स्ट्रगलर अपने गाँव से लाखों रुपए लाकर इसी रंगीनियों में इन्वेस्ट करके कंगाल हो गए हैं ।  यह बात भी जगजाहिर है कि कई ऐसे स्ट्रगलर भी हुए हैं जो रातों रात एक फिल्म के बाद लाखों करोड़ों दिलों की धड़कन बन गए हैं । जीरो से हीरो और अर्श से फर्श की कहानियों की पृष्ठभूमि बंबई ही हो सकती है।
                                          ***
 समय अनमोल है । जो भी करना है आज ही करना है और कल के भरोसे किसी कार्य को छोड़ना निरी मूर्खता है।  फिल्मों में अपना मुकाम बनाने की जद्दोजहद में लगे रश्मि  और  शिखर अच्छी तरह जानते है कि समय और अवसर का  सभी इंतजार करते है लेकिन अवसर कभी किसी का इंतजार नहीं करता । विशाल और बिहारी की जिंदगी में ऐसे एक दो अवसर आ चुके थे लेकिन उन्होंने सही समय पर सही दिशा में अपने कदम नहीं बढ़ाए और बुरी तरह असफल रहे । विशाल की कमजोरी मुफ्त की शराब और मजबूर लड़की रही तो बिहारी की कमजोरी उसकी तुनकमिजाजी जो इतना लंबा अरसा गुजारने के बाद भी स्वतंत्र रूप से निर्देशक नहीं बन सका ।  फिल्म लाइन की फिल्मी गणित के गुणा भाग को वह नहीं समझ पाया । रश्मि को हैरी प्राश से मिलाकर वह यह सोचने लगा कि रश्मि अब जिंदगी भर उसकी एहसानमंद रहेगी और हीरोइन बनने के बाद उसके पैर धो-धो कर पियेगी ।
 रश्मि इस फील्ड में नई थी । लेकिन सफलता के फार्मूले को अच्छी तरह समझ गई थी । हैरी प्राश के सामने बिहारी का कद छोटा हो गया था। वह हैरी प्राश  के कंधे पर सवार होकर सुपर स्टार रोहित कुमार की  खास “फ्रेन्ड”  बन गई थी । रोहित कुमार की अंकशायिनी बनते ही हैरी प्राश से उसने अपना पल्ला ऐसे झाड़ा जैसे हाथ पोछने  के बाद लोग पेपर और नैपकिन को फेंक देते हैं l रश्मि की बेवफाई से बिहारी तनावग्रस्त हो गया था  लेकिन  हैरी प्राश के सेहत पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि वह इंडस्ट्री की फिसलन से भलीभांति परिचित था । पहले शालू,  फिर रश्मि ….अब रश्मि गई तो और कोई अनुराधा, मुस्कान ,रेशमा, जूली का आगमन होगा ।

 रात भर फिरोज शैफी बिहारी को समझाने की कोशिश करता और दिन भर बिहारी फिरोज सैफी के कामकाज को संभालता।   एक तरह से वह चरित्र अभिनेता फिरोज सैफी का अघोषित  सैक्रेटरी बन गया था। पंद्रह साल तक कई नामी निर्देशकों का सहायक रहने के बाद बिहारी को प्रमोशन मिला था….. वह निर्देशक ना बनकर एक अभिनेता मित्र का सचिव बन गया था । कभी-कभार बिहारी के दिमाग पर रश्मि की बेवफाई के बुरी तरह से दौरे पड़ने लगते थे । ऐसे समय पर वह असहज हो जाता था। चार वर्षों तक उसने रश्मि के साथ एक शुभचिंतक की हैसियत से अपनी मित्रता निभाई थी । उसे आज भी अच्छी तरह याद है कि अपने पहले फोटो सेशन के समय रश्मि कितना घबड़ाई हुई थी । तब उसके माथे पर छलछला आये पसीने की तर को बिहारी ने ही अपनी रुमाल से पूछा था । ” मिस बंबई”  में भाग लेने के लिए बिहारी ने ही रश्मि को उत्तेजित किया था । “मिस बंबई” का खिताब पाने के बाद रश्मि ने सबसे पहले बिहारी के पैर छुए थे । पच्चीसों निर्देशकों से रश्मि की मुलाकात बिहारी ने ही करवाई थी  लेकिन “कॉम्प्रोमाइज”  के मुद्दे पर बिहारी ने रश्मि को किसी के बिस्तर पर जाने की बात तो दूर , दूसरे मीटिंग में नहीं जाने दिया था । हैरी प्राश ने अपनी एक ऍड में उसे मॉडल क्या बना दिया कि बिहारी अब उसके किसी काम का नहीं रहा । रश्मि के साथ बिताए गए दिनों की सभी यादें बिहारी के स्मृति  पटल पर आती जाती रहती थी लेकिन एक बात को उसने कभी ज्यादा महत्व नहीं दिया कि अक्सर वह रश्मि से दो,चार, पाँच सौ रूपये की मदद के तौर पर लिया करता था । रश्मि का मानना था कि उसने बिहारी के एहसान की कीमत का चुकता कर दिया था लेकिन बिहारी सोचता था “मुझे रश्मि चाहिए।”  बिहारी के जीवन में सांझ ढल चुकी थी और सांझ को दीपक जलाए जाते हैं किरनों की आस नहीं की जाती l

                             ***
आज विशाल बहुत खुश है क्योंकि रशीद भाई ने “सबको दिखा दूंगी” फिल्म का पेपर वर्क तैयार करके शूटिंग की सारी योजना फिल्म के निर्माता बलजीत सिंह को समझा दी थी । लोकेशन बुकिंग, कैमरा ,नेगेटिव के इंतजाम और तकनीशियन को साइनिंग अमाउंट देने के लिए बलजीत सिंह ने विशाल का और अच्युतानंद की उपस्थिति में एक लाख रूपये रशीद भाई के हाथ में रख दिए थे । रशीद भाई ने अपने वादे के मुताबिक पाँच – पाँच  हजार रुपये विशाल और अच्युतानंद को दे दिए ।  सौ सौ के पचास  नोटों ने विशाल को नई स्फुर्ति और ताजगी से सराबोर कर दिया था । अगले सात दिनों के भीतर सारा इंतजाम करके इगतपुरी के बंगले में शुटिंग के लिए तैयार रहने का निर्देश देकर रशीद भाई फिल्म निर्माण के आवश्यक सामान जुटाने में जी जान से लगा हुआ था । अग्रिम कमीशन के पाँच हजार रुपए हाथ में आते ही विशाल के मन में लड्डू फूट रहे थे ।  वह इतना मगन था कि अपनी खुशी को बांटने के लिए होटल चट्टान के पीछे झोपड़पट्टी में धंधा करने वाली कुसुम को बांद्रा के बैंडस्टैंड पर घुमाने ले आया था । कुसुम ने मयूरी रंग की साड़ी पहन रखी थी जो विशाल ने उसे उपहार में दी थी।  सागर के बिल्कुल पास एक ऊँची चट्टान पर दोनों एक दूसरे से सट कर बैठे थे । लहरों के साथ आनेवाली तेज हवाओं के बीच दोनों खुली सांस लेने का आनंद उठा रहे थे । कुसुम ने उड़ती जुल्फों को गूंथकर  जूड़ा बना लिया तो विशाल ने उस जूड़े को खोल कर हवा में फिर लहरा दिया ।
“मेरे बाल इसी तरह लहराते रहेंगे तो ये मोंगरे का गजरा कहाँ बांधोगे?”  कुसुम ने विशाल का खरीद कर लाए गजरे की तरफ ध्यान दिलाया ।
“आज गजरे की जगह बदल गई है कुसुम। ”  कहते हुए विशाल ने मोगरे की लड़ी को कुसुम के गले में बांध दिया। कुसुम खिलखिलाकर हंसने लगी। इसके पहले विशाल जब भी उसकी झोपड़ी में  जाता था वह मुँह पर खूब सारा पाउडर ,क्रीम और होंठो पर लिपस्टिक  लगाये रहती थी । आज कुसुम के वास्तविक सौन्दर्य को निहारने के लिए विशाल ने उसे मेकअप करने से मना कर दिया था। बिना मेकअप के कुसुम का चेहरा बहुत ही खूबसूरत लग रहा था । उसके गले में बंधा मोगरे का गजरा मोतियों के हार की शोभा दे रहा था। मोगरे के फूलों की खुशबू सूंघने के लिए वह उसकी बाहों में समा गया । कुसुम वेश्या थी और अब तक अपने पास आने वाले ग्राहकों को मैकेनिकल प्यार दिया करती थी   क्योंकि ग्राहकों को संतोष देने के एवज में वह उनसे पैसे लिया करती थी । लेकिन आज जब विशाल उसके सीने से चिपटा हुआ था , तो उसके बदन में विशाल के लिए सच्चा प्यार उमड़ आया था ।ऐसा ही सच्चा प्यार उसके  हृदय तब भी उमड़ा था जब  पहली बार उसने आशुतोष को अपना दिल दे दिया था। आशुतोष का ख्याल जेहन में आते ही कुसुम कांप उठी जैसे उसके शरीर में जैसे किसी ने बिजली का करंट प्रवाहित कर दिया हो । कुसुम के शरीर की कंपन को विशाल ने भी महसूस किया । कुसुम की बाहों की जकड़न ढीली पड़ गई  ।कुसुम के होठों को चूमने के लिए जब विशाल ने अपना मुँह उठाया तो देखा कि कुसुम की  आँखों में आँसू भर आए थे ।
 “ए ऽ ऽ ऽ कुसुम, क्या हुआ ? ” विशाल आँसू  की  बूदों को लुढ़कते देखकर डर गया । कुसुम कुछ ना बोली और मयूरी रंग की साड़ी के आंचल से उसने अपनी आंखों के कोरों को पोछ लिया ।  विशाल के बार- बार पूछने पर जो आँसू अब तक चुपचाप रिस रहे थे । अब कुसुम के गले से उसके हृदय के भीतर दबा अतीत का दुख फुटकर बाहर निकल आया।  इस तरह कुसुम बहुत ही पवित्र और मासूम लग रही थी । विशाल ने कुसुम को अपनी बाहों में भर लिया । सागर की लहरें धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रही थी । जब वे इस चट्टान पर बैठे थे तो लहरें उनके आगे बीस फीट की दूरी पर आकर लौट जाती थी लेकिन अब लहरों का दायरा उनके दस फीट पीछे तक बढ़ चुका था। विशाल उसकी पीठ को सहलाये जा रहा था और अपने आँसुओं से विशाल के  टी शर्ट को धोए जा रही थी । पंद्रह मिनट के बाद कुसुम सहज हो गई। विशाल ने उसे अपनी कसम दी। वह उसके रोने की वजह को जानना चाहता था । विशाल के बार-बार के आग्रह उसके घाव पर जम आए पपड़ी को कुरेद रहे थे। पिछले कई वर्षों से नरक की अंधेरी कोठरी में रहनेवाली कुसुम ने वेश्यावृति को ही अपना नसीब  लिया था । सोलह साल की उम्र में उसने आशुतोष के साथ हसीन सपने देखे थे लेकिन आसुतोष का कुण्डित चेहरा उसके सामने आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वह एक चकले की बाई के हाथों दस हजार रुपये में बेची जा चुकी थी। आशुतोष के समय का प्यार,  बिल्कुल वैसा ही प्यार उसके मन में विशाल के प्रति भी उमड़ा था लेकिन वह डर रही थी कि कहीं विशाल भी उसे अपना कुण्ठित चेहरा दिखा दे । विशाल उसे किसी चकेले की बाई के हाथों नहीं बेच सकता था क्योंकि वेश्याएं बेची और खरीदी नहीं जाती बल्कि वे ग्राहकों को बर्बाद और कंगाल करती हैं । कुसुम को डर था कि विशाल उसकी जिंदगी से दूर न चला जाए।  जिससे वह बेपनाह मोहब्बत करने लगी थी । पिछले कई मुलाकातों के बाद विशाल को वह अपना “ग्राहक” ना समझ कर अपने मन मंदिर का देवता समझने लगी । भला एक दासी अपने देवता से मन की बातें छुपा सकती है क्या ? कुसुम ने विशाल को अपने अतीत के बारे में बताया कि किस तरह वह आशुतोष के प्यार में अंधी होकर अपने माँ, बाप, भाई,  घर- गाँव छोड़कर इस शहर बंबई में आ गई थी । आशुतोष ने कुसुम के रस को चूसने के बाद उसे नरकीय गर्त में धकेल दिया था । विशाल का उसकी जिंदगी में कितना महत्व है ? वह चाहती है कि विशाल उसे इस नरक  से उबारकर अपनी जीवन संगिनी बनाएं I वह विशाल के पैर को धो- धो कर पियेगी और उसकी सेवा में अपना जीवन बिता देगी । वह भले ही वेश्या है लेकिन विशाल के साथ जीवन बंधन में बंध जाने के बाद एक पतिव्रता नारी के धर्म का पालन करेगी।  वह आशुतोष से प्यार करती थी I. इसलिए उसने जन्म देने वाली माँ ,पालक पिता और अपनी जन्मभूमि छोड़कर आशुतोष के प्रति प्यार का फर्ज निभाया । अब विशाल से प्यार करती है और यदि विशाल उसे अपना ले तो वह मरते दम तक उसके पैर की जूती बनने के लिए तैयार हैं l
” ऐसा ही होगा कुसुम ,ऐसा ही होगा।” विशाल ने कुसुम के दुख दर्द को बांटने के लिए अपने मन की बात बतायी कि वह भी कुसुम से बहुत प्यार करता है । अपनी कसम खाकर विशाल ने उसे आश्वस्त किया कि उसका प्यार सच्चा है और वह आशुतोष की तरह भडुवा नहीं निकलेगा । पिछले पाँच- छ: वर्षों से कुसुम ने बंबई में नरकीय जीवन बिताया और विशाल ने स्ट्रगल करते हुए । दोनों को मिला क्या…..? कुछ नहीं…. केवल निराशा….. कभी न पूरे होने वाले सपने….
“ऐसा करते है कुसुम, हम इस शहर को ही छोड़कर कहीं और चले जाते हैं ।”  विशाल के मुँह से अपने मन की बात सुनकर कुसुम के चेहरे पर चमक आ गई ।
“मैंने दस हजार रूपये जमा किये है ।” कुसुम की जमा पूंजी सुनकर विशाल हंस पड़ा।
” दस हजार में क्या होगा कुसुम । किसी नये शहर में एडजस्ट होना है तो किराए के मकान और कुछ महीने नौकरी ढूंढने की मशक्कत में , छोटा सा धंधा करने में कुछ नहीं तो कम से कम पचास हजार रूपये पास होने  चाहिए।”
” लेकिन मेरे पास तो बस इतना ही है।”  कुसुम कितनी निष्पाप और मन की साफ थी ।
“तुम अपने पैसे अपने ही पास रखो कुसुम I”  विशाल ने कहा ।
” तो इतने पैसे आएंगे कहाँ से !” कुसुम परेशान हो उठी।
“देखो कुसुम।”  विशाल योजना बनाने में मास्टर था। उसने भविष्य की योजना से कुसुम को अवगत करा दिया कि “सबको दिखा दूंगी”  फिल्म के बनते ही उसके हाथ में पचास हजार रूपये आ जाएंगे और वे दोनों बंबई छोड़कर किसी और शहर में अपना बसेरा बसाएंगे । कुसुम को थोड़ा विचलित देकर विशाल ने उसे अपने कलेजे से लगा कर थोड़ी ठंढ़क महसूस की ,  “ज्यादा से ज्यादा महीने दो महीने की तो बात है ।”  जीवन से मुक्ति की खुशी में  दोनों के बदन में वासना का ज्वार  उमड़ पड़ा। दोनों एक दूसरे को अपने सीने से भींचकर सैकड़ों चुंबन का आदान प्रदान करने लगे । जब वासना का ज्वार थोड़ा थमा तो महसूस किया कि सागर के  किनारे खड़ी है भीड़ उन दोनों को चिल्ला चिल्लाकर पुकार रही है I आँखें खोल कर देखा तो ऐसा लगा कि पैरों के नीचे की चट्टान कुछ ही मिनटों में सागर के पानी में डूब जाने वाली थी । क्योंकि  लहरें चुपके-चुपके उनके पीछे सड़क के किनारे तक फैल गई थी। कृष्ण पक्ष के दिनों में सागर पिछे चला जाता था और सांझ ढलते ढलते अपना दायरा बढ़ाकर सड़क के किनारे तक पहुँच जाता है । भीड़ ने समझा कि ये दोनों एक दूसरे को खूब चूम चाटकर आत्महत्या करने की योजना बना रहे हैं। काली चट्टान पर खड़े दोनों प्रेमी आनंदमयी जीवन जीने के सपने देख रहे हैं । दोनों ने एक दूसरे को सच्चा प्यार करने  एवं दुख दर्द बांटने की कसम खा चुके हैं ।  दोनों प्रेमियों के सच्चे प्यार की कसौटी को परखने के लिए ही लहरों के बीच फंसा दिया । विशाल तैरना जानता था लेकिन सैलाब को देखकर कुसुम की घिग्गी बंध गई । अब जीना है तो लहरों से लड़ना होगा वरना जल समाधि होते देर नहीं लगेगी  । नयी जिंदगी का सुबह देखने के पहले आज की रात उनके लिए मौत की सौगात बन जाएगी । किनारे पर भीड़ का शोर बढ़ता जा रहा था ।विशाल ने कुसुम की मयूरी रंग की साड़ी को घुटने के ऊपर करके उसकी पतली कमर में खोस दिया । कुसुम का दिल जोर-जोर से धुकधुका ने लगा  कुसुम ने उसका हौसला बढ़ाने के लिए अपनी बाहों में जकड़ा । उसके गले में बंधा मोगरे का गजरा सागर की लहरों में समर्पित किया और दोनों झमाक से सागर में कूद पड़े । विशाल एक हाथ  से कुसुम को पकड़े दूसरे हाथ से पानी को पीछे ढ़केलता हुआ मात्र पाँच मिनट की जद्दोजहद के बाद वे घुटनों पानी तक पहुँच गए । दोनों की सांस में सांस आई  l नये जीवन के पहले संकट को उन दोनों ने हाथ में हाथ डालकर पार कर लिया था ।आगे भी विशाल और कुसुम एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेंगे।
                                     ***
 एन. एफ. डी. सी. (राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम) राष्ट्रीय सामाजिक मुद्दों पर सकारात्मक फिल्म बनाने वाले निर्माता को एक फिल्म के लिए बत्तीस लाख का कर्ज देती है और फिल्म के वितरण का अधिकार अपने पास रख लेती है ।  एन. एफ. डी. सी  सरकार द्वारा आवंटित पैसे को अंधे की रेवड़ी की तरह नहीं बांटती बल्कि चुन चुन कर अपने खास बुद्धिजीवी निर्माता-निर्देशकों को फायदा पहुँचाती है । पिछले बीस वर्षों से कई  फिल्म निर्माताओं के यहाँ  प्रोडक्शन मैनेजरी का काम करते हुए सुरेश पील्ले ने अपनी मजबूत पैठ बना ली थी कि एन. एफ. डी. सी. से कर्ज का जुगाड़ करके अपनी एक महत्वाकांक्षी फिल्म  “गरीब  जिंदगी की अजीब दास्तान”  के निर्माण की घोषणा कर दी । फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी ड्रामा निर्देशक चैतन्यश्री को सौंपी गई । चैतन्य श्री को दूर से देखने पर ही पता चल जाता था कि महाराज कलाकार हैं और किसी न किसी फन में महारत जरूर रखते हैं । उम्र पैंतीस के आसपास थी और शरीर का ढांचा लंबा सीधा और पतला । आँखों पर गांधी ब्रांड गोल ऐनक और बदन पर खादी का एक्सक्लूजीव कुर्ता – पजामा पैरों में कोल्हापुरी चप्पल ।  “गरीब जिंदगी की अजीब दास्तान”  स्टोरी का  आईडिया चैतन्यश्री के दिमाग में उन दिनों कुलबुलाया था जब बंबई में हिंदू- मुसलमान के बीच हुए भयंकर दंगे  में मुसलमानों ने उनकी जमकर ठुकाई कर दी थी । मुसलमानों से पीटने के बाद मूर्छित अवस्था में राजावाडी सरकारी अस्पताल में दिनभर लावारिस पड़े रहे  क्योंकि वहाँ के डॉक्टर और नर्स ने इनकी तराशी हुई दाढ़ी मूँछ को देखकर इन्हें मुसलमान का बच्चा समझा । हिंदू- मुसलमान के नफरत की ज्वाला में एक आम हिंदुस्तानी किस तरह से सुलगता है,  इसी भावना को लेकर उन्होंने “गरीब जिंदगी की अजीब दास्तान”  फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी थी जो सुरेश पिल्ले के काम आई । चैतन्यश्री द्वारा निर्देशित एकल अभिनय नाटिका “बोंब मारो बोंब” ने बंबई के नाट्य जगत में तहलका का मचा दिया था। उन्हीं दिनों पत्रकार हरीशचंद्र पाठक की वजह से सुरेश और चैतन्यश्री के बीच संपर्क हुआ । उन्हीं दिनों सुरेश पिल्ले को एक ऐसी कहानी की तलाश थी जो एन. एफ. डी. सी की नियमावली के खांचे में फिट बैठती हो।  संयोगवश चैतन्यश्री की कहानी सुरेश पिल्ले के बैनर तले अप्रूव हो गई। आज सुरेश पिल्ले ने शिखर को चैतन्यश्री से मिलने के लिये बुलवाया था।  “हिंन्द के बाशिंदे” धारावाहिक में सुरेश पिल्ले प्रोडक्शन मैनेजर था और शिखर उनके सिरियल  में रोल पाने के लिए सुरेश से प्रार्थना किया करता था । उन दिनों सुरेश पिल्ले ने कई चक्कर  लगवाए थे । अंत में एक दिन अचानक सीरियल के निर्देशक अशोक सागर से शिखर की मुलाकात हुई और उन्होंने उसे “अली हसन”  का रोल ऑफर कर दिया । समय कितनी जल्दी करवट बदलता है। सुरेश पिल्ले ने आज शिखर को खुद फोन करके बुलावाया क्योंकि  “हिंद के बाशिंदे”,  “हम सब बुद्धू है” ,
“वाह रे जिंदगी” और “अपनी अपनी रामकहानी”  सिरियल  में चैतन्यश्री को शिखर का भावनात्मक रोल बहुत पसंद आया था । चैतन्यश्री को लगा कि शिखर ही वह “गरीब”  है जो उनकी कहानी के नायक की कसौटी पर खरा उतर सकता है ।
शिखर को सुरेश पिल्ले ने साइन कर लिया है और  पच्चीस हजार साइनिंग अमाउंट दे दिए । यह पहली फिल्म थी जिसमें  शिखर मेन लीड में था । अब तक शिखर सिरियलों में मात्र एक कैरेक्टर होता था । शिखर ईश्वर का बहुत ही एहसानमंद था जो धीरे-धीरे उसे सफलता के शिखर पर चढ़ने की राह दिखा रहा था।
                                           ***
निर्माता सुरेश पिल्ले के पी .आर.ओ. हरिश्चंद्र पाठक ने फिल्म “गरीब जिंदगी की अजीब  दास्तान” के मुहूर्त की शुटिंग रिपोर्ट एवं पोस्टकार्ड साइज की फोटो बंबई के साथ – साथ हिंदुस्तान के सभी हिंदी अखबारों में भिजवा दी । सुरेश पिल्ले ने बंबई के सभी छोटे-बड़े फिल्मी पत्रकारों को अपनी फिल्म के मुहूर्त पर चांदीवली स्टूडियो में आमंत्रित किया था ।पत्रकारों के खान-पान एवं अन्य सेवा सुविधा में विशेष ख्याल रखा गया था। इसलिए मुहूर्त के दूसरे तीसरे दिन तकरीबन सभी अखबारों में आधा पेज समाचार केवल मुहूर्त की रौनक हीरो, हीरोइन ,निर्माता के इंटरव्यू से भरे पड़े थे ।अखबारों में छपी एक वर्किंग स्टील में फिल्म का हीरो शिखर और हीरोइन रश्मि के हाथ में जलती मशाल थामने का फोटो भी छपा है । अखबार में इस तस्वीर को देखकर बिहारी को उस दिन की याद आ गई जब  वह सीरियल में काम दिलाने की आस में रश्मि की मुलाकात सीरियल के प्रोडक्शन कंट्रोलर सुरेश पिल्ले से करवाई थी । सुरेश पिल्ले ने रश्मि को अपनी फिल्म में लीड रोल दे दिया और बिहारी को इसकी कोई खबर नहीं। ” कम-से-कम रश्मि तो मुझे बता सकती थी।”  उसकी एहसानफरामोशी का ख्याल आते ही बिहारी का मलपट तमतमा उठता था। रश्मि की सफलता उसके हृदय में शूल की तरह चुभ रही थी । अब वह अपने कैरियर के बारे में कम , रश्मि की बर्बादी का बवंडर उसके मन में उठने लगा था । “इंडस्ट्री के सभी छोटे बड़े निर्माता निर्देशकों से मैंने रश्मि को इंट्रोड्यूस करवाया और आज उन लोगों ने काम देना शुरू किया तो भूल तो मुझे भूल गई ।”  प्रतिशोध की भावना में तीव्र गति से उबाल आता कि रश्मि के मुँह पर तेजाब फेंक कर उसे उसकी बेवफाई की सजा दी जाए। कभी-कभी वह ईश्वर से प्रार्थना करता कि किसी दुर्घटना में रश्मि की टांग टूट जाए और वह जिंदगी भर के लिए अपाहिज होकर एक कोने में सड़ती रहे । कुछ न हो तो कम से कम यह फिल्म डिब्बे में बंद हो जाए ताकि रश्मि का गुरुर टूट जाए । बिहारी को विश्वास था कि अगर ऐसा कुछ न हुआ तो वह फिल्म सुपर फ्लॉप हो जाएगी और वह इंडस्ट्रि में रश्मि को “अनलकी एस्ट्रेस”  के खिताब से प्रसारित करेगा। शिखर स्वयं फिरोज सैफी के यहाँ आकर बिहारी को फिल्म के मुहूर्त पर आने की प्रार्थना कर चुका था लेकिन कार्ड पर रश्मि का  नाम पढ़कर मुहूर्त में न पहुँच पाने के उसने सैकड़ों बहाने गिना दिए थे । बिहारी से दस साल जूनियर और एक समय का रूममेट शिखर हीरो बन गया, इस खबर से न उसे कोई ईर्ष्या  थी न ही खुशी, उसके मन में बस एक ही दहक थी पहले मजाक मजाक में उसकी नाक खींचनेवाली रश्मि ने बिहारी को बिल्कुल भुला दिया। बिहारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा था। अखबार में रश्मि के तस्वीर पर थूंक दिया। इतने से भी शांति नहीं  मिली तो अखबार के अनगिनत टुकड़े करके  बाहर फेंक दिए । “मुझे क्या हो गया भगवान? मैं क्या कर रहा हूँ ? मैं इतना नीच हो गया हूँ कि …!!!
 दुनिया में सबसे ज्यादा बदजात प्राणी की नस्ल इंसान की है । आदमी से ज्यादा कमीना, हरामखोर और कोई जीव नहीं हो सकता । मनुष्य मनुष्य का मांस भक्षण नहीं करता इसलिए वह मन, वचन, और कर्म द्वारा अपनी निकृष्टता का प्रदर्शन करके असीम तृप्ति का अनुभव करता है । मुट्ठी भर सुख पाते ही महा अभिमानी और क्षण भर का दुख भोगने पर ईश्वर के समक्ष भीरू बनकर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहनेवाला जी्व एड्स के वायरस से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
                                      ***
क्या सभी की उम्मीदें पूरी होती है ? क्या सपने सच भी होते है? जीवन की विसात पर खड़े कर्म और भाग्य की मोहरे न जाने कब किसका पासा पलटकर उसे ताज और तख्त का रूतबा प्रदान करे, और न जाने कब चारों खाने चित करके मैदान छोड़ने के लिए मजबूर कर दे । भविष्य के गर्भ में पलनेवाले होनी- अनहोनी को आज तक  कोई जान नहीं पाया।  यह कैसी विडंबना है कि बदी के बदा को कोई बदल नहीं सकता। विशाल के कदम एक ऐसे भंवर की तरफ बढ़ रहे थे जिसमें फंसने के बाद विशाल का बचना मुश्किल था।
                                           ***
पंद्रह लोगों की युनिट के साथ रशीद भाई इगतपुरी पहुँच गया। साथ में विशाल, अच्युतानंद और बलजीत सिंह भी थे।   “सबको दिखा दूंगी”  का टाइटल रोल  शालू कर रही थी जो हैरी प्राश की एक विज्ञापन फिल्म   “शाईन हेयर रिमूवर” में मॉडल थी । फिल्म का हीरो  एक पच्चीस वर्षीय सजीला नौजवान करण था जिसे विशाल ने अंधेरी, बांद्रा, जुहू चर्च की सड़कों पर निर्माताओं के कार्यालय में काम की तलाश में स्ट्रगल करते देखा था । फिल्म युनिट इगतपुरी के होटल अंबेसडर में रूका हुआ था । रशीद भाई ने होटल से पाँच किलोमिटर दूर एक बंगले को बुक कराया था जहाँ पाँच दिनों शुटिंग करने की योजना थी।

” देखिये सर,”   रशीद भाई निर्माता बलजीत सिंह को समझा रहा था,  “हमें पाँच दिनों में शुटिंग कंपलीट करनी है। आज और कल केवल हीरो हीरोइन के सारे सीन शूट करेंगे और परसो सुबह विक्की भी आ रहा है जो अपनी फिल्म का विलेन है । परसो रेप सीन शूट करेंगे अगले दो दिन नदी के किनारे क्लाइमेक्स शूट करेंगे क्यों….. ठीक है न मेरी प्लानिंग?” रशीद के मोटे फुले हुये होंठ टप टप चल रहे थे । रशीद भाई ने चार लाख का दस लाख बनाने का गणित बलवीर बलजीत सिंह के दिमाग में इस तरह से भर दिया था कि वह गूंगे बैल की तरह केवल उसकी  हाँ में अपना सिर हिलाया करता था ।

“और हाँ…. आपने जो एक लाख दिए थे वह यूनिट की साइनिंग अमाउंट, होटल, बंगले की बुकिंग में खर्च हो गए । आज शाम को एक लाख और चाहिए ताकि मैं प्रोडक्शन मैनेजर के साथ नेगेटिव डिवेलप करने के लिए बंबई भेज दूं।”
” हाँ हाँ, वो इंतजाम हो जाएगा।” बलजीत सिंह जब रशीद की आँखों में देखता तो उसे सम्मोहित होने में देर नहीं लगती ।
“आगे डबिंग , एडिटिंग में डेढ़ लाख लगेंगे । शुटिंग के बाद अपने को फटाफट पोस्ट प्रोडक्शन का काम करना है।”   रशीद भाई की योजना बलजीत सिंह अच्छी तरह समझ गया।
“चलो भाई, रेडी फॉर टेक।”
                                          ***
  “जुग- जुग जियो मेरे लाल”  कहते हुए माँ ने शिखर को अपने गले से लगा लिया। माँ ने सीने से लगते ही शिखर को लगा कि जैसे दुनियां की  सारी खुशियाँ उसके अधीन हो गई हो। माँ की आँखों में बेटे के प्रति गौरव की चमक थी। स्ट्रगल के दौरान शिखर जब बुरी तरह हताश हो जाया करता था । तो उसे माँ की याद आया करती थी जो उसकी सफलता के लिए व्रत और  कई प्रकार की मनौतियाँ संकल्प करती थी । पिताजी के चरण स्पर्श के लिए झुका तो एक नहीं , सैकड़ों मैदान मार लिए हो । आज वह उन्हीं पिताजी के चरण स्पर्श कर रहा है जिन्होंने उसे कभी नचनियां  पदनियां कहकर  उसके फिल्मी प्रेम की खिल्ली उड़ाई थी ।  “पंडित के घर जन्म लेकर भांडगिरी  करेगा ? यही नौटंकी में करेंगई करने के लिए तुम्हें इतना  पढ़ाया – लिखाया ? खबरदार, कभी बंबई जाने की बात जबान से निकाली तो…..किसी भी कीमत पर तुम्हें आई.ए.एस. या पी.सी.एस क्वालीफाई करना है I “
पिताजी के एक एक शब्द शिखर के कान में गूंज रहे थे । शिखर द्वारा फिल्म में काम करने की बात सुनते ही घोड़े की तरह बिदकनेवाले  पिताजी आज बेटे की कामयाबी पर उससे मिलने बंबई आए थे,  साथ में शिखर की अमानत…. उसकी धर्मपत्नी पूनम को भी साथ लाए थे। पिताजी को अपने अतीत के व्यवहार पर कोई मलाल नहीं था क्योंकि उनका मानना था कि इस लाइन में काम करने वाले लोग चरित्रहीन होते हैं । शिखर  घर छोड़कर बंबई भाग आया। आज वह  कम से कम अपने बल पर किराए का ही सही सर पर  छत की जुगाड़ और दो पैसे कमाने में कामयाब हो गया । पिताजी को इसी बात का संतोष था कि शिखर अपना और अपने साथ साथ  खानदान का नाम रौशन किया था । गाँव में जब टीवी पर उसके सिरियल प्रसारित होते तो पूरा गाँव का गाँव टीवी घेर कर बैठा रहता । बूढ़े ,बच्चे, औरत ,मर्द सभी शिखर की तारीफ करते हैं ।अपने सामने दूसरों मुख से बेटे की बात सुनकर उनका कलेजा भर आता। नचनिया पदनिया ही सही, हमारे सात पुश्त में किसी ने इतना नाम नहीं कमाया था । जितना शिखर अपने घर – गाँव -रिश्तेदारों में आकर्षण का केंद्र बन गया था। सास और ससुर के कहने पर पूनम ने  शर्माते हुए शिखर के चरण – स्पर्श किए । दादर स्टेशन पर इस तरह पूनम से अपना पर छुलाना शिखर को अटपटा लग रहा था ।  उसने माता- पिता की निगाह बचाकर पूनम को गौर से देखा …..गवने की रात वाली दुल्हन ….. लंबी गोरी…..गोल सा मुखड़ा…. पूनम के बिना इतने महीने के लिए किसी यंत्रणा से कम नहीं थे। यह सोच कर कि उसकी पत्नी उसके साथ अब बंबई में ही रहेगी , शिखर का रोम – रोम पुलकित हो उठा। दादर स्टेशन से तुरत फुरत में उसने अंधेरी के लिए टैक्सी पकड़ी। आगे ड्रायव्हर के साथ पिताजी बैठ गये। पीछे एक कोने में खिड़की के पास माँ और दूसरे कोने में शिखर बैठ गया । बीच में बनारसी साड़ी में लिपटी पूनम गुड़िया की तरह सिकुड़कर बैठी है।साड़ी के पल्लू के नीचे शिखर पूनम की हथेली को हौले-हौले सहला रहा है । पूनम मंद-मंद मुस्कराकर कनखियों से एक नज़र शिखर को देख कर तृप्त हो जाती थी। टैक्सी सड़क पर बेतहाशा दौड़ पड़ी।
         यह वही बंबई है जहाँ मौसी के घर से निकाले जाने के बाद शिखर ने कई रातें माहिम के हनुमान मंदिर के प्रांगण में गुजारी थी। यह वही बंबई है जब शिखर ने कई महीने केवल केला और वड़ा पाव खाकर बिताये थे। यह वही बंबई है जब स्टूडियों में घुसते समय उसके फटे जूते को देखकर वाचमैन ने उसे स्ट्रगलर समझ कर बाहर निकाल दिया था। यह वही बंबई है जहाँ के स्टेशनों पर उसने अश्लील किताबे बेचकर दो रोटी का जुगाड़ किया था। चकरघिन्नी की तरह निर्माता, निर्देशकों ने सैंकड़ों चक्कर लगाने के बाद भी कोई बात न बनी लेकिन शिखर ने बंबई का दामन नहीं छोड़ा। बुरे दिन और कडुवे अनुभव के बाद सड़क का स्टूगलर शिखर आखिर सिरियलों में छोटे-मोटे कैरेक्टर रोल करते करते “गरीब जिंदगी की अजीब दास्तान” का हीरो बन गया। स्ट्रगल के दिनों में बांद्रा के महबूब स्टूडियों से गोरेगांव के फिल्मालय स्टुडियों तक काम की तलाश में पैदल सफर करने वाला शिखर आज अपने माँ-बाप और पूनम के साथ अपने वन रूम किचन गैलरी के फ्लैट में अंधेरी पहुँचने के लिए टैक्सी में जा रहा है।
                                            ***
 सुख की आयु बहुत कम होती है और दुख की आयु बहुत लंबी …..सुख-दुख की अनुभूति ही आँखों में चमक और आँसू बहाती है । दुख का एक पल सुख के सौ वर्षों के बराबर होता है l   समय परिवर्तनशील है । दुख के दिन भी एक न एक दिन गुजर ही जाएंगे । सांझ होने पर जब सूरज की इतनी बिसात नहीं कि वह अपने आप को अस्त होने से बचा सके तो अनुकूल समय आने पर अंधियारा छट जाएगा। शिखर के जीवन में सुख का आगमन हो चुका था । रश्मि के आंगन में आस की किरणें पसर गई । विशाल और बिहारी का जीवन समय के बहाव में आगे बढ़ता जा रहा था । उन दोनों का भविष्य बिल्कुल अंधकारमय था । विशाल का लक्ष्य उसकी आँखों से ओझल हो गया और बिहारी अपनी मंजिल की राह में भटक रहा था ।
 दुख केवल पीड़ा ही नहीं देता बल्कि जीवन के मूल्यों को समझाता भी है।  सिद्धांत एवं आदर्शों को दुनिया के  मन – मस्तिष्क में मथता रहता है। कुछ नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है लेकिन रश्मि के बिना बिहारी एकदम अकेला, आलसी और शून्य अनुभव करने लगा था । उसके मन में आगे बढ़कर  “कुछ” कर दिखाने की ललक ही सूख गई । फिरोज सैफी, शिखर, निरंजन पागल, रश्मि ,सुरेश पिल्ले ,चैतन्यश्री सभी  कदम दर कदम सफलता के पायदान पर चढ़ते जा रहे हैं  लेकिन रईस, शशांक, संदीप सुर्वे ,विशाल, शालू ,बिहारी निराशा के झूले में आगे-पीछे दोलन की तरह केवल झूल रहे हैं । सभी स्ट्रगलर हैं । सभी अपनी हिम्मत के साथ स्ट्रगल कर रहे हैं। लेकिन कुछ को सफलता मिली और कुछ अंधेरे में तीर चला रहे हैं । ग्लैमर के क्षेत्र में तकदीर ही सब कुछ होता है। जो जीत गया …..वही सिकंदर…. बाकी बंदर।
                                            ***
मनुष्य के अंतर्मन में  किसी भी प्रकार की इच्छा जागृत हो, चाहे वह राजसी हो, तामसी हो या सात्त्विक । उस इच्छा की प्राप्ति के लिए वह तन -मन- धन से प्रयत्नशील हो जाता है । प्रयत्न करने पर साधारणतः  सफल नहीं हो पाता तो वह कई तरह के हथकंडे अपनाने शुरू कर देता है साम दाम दंड भेद । नीतिगत प्रयासों के बावजूद निराश होने पर वह अपने मन को समझाता है यह मंजिल मेरे भाग्य में नहीं है तो व्यर्थ में इतना प्रयास क्यूं करूं।  खट्टे अंगूर वाली लोमड़ी की तरह सोचने पर वह संतोषी हो जाता है । सच से समझौता करके सीधा साधा सुखमय जीवन व्यतीत करने में ही वह अपनी भलाई समझता है …..परंतु ….यदि दुर्भाग्यवश वह अपने आप को समझाने और फुसलाने में असफल रहा या उसने महसूस किया कि अगर थोड़ी और मेहनत,  प्रतिक्षा कर ली जाए तो बात जरूर बनेगी …..तो समझो…. वह धुरंधर ताज तख्त का शहंशाह बनेगा या शहीद हो जाएगा । लेकिन लोग उसकी शहादत को  “कुत्ते से भी बदतर मौत” का खिताब देकर चिल्ली उड़ाएंगे।
 पटना यूनिवर्सिटी का अखिलेश सिन्हा और बंबई फिल्म इंडस्ट्री का सहायक निर्देशक …. बिहारी….. अपनी जिंदगी के साथ भाग्य के भी साख पर अपने सुनहरे भविष्य को दांव पर लगाकर बर्बाद हो चुका था । “डू और डाई”  सिद्धांत पर अटल रहने वाले बिहारी “बैक टू पवेलियन”  की तैयारी करने लगा ।
“मेरे दोस्त,  इतना मायूस नहीं होते ।” फिरोज सैफी बिहारी को समझा रहा है कि पंद्रह वर्ष बंबई में झक मारने के बाद अब वह पटना लौट कर वहाँ क्या करेगा ?
” यहाँ रहकर ही कौन सा झंडा गाड़ लूंगा ।”   बिहारी के इतना कहने पर फिरोज सैफी बुरी तरह से जलभुन जाता ।  बिहारी को समझाने के लिए वह अपने आप को उसके सामने प्रस्तुत करता है।
“मुझे देख बिहारी, मुझे देख। क्या मैंने कम पापड़ बेले हैं इस बंबई में? मुझे वह दिन अच्छी तरह याद है जब मेरे अब्बा जान का इंतकाल हो गया तो छपरा जाने के लिए मेरे पास किराए के पैसे नहीं थे।”  फिरोज की आँखों में नमकीन पानी की बूंदे तर होने लगी। “मैंने कितनों के सामने रो गाकर चार सौ रूपये का जुगाड़ किया तो मुझे जिस दिन जाना था उसी दिन से लगातार दस दिनों के लिए शुटिंग में एक फिल्म में छोटा सा रोल मिला । अब गाँव जाऊं की शुटिंग अटेंड करूं? दस दिनों की आउटडोर शुटिंग के मुझे चार हजार रूपये मिलते।  किराए के पैसे मांगने के लिए मुझे लोगों के सामने रोकर कहना पड़ा था कि मेरा बाप मर गया l अब तो शुटिंग में मुझे मेरे मेहनत के पैसे मिलेंगे। अब्बा के इंतकाल के एक महीने बाद मैं घर पहुँचा तो लोगों ने मुझ पर ताने कसे I मेरी हंसी उड़ाई और यहाँ तक कि मेरे भाइयों ने मुझे बाप – दादा की जमीन जायदाद से बेदखल कर दिया।  मेरे दोस्त बिहारी, ये खुदा बहुत रहम दिल है । उससे बड़ा कोई कारसाज नहीं है। अल्लाह के फज़ल से आज मेरे पास सब कुछ है जो मैं चाहता था। मैं हीरो नहीं बन सका तो क्या,  एक कैरेक्टर आर्टिस्ट की अहमियत भी कम नहीं होती। आज मेरे गाँव -बाजार – जिला में जब मेरी पिक्चर लगती है तो पर्दे पर मुझे देखते ही सब चिल्लाते हैं….. ये देखो अपना फिरोज भाई ।
“सब तकदीर की बात है फिरोज भाई। अपनी ऐसी तकदीर कहाँ?  बिहारी ऊपरवाले को कोसने लगा ,  “तुम्हारा ऊपर वाला सब पर रहम नहीं करता।”
” ऐसा नहीं कहते …..”  फिरोज इसके आगे कुछ कहता कि बिहारी ने उसे टोक दिया,  तुम्हें तुम्हारे खुदा की कसम फिरोज भाई,  मुझे मत रोको। मुझे पटना लौट जाने दो।
” ऐसी जिद नहीं करते बिहारी …..मैं तेरे लिए कुछ ना कुछ करूंगा ।”  फिरोज के एहसान को बिहारी ने ठुकरा दिया । मैं यहाँ रहूंगा तो पागल हो जाऊंगा। क्या तू चाहता है कि तेरा दोस्त पागल हो जाए?”
फिरोज असमंजस में पड़ गया। उसके दिमाग में एक दूसरा उपाय सूझा,  “ठीक है , तू आजकल मेंटली डिस्टर्ब हो गया है । एक दो महीने के लिए घर जाकर फ्रेश हो जा।  फिर आना बंबई। मैं कुछ ना कुछ ठोस करता हूँ।”
फिरोज के इस अपनापन से बिहारी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। फिरोज के हाथों को अपनी दोनों हथेली में दबाकर बिहारी ने मन की बातें करना शुरू किया ।
 “फिरोज भाई।  पंद्रह साल बहुत होते हैं । जब मैं बाईस  साल का था तब से बंबई में हूँ ।  आज मेरी उम्र पैंतीस अड़तीस के करीब है। पहले एक सपना देखा करता था कि फिल्म निर्देशक बनूंगा,  अच्छी-अच्छी फिल्में बनाऊंगा I खूब नाम होगा मेरा I गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस होगा लेकिन पंद्रह साल से स्ट्रगल के बाद आज मैं क्या हूँ? और एक तू है .जिसके भरोसे मुझे दो जून की रोटी और सिर पर छ्त मिली हुई है नहीं तो कहीं फुटपाथ पर भूखे पेट सोना पड़ता।”
“ऐसा नहीं कहते बिहारी! दोस्ती में तो एक दूसरे की हिफाजत करना हम दोनों का फर्ज बनता है ।”  फिरोज ने दोस्ती का वास्ता दिया।
” तुझे उसी दोस्ती की कसम फिरोज भाई !”  बिहारी की भावनाएं चरम पर पहुँच गई ,  “मुझे यहाँ रोककर और जलील ना कर।”
“ये क्या बक रहा है तू?” फिरोज का चेहरा तन उठा।
” फिरोज भाई। मैं बक नहीं रहा हूँ। अब मेरे सपने बदल गए हैं ।बिहारी की जिंदगी के मायने बदल गए हैं। अब मैं इस बंबई की बॉलीवुड का डायरेक्टर नहीं बनना चाहता। तू मेरा दोस्त है ना ? मैं तुझे अपने दिल की बात बताता हूँ कि अब मैं क्या चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि एक  ऐसा घर हो  जो मेरा अपना हो , जिसकी छत के नीचे मुझे सुकून मिले । मेरी तमन्ना है कि ऐसी बीवी की जो मुझे प्यार करें और उस पर मैं अपनी जिंदगी कुर्बान कर दूं l मैं अपने बच्चों का बचपना देखना चाहता हूँ । उन्हें अपनी गोदी में खिलाना चाहता हूँ ।अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा करना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे पैदा किया और दिन रात मेहनत करके पटना यूनिवर्सिटी तक पहुँचाया। अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ फिरोज , अब मुझ में स्ट्रगल करने की हिम्मत नहीं रही ।अंधेरी से खार तक पैदल चलते समय मुझे चक्कर आते हैं।  अपने बॉस के मुँह से गाली सुनकर आत्मा तड़पती है ।एक मौके की तलाश में पंद्रह साल बीत गए, लेकिन मिला क्या ! बाबाजी का घंटा….. फिर उसी मौके की तलाश में अगर पंद्रह साल और बीत गए तो फिर मेरा क्या होगा ? है कोई गारंटी कि मैं फिल्म निर्देशक बन ही जऊंगा। मुझे लौट जाने दो अपने घर । मैं इतना अभागा तो नहीं  लेकिन अगर किस्मत ने मुझे घर ,बीवी और बच्चे का सुख नहीं दिया तो कम से कम मैं अपनी जन्मभूमि में मारूंगा । अंतिम सांस अपने खेत खलिहान, आंगन या गाँव के तालाब के किनारे लूंगा । मैं जरूर जाऊंगा , जरूर जाऊंगा । इस बंबई में मेरा दम घुट रहा है । हे भगवान ….बिहारी अपनी रौ में कहता जा रहा है ।फिरोज सैफी समझ गया कि अब  बिहारी को रोकना ठीक नहीं है ।
“गुडबाय बंबई…. तुझे एक नहीं,  सात जन्म तक याद करूंगा। थैंक्यू बॉलीवुड…. तुझे मेरा हजार बार सलाम।”
     बिहारी की पीड़ा को  फिरोज भी महसूस करने लगा।
                                            ***
समय और भाग्य  के द्वंद्व में आदमी की हालत चूं चूं के मुरब्बे की तरह हो जाती है।  विकास के दौर में असहनीय पीड़ा और विकसित होने के बाद असीम आनंद की प्राप्ति। पतझड़ के बाद बसंत ।जेठ के बाद आसाढ़। रात के बाद दिन । जड़ के बाद तना।   बौर के बाद फल। दूध से दही। प्रसव के बाद ममता। धूप-छाँव के कई पड़ाव से गुजरने के बाद सांझ की गोधली में  “क्या खोया- क्या पाया”  का विचार करें तो कुछ लोगों को लगता है कि बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया और कुछ लोग महसूस करते हैं कि न कुछ खोया,न कुछ पाया । कुछ ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि जब कुछ खोकर कुछ पाया तो वह प्राप्ति भी किस अर्थ की? शाश्वत सत्य कथन है कि पाने और खोने के अनुपात में माथापच्ची न करते हुए संतोष करने में ही समझदारी है । दुर्भाग्यवश, ऐसे समझदारों की संख्या बहुत कम है।
 बंबईया फिल्म इंडस्ट्री के स्ट्रगलर लल्ली की गिनती ऐसे समझदारों में  की जा सकती है । अपने माँ -बाप का दुलारा लालता प्रसाद गाँव की पुश्तैनी मकान छोड़कर बंबई के एक अस्तबल में शरण ली क्योंकि वह देवानंद फोबिया से ग्रस्त था ।  देवानंद बनने में बड़ी कठिनाई देखी तो स्पॉट बॉय लल्ली बन गया ।आगे बढ़कर आसमान को चूम लेने की चाहत ने उसे इतना उत्सर्जित किया कि वह फिल्म की नयी नवेली हीरोइन रश्मि का ड्राइवर बन गया । रश्मि जब अपने ड्राइवर को बुलाती तो उसके मुँह से लल्ली नाम न निकलकर सन्नी नाम निकलता I धीरे-धीरे रश्मि की बार – बार होनेवाली भूल – चूक से वह हमेशा के लिए लल्ली से सन्नी हो गया। सभी उसे सन्नी नाम से बुलाने लगे । सन्नी अपने नये नाम और नयी नौकरी से बहुत खुश हैं I अस्तबल से निकलकर  कोठरी में और चाय की गिलास की जगह मारुति कार धोने की नौकरी । यह तरक्की नहीं तो और क्या है ? बिना कुछ खोए उसने कुछ तो पानी में सफलता प्राप्त कर ली थी लेकिन सागर की मोतियों की चाहत में डूबता उतराता गोताखोर को शीशे के कंचे से कैसा मोह ? वह मौके की तलाश में रहने लगा कि कब मैडम रश्मि की ड्राइवरी से उसे मुक्ति मिले । सन्नी को आभास हो गया कि उसकी मंजिल आसान नहीं है । वह बहुत सोच समझ कर अपना एक एक कदम आगे बढ़ाता । वह लखपति करोड़पति नहीं, कुबेरपति बनना चाहता था ताकि पूरी बंबई को खरीद लें।  रश्मि सन्नी का बहुत ख्याल रखती थी जैसे एक मालकिन को अपने नौकर का रखना चाहिए।  सन्नी  रश्मि के प्रति वफ़ादार था ।  धीरे-धीरे सन्नी रश्मि का हमराज भी बन गया । अपनी मैडम के कंप्रोमाइज का शिड्यूल अच्छी तरह से पता था कि आज मैडम किस निर्माता, निर्देशक, फाइनेन्सर, वितरक या हीरो के साथ कितने घंटे किस होटल के किस कमरे में टू पीस बिकनी पहनकर फिल्म साईन करने वाली है । आज रश्मि के पास कुल आठ फिल्में है जिसमें वह मुख्य हीरोइन है । मैडम के साथ सन्नी भी डे नाईट की शिफ्ट में  व्यस्त है । मैडम की तरफ से दो हजार तनख्वाह और शुटिंग डबिंग के दिन प्रोडूसर की तरफ से सौ रूपये का पर डे । लालता से लल्ली और लल्ली से सन्नी…. सन्नी उसकी सीमा नहीं …..उसे कुछ और बनना चाहिए….. लेकिन कैसे? इसी  “कैसे” की चिंतन में सन्नी दिन रात चिंताग्रस्त रहता है ।
                                           ***
“बकवास है एन. एस. डी. ।  मुझे अफसोस है कि मैंने अपने किमती तीन साल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अभिनय का प्रशिक्षण लेने में गवां दिया ।” ‌ मेकअप रूम में शशांक अपने चेहरे पर पुते मसखरा को नारियल तेल से पोछ रहा है । मेकअप मैन सुभाष शिंदे लंबे बालों के विग को उसके माथे पर चिपकाए पट्टी को धीरे- धीरे निकाल रहा है ।
“अरे माना कि तुम डायरेक्टर हो….. कोई तोप थोड़े ही हो कि मन में जो आया बक दिया ।” शशांक का गुस्सा उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा था ।
“बास्टर्ड…..भर के सीरियल के डायरेक्टर क्या बन गए,  साला अपने आप को राज कपूर ,सुभाष गई समझता है।”  शशांक की आँखों में घृणा के ज्वार का उफान आ जा रहा था ।  “एक्टिंग डिप्लोमा होल्डर फ्रॉम नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा,  न्यू डेलही…. मि.  शशांक रस्तोगी ।”   आदमकद शीशे में दिखाई देनेवाले  शशांक को सामने कुर्सी पर  बैठे  “नारद पुराण”  सीरियल के सूर्य देवता उर्फ शशांक ने अपना परिचय दिया पूरे तीन साल तक एन . एस. डी. में अपनी मरायी…. यहाँ देखो…. पौराणिक सीरियल कर रहा हूँ।…… नाट्य के सिद्धांत और नाटक इतिहास का अध्ययन मैंने किया, थिएटर में तीन एशियाई और दो भारतीय नाटक में रोल मैंने किया….मूक अभिनय ……एकल अभिनय ….. पारंपरिक लोकनाट्यों में चेहरे के भाव और आवाज के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए सैकड़ों नाटक मैंने देखे …..और ये साला डायरेक्टर….. जो सारी जिंदगी लोगों को असिस्ट करते-करते फ्रस्टेड हो गया है ,  मुझे बता रहा है कि सूर्य देवता डायलॉग कैसे बोलेंगे ?  शशांक रस्तोगी सिरियल निर्देशक द्वारा किए गए अपमान की पीड़ा से तिलमिला रहा था I
“हम एन. एस. डी. के स्टूडेंट है और यहाँ आकर इनकी बुंड मारूं….. दो टके के प्रोडक्शन मैनेजर और फ्रस्टेड सिरियल डायरेक्टरों की जी हजूरी करनी पड़ती है ।”  शशांक के आवेश को देखकर मेकअप मैन मन ही मन मुस्कुरा रहा है , लेकिन उसके चेहरे का भाव ऐसा है जैसे वह शशांक के अपमान से खुद दुखी है।

“ये बास्टर्ड ने जानबूझकर आठ  रिटेक करवाये ताकि सेट पर पूरी यूनिट के सामने मेरा इंसल्ट हो l वो जैसा कह रहा है  वैसा ही डायलॉग  स्पीच में डिलीवरी कर रहा हूँ फिर भी ये गधा टेक पर टेक करवा रहा है । और साले की हिम्मत देखो…. मुझे मादर चोद की गाली दी।”  शशांक  पूरे शरीर को ऐसे देखा जैसे उसे सफेद कुष्ड  हो गया हो ।  ” ….वाले को पता नहीं है कि मैं ऐसे खानदान से ताल्लुक रखता हूँ जहाँ एक शब्द भी गलत बोलने पर उसकी जीभ राख लगाकर खींच ली जाती है ।”  शशांक अपने खानदान के नाम पर कलंक है क्योंकि माँ की गाली सुनने के बाद उसने डायरेक्टर की जीभ नहीं खींची और क्रोध के आवेश में सिर पर रखा हुआ मुकुट उसने हवा में उछाल दिया ।

“गेट आउट”  निर्देशक क्रोध से फुफकार उठा ।
“शट अप”   शशांक ने उससे भी जोरदार आवाज में फीडबैक दिया।
” साले हाथ जोड़कर काम मांगने आते हो और काम मिलने के बाद अपने आप को दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन का बाप समझने लगते हो।”   “नारद पुराण”  के निर्देशक ने अपने संवाद को विराम नहीं दिया,  “किस गधे ने तुम को सलाह दिया कि तुम एक्टर बनो ……….”
बड़ी भागदौड़ और मेहनत के बाद स्ट्रगलर शशांक को  “नारद पुराण” में सूर्य देवता का रोल मिला था लेकिन निर्देशक से पटरी  सही नहीं बैठने के कारण वह एक बार फिर सड़क पर आ गया ।
“सूर्य और इंद्र का रोल करके कौन सा भला होनेवाला है ? चलो चलते हैं राजकुमार संतोषी के ऑफिस में । जैक डॉन बता रहा था कि वो नई फिल्म शुरू करने वाले हैं ।इसके बाद विधु विनोद चोपड़ा के ऑफिस में चलते हैं वही प्रोडक्शन मैनेजर अपने दिल्ली का एक बंदा है । अरे हाँ,आज शाम को पृथ्वी थियेटर में कृष्णा से भी मिलना है।  कम से कम एक प्ले तो करता रहूँ । मुझे माफ करना मेरे भगवान, आज गुस्से में आकर मैंने एन. एस. डी.  को भला बुरा कहा । जब अपनी तकदीर ही  थर्ड क्लास है तो इसमें एन. एस .डी . का क्या दोष है? सैकडों एन. एस. डी. जिन्होंने अपना एक मकाम बना रखा है। कहाँ मैं नारद – वारद , पुराण – सुराण के चक्कर में फंस गया । एक पचास पचपन साल का फ्रस्टेड अनसक्सेस  गधा एक यंग डायनामिक एन .एस .डी. रिटर्न को क्या डायरेक्शन देगा ?”
 एन.एस. डी . रिटर्न शशांक बंबई में स्ट्रगलर की भीड़ में शामिल हो गया एक सुनहरे अवसर की तलाश में जो उसे नसरुद्दीन, ओमपुरी ,शाहरुख के पोजीशन तक पहुँचा दें।
                                       ***
 बांद्रा सिग्नल के पास ट्रैफिक जाम में रश्मि की मारुति कार फंस गई ।गाड़ियों के झुंड से अपनी कार निकालने का रास्ता सन्नी देखने लगा। इतने में एक भिखारिन खिड़की के टिंटेड शीशा के पार खड़ी होकर भीख मांगने लगी I उसके शीशा खटखटाने पर रश्मि और शनि की नजर उस भिखारिन पर पड़ी जो फटी चिथड़ी पुरानी साड़ी पहने थी जिसके तार तार छिद्र से उसका सांवला बदन दिख रहा था । भिखारिन के मुख पर कुटिल मुस्कान थी जो बार बार अपने आंचल को सीने से नीचे गिरा कर फिर लापरवाही के साथ ऊपर सरका कर भीख मांग रही थी । सन्नी को भिखारिन की यह बेशर्मी बहुत खराब लग रही थी क्योंकि उसने ब्लाउज नहीं पहना था।
“नॉनसेंस लेडी, बहुत चालु है यह नीच।”  रश्मि ने उपेक्षा और घृणा के साथ अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया।   “सबका अपना अपना स्टाइल है मैडम I  यह भीख मांगने का नया फैशन है।”  सन्नी ने अप्रत्यक्ष रूप से रश्मि पर व्यंग्य कसा । रश्मि ने सन्नी की बातों को ठीक से नहीं सुना। भिखारिन शीशा खटखटा कर टिंटेड ग्लास के भीतर झांकने का प्रयास कर रही थी । इतने में सिग्नल हरा होते ही गाड़ियों का काफिला आगे निकल पड़ा । . खार सिग्नल पर ट्रैफिक जाम होने की वजह से सन्नी को फिर गाड़ी रोकनी पड़ी I इतने में दो-चार कुष्ठरोगी भिखारियों ने गाड़ी को घेर लिया।  कुछ देर तक गाड़ी के भीतर से कोई हलचल न होने पर कुछ कुष्ठरोगी भिखारी दूसरी गाड़ियों की तरफ सरक गए  लेकिन एक बूढ़ा कोढ़ी आस लगाए वहीं खड़ा रहा।  सन्नी ने धीरे से शीशे को नीचे सरका कर एक रुपए का सिक्का भिखारी की कटोरी में डाल दिया । वह कोढ़ी आशीर्वाद देकर चला गया । हरी बत्ती के जलते ही सभी गाड़ियाँ आगे की ओर सरकने लगी।
              “एक बात बताना सन्नी। तुम और भीखमंगो को कुछ नहीं देते हो लेकिन कोढ़ियों को जरूर दान करते हो ।”  रश्मि ने सन्नी को कई बार गौर से देखा था वह कुछ वड़ा पाव या पैसे कोढ़ियों को ही दान दिया करता था।
              भला वह  रश्मि को कैसे बताता कि स्पॉट बॉय का कार्ड बनाने के लिए उसने अंधेरी के एक कोढ़ी से दस रूपए  उधार लिए थे।  कार्ड बनाने के लिए उसे चार सौ रुपए की जरूरत थी और उस समय उसके पास केवल तीन सौ नब्बे रूपए ही थे।  उस दिन कार्ड इश्यू होने की अंतिम तिथि थी और दस रूपए कम होने के कारण वह बड़े तनाव में था । उन दिनों बंबई में उसका कोई हितैषी नहीं था जो उसे दस रूपए उधार दे देता।उसी समय अंधेरी के पब्लिक ब्रीज पर उसकी नज़र एक ऐसे कोढ़ी पर पड़ी जिसके आगे सिक्कों  का भंडार लगा हुआ था। यदि आज वह स्पॉट बॉय का कार्ड बनाने में चूक जाता तो अगले तीन वर्षों तक एसोशियेसन नये कार्ड इथ्यू नहीं करनेवाली थी । मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है । हालात जो भी कराये कम है । लालता प्रसाद ने न आव देखा न ताव ,सिद्धांत और स्वाभिमान पर चिंतन करके वक्त बर्बाद न करते हुए कोढ़ी और लोगों की नजरें बचाकर पाँच – पाँच के दो सिक्कें लेकर चलता बना । अंधेरी से दादर रंजीत स्टूडियों को पैदल ही कदम दर कदम नापता हुआ वह स्पॉट बॉय का कार्ड निकलवाने में सफल हो गया। वह उस कोढ़ी का दस रूपये का  कर्जदार हो गया था। जब पहले दिन उसने शुटिंग की तो उसे मेहनताने के एवज में दो सौ अस्सी रूपये मिले।उस कोढ़ी के दस रुपये लौटाने के लिए एक नहीं  पच्चीसों बार अंधेरी के पब्लिक ब्रीज पर गया परंतु वह कोढ़ी नजर नहीं आया । उसी दिन से लल्ली ने अपने मन में एक संकल्प लिया कि आज से प्रतिदिन दस रूपये का वड़ा पाव या नगद पैसे वह किसी भिखारी को दान दिया करेगा। इस तरह महीने के तीन सौ रूपये वह कोढ़ियों के लिए अलग से अपने पर्स में रखने लगा । एक कोढ़ी का एहसान और दस रूपये  के एवज में तीन सौ रूपये का दान  करके एहसानमंदी का किस्सा किसी को सुनाकर सन्नी मजाक का पात्र नहीं बनना चाहता था। संपन्न परिवार की रश्मि ने कभी किसी से न एक पैसे का कर्ज लिया था और न ही कभी किसी को एक पैसे का दान किया था । यह कैसी विडंबना है कि लल्ली फिल्मी हीरो बनने के लिए बंबई आया था लेकिन हीरो न बन सका और रश्मि ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह फिल्म की हीरोइन बनेगी लेकिन आज वह आठ – दस फिल्मों की हीरोइन है । काश ! सपने सच होते  तो जीवन इतना पेचीदा नहीं होता! इंसान की जिंदगी में इतने झोलझाल न होते!!
                                      ***
बहुत पुरानी कहावत है कि डॉक्टर, पुलिस और कर्जदार के चक्कर में जो एक बार फंसा तो समझो उसका बेड़ा गर्क । डॉक्टर इलाज की एवज में अपनी फीस वसूलते वसूलते रोगी की आर्थिक स्थिति को दयनीय बना देता है । पुलिसवालों के कानूनी शिकंजे में फंसे तो आपकी सामाजिक मान मर्यादा का मटियामेट होना ही है। मानसिक प्रताड़ना जो मिले सो अलग। कर्जदारों का सूद दिन दूना रात चौगुना के हिसाब से दौड़ते हुए मूल लेन- देन का दो गुना पाँच गुना तक हो जाता है । मूल पर ब्याज, ब्याज पर चक्रवृद्धि ब्याज ऐसे ही कर्जा पटाते पटाते आदमी कंगाल हो जाता है। विशाल और अच्युतानंद मिश्र , ये दोनों शख्स दुनिया के सबसे बदकिस्मत इंसान हैं जो एक नहीं बल्कि तीनों बरबादियों के शिकार है ।
           “सबको दिखा दूंगी” फिल्म के द्वारा रशीद भाई ने सभी को कुछ भले ही न दिखाया हो लेकिन विशाल और अच्युतानंद को बुरे दिन जरूर दिखा दिए । साइन पोलिस स्टेशन….. काल कोठरी में दस बारह  कैदियों के साथ विशाल और अच्युतानंद भी  पिछले चार दिनों से कैद में हैं। साइन पुलिस थाना के वरिष्ठ निरीक्षक गायकवाड ने बांद्रा कोर्ट से इन दोनों आरोपियों को चौदह दिन के लिए अपनी पुलिस कस्टडी में रखा है ।विशाल , अच्युतानंद और रशीद खान के खिलाफ साइन कोलीवाड़ा के निवासी बलजीत सिंह ने शिकायत लिखवाई है कि इन तीनों आरोपियों ने उन्हें वीडियो एलबम के निर्माण के लिए उन्हें निर्माता बनाकर पाँच लाख रूपये उनकी मर्जी से लिए लेकिन बलजीत सिंह को अंधेरे में रखकर इन तीनों ने ब्लू फिल्म की एक दिन की  शुटिंग की और जब उन्होंने इसका विरोध किया तो रसीद खान विशाल और अच्युतानंद पाँच लाख रूपये का हिसाब बताएं बिना गायब हो गए। पुलिस ने शिकायत दर्ज होने के बाद दूसरे ही दिन खार दांडा की झोपड़पट्टी से विशाल और अच्युतानंद को गिरफ्तार कर लिया । रशीद खान लगभग चार लाख लेकर फरार था जिसका सुराग पाने के लिए थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक गायकवाड रात को विशाल और अच्युतानंद की जमकर धुलाई करते।
“साले, तेरी माँ की ….।बोलता है वीडियो एलबम बनाएगा और इगतपुरी में जाकर नंगी फिल्म बनाता है ।”
“नहीं साब , बात यह है कि…..।”
 दो चार करारे तमाचे विशाल के गाल पर जड़ दिए जाते और उसकी बात अधूरी रह जाती कि ब्लू फिल्म बनाने के लिए ही बलजीत सिंह ने पाँच लाख रूपये रसीद भाई को दिए थे लेकिन हम लोगों को फंसाने के लिए व नई कहानी गढ़ रहा है ।
“क्यों बे , पंडित…. बगुला भगत…. आंऽऽऽ काशी का पंडित , तू भी  है इस धंधे में ….. बोलता है कि तू पिक्चर में काम करता है….. हीरो है तू ……साले कमीने,  हीरोगिरी करता है , पंडित भी बनता है…. फिर भी साले तेरा पेट नहीं भरता कि भड़ुआगिरी करता है…. हां …..बोल….. बोल….. रांड फिल्म बनाता है ….. क्रोध और कुटिल मुस्कान के साथ गायकवड तड़ातड़ चार-पाँच डंडे अच्युतानंद की मांसल पीठ पर जड़ देता है ।  पुलिसिया डंडे की मार से अच्युतानंद अपमान और दर्द के मिश्रित पीड़ा से कराह उठता लेकिन पुलिस थाने में जोर से रोने, कराहने या चिल्लाने की सख्त मनाई थी । अच्युतानंद मन ही मन भगवान से इस नरक माफी के लिए प्रार्थना करता । उसका दुर्भाग्य था कि  विशाल की योजना को उसने अपने लखपति यजमान को समझा दिया है कि  ब्लू फिल्म में पाँच लाख रुपए लगाकर चार महिने बाद टेबल कैश दस लाख बड़े आराम से कमाया जा सकता है। विशाल और अच्युतानंद दोनों ने मिलकर सरदार बलजीत सिंह को ब्लू फिल्म के निर्माण में पैसा लगाने के लिए समझा बुझाकर राजी किया क्योंकि उन्हें पार्टी पटाने के इनाम के रूप में रशीद भाई से चालीस पचास  हजार रुपये मिलने वाले थे ।   “बोलो मादर…. रंडी के दलालों…..”
        गायकवाड ने दोनों के  सीर के बालों को अपनी मुट्ठी में भींचकर  एक दूसरे को से टकरा दिया । विशाल और अच्युतानंद दया की भीख मांगते हुए गायकवाड के कदमों पर लौट गए, “हमें माफ कर दो साब…. हमें उस साले रशीद ने फंसा दिया,”  गायकवाड के सिर पर मानों  शैतान सवार था जो अपने कदमों पर लोट-पोट हुए आरोपियों की पीठ और पेट पर बेतहाशा जूतों  का प्रहार कर रहा था ,  “माफी तो तुम्हें तब मिलेगी जब तुम बताओगे कि वो साला गांडू रसीद कहाँ  छुपा है ? उसका पता नहीं बताओगे तो मार – मार कर सुअर बना दूंगा…. समझे।”
      गायकवाड की बड़ी-बड़ी लाल पीली आँखें देखकर विशाल और अच्युतानंद के गले से एक भी शब्द नहीं फूट रहा था,  हालांकि वे पच्चीसो बार यह बता कर बुरी तरह से पीट चुके थे कि इगतपुरी के पहले दिन की शुटिंग के बाद बलजीत सिंह को पट्टी पढ़ा कर दूसरे दिन दो लाख रूपये नगद लेकर वह उसी रात फरार हो गया था । इगतपुरी में दो दिन तक पूरी युनिट  फिल्म के निर्देशक का इंतजार करती रही , लेकिन उसे नहीं आना था तो नहीं आया। पूरी यूनिट को उसने नाम मात्र का साइनिंग अमाउंट देकर पूरे पैसे शुटिंग पैकअप के बाद देने का वादा करके इगतपुरी ले आया और खुद ही गायब हो गया।  विशाल और अच्युतानंद को पाँच – पाँच हजार मिले थे लेकिन यह रुपए उन्हें बहुत महंगे पड़े…..
                                                                                        ***
वृद्ध व्यक्ति, जो अपने जीवन की लंबी पारी खेल चुका है, वृद्धावस्था में शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर कमजोर होने के बाद,  वह अपने शेष बचे जीवन के बारे में कम वरन बीते हुए कल के बारे में अधिक विचार मंथन करता है । बाल अवस्था में उसके क्या स्वप्न थे ,  तरुणाई के दिनों में वह किन किन समस्याओं से उलझा था , धर्मसंकट के क्षणों में उसकी क्या भूमिका रही, बीते हुए दिनों की खोह में कितना कुछ खोया, क्या-क्या उपलब्धियां रही, स्वयं पर गर्व और जीवन पर गौरव करने योग्य है अथवा नहीं, – ऐसे न जाने कितनी आत्मिक और बौद्धिक प्रश्न होंगे जो वृद्ध व्यक्ति के सूने मन में गूंजते रहते हैं । यह कैसी विचित्र विडंबना है कि एक समय वह था जब वह एक नौजवान अपने भावी दिनों के बारे में सोचता है और एक समय यह है कि जब वहीं नौजवान, कल का नौजवान , आज तन और मन  से  बूढ़ा  होकर अपने अतीत की यादों में डूबता उतराता है
           समय के बहाव ने बिहारी को तेज धारा से अलग थलग कर दिया । मन के हारे हार है मन के जीते जीत। बिहारी मन से कमजोर हो गया । अब और स्ट्रगल करके कुछ और वर्ष इंतजार में गुजारने की कोई इच्छा नहीं थी क्योंकि उसकी आँखों में अब दूसरे स्वप्न  उगने लगे थे । अपनी पत्नी के गर्भ के सातवें आठवें महीने में गुब्बारे की तरह फूले पेट पर अपने कान रखकर अंदर के जीव की सनसनाहट को महसूस करने की इच्छा ने “अलविदा बंबई ”  कहने के लिए मजबूर कर दिया। सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यों है , इस शहर का हर शख्स परेशान क्यों है ।  बंबई शहर हादसों का शहर I
                                        ***
साइन पोलीस स्टेशन । नौवां दिन | चौदह दिन की पुलिस हिरासत l पाँच दिन अभी और । पिछली कई रातों में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक गायकवाड हल्की सी कच्ची दारू चढ़ा कर लाल – लाल आँखें तरेर कर अन्य कैदियों के साथ- साथ विशाल और अच्युतानंद की जमकर पिटाई करता जैसे पागल कुत्ते को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जाता ।  बार-बार वह एक ही प्रश्न पूछता– कमीनों , सीधे – सीधे बता दो वह हरामजादा रशीद कहाँ हैं? ….. सीधे नहीं बताया तो उल्टा टांग कर डंडा डाल दूंगा…… तुम्हारी जिंदगी खराब हो जाएगी मादर….. यूपी से आकर बंबई में चार सौ बीसी का धंधा करता है…. बोल …..कहाँ भागा है ? रशीद शुरू के दिनों में रशीद के बारे में  ‘ना’ शब्द सुनते ही विशाल और अच्युतानंद की पीठ पर तड़ातड़ कोल्हापुरी चप्पल बरसने लगते थे । अब डर के मारे मुँह से एक भी शब्द न निकलने पर गायकवाड उनके बालों को भींचकर अपनी मुट्ठी में पकड़ कर उनका मुँह उपर करके आँखों में आँखें डाल कर धमकी देता ,  “सरदार बलजीत सिंह ने केस लिखवाई है कि तुम दोनों ने उसके पाँच लाख रूपये फ्रेंडली लोन लेकर लौटाना नहीं चाहते हो । रशीद के बारे में कुछ नहीं बताओगे तो तुम दोनों की ही जिंदगी बर्बाद होगी । एक मुसलमान के लिए तुम दोनों अपनी कब्र मत खोदो ….. बताओं रशीद का घरबार जो कुछ भी तुम जानते हो बताओ ।”  गायकवाड की चीख कोठरी में गूंज उठी।
 विशाल सुबकने लगा,  उसकी पीठ पर जैसे लाखों छोटे- छोटे कीड़े रेंग रहे हो । उसने सर पर हाथ रख कर अपने को सच्चा प्रमाणित करने के लिए माँ की सौगंध खाकर बोला , मैं और रशीद ने आज के तीन साल पहले डेविड जॉन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म में काम किया था ।मैं प्रोडक्शन कंट्रोलर था वह डेविड जॉन का एसिस्टैन्ट । दस दिनों की शुटिंग में हल्की-फुल्की दोस्ती हो गई और बाद में हम लोग कहीं किसी स्टूडियो या किसी सड़क पर  मिलते तो हाय हैलो से ज्यादा बात नहीं होती। एक दिन वह मिल गया और मुझे ब्लू फिल्म के बारे में बताने लगा कि तीन लाख  लगाकर दस लाख रुपए कमाया जा सकता है । अगर मैं उसके लिए कोई पार्टी पटा दूं तो वह मुझे पच्चीस हजार रुपये के साथ दस परसेंट प्रॉफिट देने का वादा किया। यह बात मैंने अपने दोस्त अच्युतानंद को बताई तो उसने अपने पुराने पहचान वाले सेठ. बलजीत सिंह को बताई। हम लोगों की चार मीटिंग हुई जिसमें रशीद ने बलजीत सिंह को चार लाख का दस लाख और वह भी चार महीने के अंदर पैसा कमाने की योजना समझाने में सफल हो गया । बलजीत सिंह ने केस में हम लोगों के उपर पाँच  लाख हड़पने का आरोप लगाया है जबकि सच्चाई यह है कि रशीद ने नगद ढाई लाख रुपए ही लिए हैं और केवल एक दिन की शुटिंग करके हम लोगों को चुतिया बना कर गायब हो गया। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं मालूम सर करते हुए विशाल फूट-फूट कर रोने लगा । गायकवाड के चेहरे पर हल्की सी नरमी देखकर विशाल उसके कदमों पर गिर पड़ा । गायकवाड ने विशाल के शर्ट की कॉलर पकड़ कर ऊपर खींचा। विशाल की घिग्गी बंध गई फिर मार पड़ेगी । गायकवाड ने विशाल के पंजे को अपने जूते के नोंक से दबाया l विशाल चिचिया कर रह गया। तड़ातड़ दो थप्पड़  उसके गाल  पर जड़े और भद्दी – भद्दी गालियां बकता हुआ चला गया। विशाल का सिर घूमने लगा। उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। पैरों में सुन्नता महसूस होने लगी। उसने आँखों की नसों में दबाव महसूस किया । बोझिल पलकें मूंद गयी और गश खाकर वह जमीन पर गिर पड़ा। अच्युतानंद  विशाल को अपनी गोद में लेकर उसे हिलाने लगा धीरे-धीरे विशाल की गर्दन में ऐंठन होने लगी । चारों तरफ घेर कर खड़े कैदियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया।  विशाल के होंठ बुदबुदा रहे थे। लेकिन आवाज गले में ही घर घर कर अटकने लगी । सलाखों के पीछे शोर सुनकर ड्यूटी पर तैनात हवलदार अंदर आया।  विशाल की दयनीय स्थिति देखकर उसने गायकवाड को खबर  दी। गायकवाड ने भी विशाल की गर्दन  सीधा करने की कोशिश की।विशाल की हालत गंभीर देखकर उसने हवलदार को एंबुलेंस  बुलाने के लिए कहा I बीस मिनट के भीतर विशाल को सायन सरकारी
हॉस्पीटल के लिए रवाना कर दिया गया ।  “सुन गजानन अगर केस कुछ सीरियस हुआ तो इसको सुसाइड का केस बना देना….. एक डम्मी केस पेपर अभी तैयार करके रखो कि उसने अपनी बेल्ट से गला दबाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। उसके दोस्त अच्युतानंद और पंग्या  भाई को गवाह बनाओ ।”  सिर पर कैप रखकर गायकवाड ने सायन  सरकारी हॉस्पिटल की ओर जीप दौड़ा दी।
                                        ***
चांदीवली स्टूडियो , साकीनाका , अंधेरी,  बंबई सुबह के दस बजे हैं। शुटिंग की पहली शिफ्ट, . स्टूडियो के खुले मैदान में झोपड़पट्टी का सेट लगा हुआ है। बीच में एक लम्बी गली के अगल बगल टीन के पतरें और नारियल पत्ते की चट्टाई  की झोपड़ी बनी हुई है। एक झोपड़ी के दरवाजे पर पर्दा टंगा हुआ है, जिसे बाहर से देखने पर मटके जुए का अड्डा दिखायी पड़ता है । एक कोने में दो चार बड़े- बड़े ड्रम और  छोटे-छोटे पाँच  लीटर के काले डिब्बे पड़े हुए हैं।जहाँ पर दो-तीन जूनियर आर्टिस्ट गुंडानुमा टी शर्ट, पैंट पहनकर बीड़ी फूंक रहे है । यह कच्ची शराब का अड्डा है। एक नकली दुकान के शटर पर तीन चार नंगी लड़कियों की पोस्टरनुमा तस्वीर चिपकायी हुई है। पोस्टर पर टिकट दर पाँच रूपये और समय बारह बजे लिखा हुआ है। जिसके आगे खड़े पाँच छः जूनियर आर्टिस्ट वीडियो थिएटर में घुसने और निकलने के रिहर्सल कर रहे हैं । आर्ट डायरेक्टर हर्षवर्धन मोहिले अपने तीन प्लंबर मजदूरों से गली के मोड़ पर एक नगर निगम की नल लगवा रहा है,  जिसके सामने प्रोडक्शन कंट्रोल बाल्टी ,घड़ा ,डिब्बा और लोटा रखवा कर बंबई के किसी झोपड़पट्टी की सजीवता  से इस सेट को जीवित करना चाहता है । कैमरा क्रेन पर लगाया जा रहा है । क्रेन को ट्रॉली पर रखकर ट्रैक पर चॉक  के निशान लगाए जा रहे हैं । झोपड़पट्टी की गतिविधि का फूल वायड लेंस टॉप लॉन्ग शॉट लेने की तैयारी में पूरी यूनिट अपने अपने कार्य को सही अंजाम तक पहुँचाने में लगे हुए हैं ।

     “तो आपका नाम माइकल पैकअप है ।”    फिल्म निर्देशक चैतन्यश्री ने अपने सामने खड़े दुबले पतले और कमजोर लंबे स्ट्रगलर का चेहरा एलबम की तस्वीरों से मेल कर रहे हैं,  “माइकल पैकअप किसका पैकअप करने का इरादा है ?”

     “सर , मैं माइकल जैक्सन का पैकअप कर चुका हूँ । मैं बहुत ही खतरनाक डांस करता हूँ। वेस्टर्न और इंडियन,  दोनों डांस स्टाइल को मिलाकर मैंने फास्ट रिद्म  पर एक डांस कंपोज  किया हुआ है ।  मेरे डांस  सिक्वेंस  को आप  अपनी फिल्म में रखे , बड़े-बड़े डांसरों का पैकअप कर दूंगा मैं l”  एक ही सांस में बिना रुके जॉली बंसल ने अपने नाम का अर्थ और उसकी उपयोगिता का प्रवचन सुना दिया ।
जौली बंसल के उत्साह और अति आत्मविश्वास को देकर चैतन्यश्री जान गये कि यह पूरा पागल तो नहीं लेकिन आधे से आधा पागल जरूर है ।
     “सर ,  ‘छोटे सरकार’  फिल्म में मैंने  गोविंदा के साथ दो सीन किये हैं। सिर्फ दो सीन I”   जॉली बंसल को गोविंदा के साथ काम करने का गौरव नहीं था, “मेरी कॉमेडी देखकर गोविंदा ने दूसरी फिल्म  ‘छोटे मियां बड़े मियां’  में रोल ही कटवा दिया।”
    “अच्छा,… यानि तुमने ऐसी  एक्टिंग की कि गोविंदा को डर लगने लगा ।”   चैतन्यश्री ने जॉली को चने की झाड़ पर चढ़ाना  शुरू कर दिया।
           “सर, मेरे अंदर एक और खासियत है” जॉली बंसल अपनी एक और खासियत दिखाने के लिए उतावला होने लगा I
  “वो क्या खासियत है भई?  जरा हम भी देखें!”  चैतन्यश्री जाँली की खासियत के दर्शन करने के लिए उससे भी ज्यादा उतावले हो गये।
       “सर, मैं खड़े-खड़े आँखों से रेप करता हूँ।”  जौली बंसल ने होठों को गोल सीकोड़कर दायी आँख मारी,  इस फिल्म इंडस्ट्रि में ऐसी कोई हीरोइन नहीं बची है,  जिसका मैंने आई रेप न किया हो । जॉली बड़े गर्व के साथ कमर को थोड़ा लचकाकर दायी टांग हिलाने लगा मानो वह कामदेव का अवतार हो।”
     जौली बंसल की   ‘आई रेपिस्ट’ वाली बात सुनकर चैतन्यश्री को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके सामने खड़ा शख्स पौवा नहीं बल्कि पूरा पागल है।  चैतन्यश्री ठहाका मारकर  हँसने लगे । उन्हें हँसते देकर जॉली बंसल ने फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन के संवाद का जोर जोर से  जाप करना शुरू कर दिया,  “भाई हम दोनों इस मिट्टी से उठे हुए है। मुझे देखो…. मेरे पास आज क्या नहीं है ? गाड़ी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है,  रेपुटेशन है और तुम्हारे पास?   ये सरकारी वर्दी , महीने के बारह सौ रूपये  तनख्वाह और खटारा जीप….. इन सड़े सिद्धांतों और आदर्शों के अलावा क्या है तुम्हारे पास ….रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं नाम है शहंशाह ….” जॉली के सिर पर अमिताभ बच्चन का भूत सवार हो गया , जो एक के बाद,  नॉनस्टॉप डायलॉग बकने लगा। उसके चारों तरफ युनिट के कई लोग जमा होने लगे । फिरोज सैफी भी मेकअप करके वहाँ आ गए । जॉली बंसल की नौटंकी देखकर सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे ।
“बस बस । बस करो मेरे भाई । मैं वादा करता हूँ कि इस फिल्म में तुम्हारे लायक कोई रोल निकालता हूँ। ”  जोली से पीछा छुड़ाने का यही एक रास्ता चैतन्यश्री को सही लगा । “अरे भाई कोई है , जरा अपने माइकल पैकअप को ले जाकर नाश्ता वास्ता तो करवाओ ।”  दो चार लोग जॉली को स्टुडियों के एक कोने में ले जाकर अपना मनोरंजन करने लगे ।
“हाँ,  फिरोज भाई ,”  चैतन्यश्री ने पाँच पेज का डायलॉग पेपर फिरोज सैफी को थमा दिया ,  “आज शिखर को मैंने दो बजे बुलाया है उसके पहले हम यह सीन शूट करेंगे।
 फिरोज सैफी ने डायलॉग पढ़ना शुरू कर दिया,  ” ये मुन्नू कौन है ? “
      “मुन्नू एक ऐसा कैरेक्टर है जो इस झोपड़पट्टी में रहता है और आप के खिलाफ मोर्चा लेकर आप का घेराव करता है ।”  निर्देशक ने कैरेक्टर के नेचर का  खांका खींचकर सीन को जस्टिफाई कर दिया।
“मुन्नू का किरदार कौन कर रहा है?”  डायलॉग पेपर को पढ़ते हुए फिरोज सैफी ने पूछा ।
“शशांक है एन.एस.डी. रिटर्न चैतन्यश्री को जैसे अचानक कुछ याद आया,  ” अरे भाई सुनो,  शशांक मेकअप रूम में है, उसे उसके डायलॉग पेपर दे दो।”  सहायक निर्देशक डायलॉग पेपर की जेरोक्स कॉपी लेकर मेकअप रूम की ओर दौड़ पड़ा l
” एक बात बताना चैतन्य, फिरोज सैफी ने डायलॉग के पाँचों पेज पढ़कर अपना मुँह बिचका लिया,   “ये तुम्हारे डायलॉग राइटर को डायलॉग लिखने का सेंस है या नहीं ?”
         “क्यों ? क्या हुआ ? कोई गड़बड़ी हो गई क्या ? ” चैतन्यश्री ने फिल्म के संवाद लिखने में राइटर की मदद की थी।
  ” झोपड़पट्टी में रहने वाला  एक मामूली  छोकरा ….. विधायक को खरी-खोटी सुनायेगा,  वह भी उसके मुँह पर।”     “शशांक”  झोपड़पट्टी के छोकरे की भूमिका निभा रहा था और फिरोज सैफी फिल्म में एक दुष्ट विधायक का रोल कर रहे थे।
    ”  सीन ही कुछ ऐसा है कि….”  चैतन्य अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाए कि फिरोज सैफी जोर से बोल पड़े….
      ” सीन को मारो गोली यार, एज ए एक्टर मेरी रेपुटेशन इस इंडस्ट्रि में है कि नहीं ,  बोलो ।”
फिरोज सैफी के रेपुटेशन और इस सीन के बीच के संबंध को चैतन्यश्री समझ नहीं पाये।
     “यार….. एक स्ट्रगलर को तुमने अमिताभ बच्चन की तरह भारी भारी डायलॉग दे दिया, जिसके सामने तो मेरा रोल ही दबकर  रह जाएगा।”
         फिरोज  सैफी ने  ‘स्ट्रगलर’  शब्द को कुछ ज्यादा ही जोर देकर उच्चारित किया था।  “सुनो चैतन्य …. इसके डायलॉग हल्के कर दो और ये… ये… ये साथ में चार डायलॉग जो शशांक के हैं…. वो मैं बोलूंगा ।”
                फिरोज सैफी ने अपनी मंशा जाहिर की ।
“सर,  इससे तो कहानी ही बदल जाएगी।”  चैतन्यश्री को डायलॉग के साथ फिरोज सैफी की छेड़छाड़ अच्छी नहीं लगी ।
   “कोई कहानी वहानि नहीं बदलेगी।  इसको ठीक कर दो मैं एक फोन करके आता हूँ।” फिरोज  सैफी हुकुम देकर चलाकर चल दिए ।
“साला , भूल गया कि कभी यह भी स्ट्रगलर था। ”  चैतन्यश्री मन ही मन बुदबुदाये।
                                                                  .***
भला ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसके मन में एक सफल और श्रेष्ठ जीवन जीने की चाहत नहीं होती है? किस के मन में ऐसी अभिलाषा नहीं जन्म लेती है कि वह अपने जीवन में कुछ ऐसा करें जिसके कारण समाज में उसकी अलग पहचान बने,  आदर सम्मान मिले एवं उसे अपनी योग्यता एवं उपलब्धि पर गर्व और गौरव हो।  किसी भी कर्म को करने वाला कर्ता या लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्षरत महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के हौसले,  उनकी राह – ए -मंजिल में आने वाले सभी संकटों से टकराने के लिए बुलंद होते हैं और उनके मन में एक आस होती है कि किसी न किसी तरह किसी भी कीमत पर सफलता उनके कदम चूमेगी ।
       लेकिन क्या सभी की आस पूरी होती है ? क्या सभी के सपने सच होते हैं? क्या प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर छिपी संभावना को संभव बनाने  में सफल होता है ?   नहीं…. किसी भी क्षेत्र के किसी भी कार्य को करने वाला व्यक्ति शत-प्रतिशत सफल नहीं होता है। । जीवन की बिसात पर बिछी कर्म और भाग्य की मोहरे किसी का पासा पलट कर उसे सफल बना देती है तो किसी को चारों खाने चित कर के असफल बना देती है।
 अपने लक्ष्यसिद्धी के लिए संघर्ष करने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह विद्यार्थियों हो, युवा हो, व्यापारी, बुद्धिजीवी हो, अध्यात्मिक , राजनैतिक ,सामाजिक एवं सांस्कृतिक किसी भी क्षेत्र से संबंधित या कार्यरत हो , कभी न कभी वह ऐसे दोराहे पर आ खड़ा होता है जब वह क्या करें ?”  के प्रपंच में उलझ कर दी भ्रमित हो जाता है । किसी ठोस विषय पर उसकी तुरंत निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। अपने स्वप्न को सच करने के लिए पल प्रतिपल  साधना करने वाला साधक कभी-कभी दुर्भाग्यवश अपने लक्ष्य से इतना दूर हो जाता है कि उसके बुलंद हौसले पस्त हो जाते हैं ।  भविष्य अंधकारमय एवं शून्य प्रतीत होने लगता है।  निराश मन में अकूत विचारों का तूफान आता है ,  ‘क्या करें’-   इसी तरह निरर्थक संघर्ष या अपनी वास्तविक परिस्थिति और भाग्य से समझौता ।
   एक तथ्य स्पष्ट है कि किसी भी कार्य में सफलता आसानी से नहीं मिलती है।  सफलता कोई चमत्कार नहीं है  जो किसी तंत्र- मंत्र,  टोने-टोटके द्वारा प्राप्त की जा सके । दान या खैरात के द्वारा भी सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती है । किसी भी कार्य में पूरी तरह से समर्पित होने के बाद आपकी मनोकुल इच्छा पूरी  हो जाएगी – ऐसा कोई सनातन ब्रह्म नियम भी नहीं है । केवल जीतने की इच्छा लिए खेल खेलने वाला खिलाड़ी अपनी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है ।खेल को खेल की भावना के साथ खेलना चाहिए ।
मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है। अपनी परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको परिवर्तित करने वाला व्यक्ति ही समझदारी के साथ, समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता है । अपनी वास्तविक दयनीय स्थिति को छिपाकर झूठे और दिखावटी जिंदगी जीनेवालों की स्थिति सुबह दोपहर और सांझ  की परछाई की तरह घटती और बढ़ती रहती है।
                                               ***
सायन म्यूनिसिपल अस्पताल के जनरल वार्ड में बेड नंबर दस पर विशाल लेटा हुआ है ।अब उसकी तबीयत ठीक है।  शाम को उसे वापस जेल भेज दिया जाएगा क्योंकि कल सुबह चौदह दिन की पुलिस हिरासत के बाद उन दोनों को बांद्रा के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा । एक हवलदार  कुछ कागजों पर विशाल के हस्ताक्षर लेकर चला गया। उन कागजों को पढ़े बिना अनपढ़ो की तरह तरह विशाल का हस्ताक्षर करना जलील जलालबादी को कुछ अटपटा सा लगा।
   “अब हम लोगों की जिंदगी गायकवाड के हाथ में है । हम लोगों ने सारी बातें साफ-साफ उन्हें बता दी।”  विशाल ने गायकवाड के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कहा,  “गायकवाड साहब हमलोगों की मजबूरी और रशीद साले की चीटिंग का किस्सा अच्छी तरह से जान गए। उन्होंने वादा किया है कि वह हमारा केस हल्का करके हम दोनों को बचा लेंगे ।”
लेकिन इन पुलिस वालों का कोई भरोसा नहीं जलील जलालाबादी ने पुलिस सहयोग पर अपना अविश्वास प्रकट किया ।
     “तो किस पर विश्वास करें ?”  विशाल के मन में रशीद के प्रति घृणा का भाव भर आया ,  “उस हरामजादे पर विश्वास किया तो यह सिला मिला।”   जलील जलालाबादी के चेहरे पर  मजहबी कट्टरता की रेखाएं खींच आयी क्योंकि एक मुसलमान के सामने एक हिंदू दूसरे मुसलमान को “हरामजादा” कहे। विशाल जलील की आँखों में झांककर मानो यह आभास दिलाना चाहता है कि एक मुसलमान के हाथों धोखा खाने से अच्छा है कि एक हिंदू के हाथों धोखा मिले। जलील जलालाबादी विशाल के चेहरे से अपनी निगाहें हटाकर जनरल वार्ड में अन्य रोगियों की तरफ देखने लगा। वार्ड में करीब चालीस बिस्तर के पास रोगियों के साथ साथ उनके रिश्तेदारों से अस्पताल में मेले जैसा माहौल लगने लगा । जलील जलालाबादी ने महौल को हल्का करने के लिए अपनी एक गज़ल का आलाप शुरू किया ,  ” भीड़ ही भीड़ में लगा हुआ है मेला, संग मेरे आँसू और मैं अकेला ।” विशाल से वाहवाही की आशा में जलील जलालाबादी उसका मुँह ताकने लगा  लेकिन विशाल निस्प्रह पड़ा हुआ दरवाजे की तरफ देखने लगा। जलील जलालाबादी ने अपनी एक और गजल पेश की, – ” एक हद तक चाहो तो मुद्दतों के बाद फिर जहमत बनेंगे, ज्यादती की तो नासुर बनेंगे, प्यार किया तो खरोच लेंगे।” विशाल के पल्ले कुछ नहीं आया । उसने तिरछी निगाहों से जलील को इस तरह से देखा कि वह समझ गया कि विशाल उसके गजलों से बोर हो रहा है। पॉलिथीन की झोली में नारियल पानी, मुसंबी केला और ब्रेड लेकर कुसुम आ गई । आगंतुकों को बैठने के लिए एक ही टेबल होने के कारण वह विशाल के पैर के पास खडी़ हो गई । विशाल और पास खड़ी स्त्री को असहज देखकर जलील जलालाबादी ने वहाँ  से खिसकना जरूरी समझा । उसके जाने के बाद कुसुम पास ही टेबल पर आकर बैठ गई । आज उसने हल्की नीली रंग की साड़ी और मैचिंग कलर की ब्लाउज में उसका शरीर निखर आया है।  कंधे पर ब्लाउज के बाहर निकल आयी  काली रंग की ब्रा की पट्टी को विशाल ने अंदर की ओर खिसका दिया । कुसुम ने नारियल पानी को गिलास में उड़ेलकर विशाल के हाथ में थमा दिया।
‘ कल मत आना कुसुम । आज शाम को मुझे वापस जेल में ले जा रहे हैं ।’  यह कहते हुए विशाल की पलके झुकी रही ।
‘वो पुलिस इंस्पेक्टर कह रहा था कि वह तुम्हें जेल से छुड़वा देगा। ‘  कुसुम ने विशाल को पिछली रात की घटना बतायी कि किस तरह से उसने गायकवाड को पाँच हजार रूपये  की रिश्वत देकर केस को सुलझाने की प्रार्थना की थी।
‘मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भुलूंगा तुमने अपने पैसे देकर मुझे बचा लिया।’  विशाल में इतनी कृतज्ञता थी कि वह कुसुम से निगाहें नहीं मिला पा रहा था।
      “तुम्हारी जिंदगी से बढ़कर मेरे पैसे मुझे ज्यादा प्यारे नहीं है। तुम सही सलामत रहो बस यही मैं चाहती हूँ…. आखिर यह पैसे कब काम आते? ”  विशाल के हाथ से गिलास लेकर उसे नीचे रखने के लिए कुसुम ने अपनी कमर को धनुषाकार मोड़ा तो विशाल ने देखा कि कुसुम के जुड़े में आज मोगरे का गजरा नहीं है I
‘मोगरे का गजरा ……?
‘अब दिल नहीं करता ‘
‘ क्यों भला? ऐसी क्या बात हुई ?’
‘अब मोगरे का गजरा मैं उसी दिन अपने जुड़े में सजाऊंगी जिस दिन हम और तुम विवाह बंधन में बधेंगे ।’
‘यह तो भीष्म प्रतिज्ञा है।  इसकी क्या जरूरत ?’
‘नहीं…. यह प्रतिज्ञा नहीं …. यह मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि अब हम दोनों के बुरे दिन की छाया समाप्त हो और एक नए जीवन में हम प्रवेश करें।’ बिना एक शब्द कहे विशाल और कुसुम ने एक दूसरे की आँखों में झांककर  मन की गहराई में उतरकर प्यार के अंकुरित बीज की सजीवता को महसूस किया । दिल की भावनाएं शब्द बनकर मुँह से झरने ही वाले थे कि राजजी के साथ ताई और उनकी बेटी सुरेखा विशाल की मातमपूर्सी करने आ गए। पिछले पंद्रह बीस दिन से घटित दुर्घटनाओं की चिंता ने उन तीनों को भयंकर मानसिक यंत्रणा के भंवर में फंसा दिया था। वे तीनों जेल में  अच्युतानंद से मिलकर अस्पताल में विशाल को देखने आए हैं ।
   ‘जहाँ जाओ वही भीड़ है।’  माथे पर चुहचुहा आये पसीने की बूंदों को पोछते हुए राजजी ने प्रवचन देना शुरू किया,  ” जेल में गए तो कैदियों की भीड़,  सड़क पर गाड़ियों की भीड़,  अस्पताल में मरीजों की भीड़ ……अगर श्मशान घाट जाओ तो वहाँ मुर्दों की भीड़…… इस दुनिया में भीड़ भाड़ एक झमेला है , हम कहीं गुम न हो जाए कि अजनबियों का  मेला है।”    बड़े ही दार्शनिक ढंग से भीड़ के प्रति अपनी एलर्जी को राज ने कहकर बातचीत का सिलसिला शुरू किया । कुसुम टेबल पर से खड़ी हो गई और ताई को बैठने का आग्रह किया । ताई कुसुम को एक टक देखते हुए टेबल पर बैठ गई I
     ‘ताई, ये कुसुम है ।’ विशाल के संक्षिप्त परिचय पर कुसुम ने विनम्रता के साथ दोनों हाथ जोड़ लिए क्योंकि वह ताई के बारे में विशाल के मुँह से बहुत कुछ सुन चुकी थी । ताई ने हल्के से अपना सिर हिला दिया । विशाल के पैर के पास बेड के एक तरफ सुरेखा और दूसरी तरफ कुसुम खड़ी हो गई। राजजी  कहीं और चले गए Iताई ने अपना पहलू इस तरह से बदला कि  वह बहुत ही गंभीर बात कहने वाली हो । ताई ने जो कुछ भी कहा, कुसुम ने जो कुछ भी सुना , विशाल ने महसूस किया कि मामला वाकई गंभीर हो गया है । ताई ने आदेश के स्वर में बड़ी विनम्रता से समझाने के लहजे में अपने दिल की बात कह डाली ,  “विशाल , यह फिल्म लाइन का चक्कर वक्कर तुम छोड़ो । जो होना था सो हुआ …..अब आगे की जिंदगी तुम संभालो । मैं तुम्हें जितना पैसा चाहिए उतना दूंगी तुम कोई छोटा-मोटा धंधा शुरु करो क्योंकि मैं, मिश्राजी और राजजी तुम्हारा और सुरेखा का लगीन करना चाहते हैं । तुम दोनों लगीन करके सुखाचा संसार करो।”  ताई का निर्णय उसके हलक से बाहर फिसल आया । सुरेखा के होंठ लरजने लगे । कुसुम पर मानो कई घड़ो पानी की धार पड़ रही हो । विशाल ताई के इस निर्णय के असमंजस में पड़ गया । कुसुम ने अपने जुड़े पर हाथ फेरा , विशाल ने कुसुम और सुरेखा को तुलनात्मक दृष्टि से देखा । इस वर्तमान की परिस्थितियों के कारण तीनों असमंजस में डूबने उतराने लगे ।
                                          ***
To be continued on next page 4, Click on http://www.rajeshdubeay.com/struggler-hindi-novel-4/

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *